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गतांक से आगे : २ .
राधिका : कृष्ण : मंदिर : घोड़ा खाल : भवाली नैनीताल :
जहाँ प्रेम,है सदभाव है,सहयोग है वही : राधिका कृष्ण हैं
यात्रा संस्मरण : शोध. शक्ति प्रिया डॉ सुनीता मधुप
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सहयोग : शक्ति मीना सिमरन सुधा
नैनीताल
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मिले होंगे राधा कृष्ण यहीं उपवन में : कोलाज राधा कृष्ण : शक्ति. सिमरन डॉ.सुनीता सुधा
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प्रेम,है सदभाव है,सहयोग है वही : राधिका कृष्ण हैं हम प्रकाश जी के आभारी है। सदैव निस्वार्थ भाव से उन्होंने मेरी मदद की। उनके घर में उनकी जीवन संगिनी शक्ति सुधा आर्य जी ने हम जैसे अनजाने के लिए खुले भाव से स्वागत किया अल्मोड़ा की बाल मिठाई खिलाई वो सदैव स्मृत रहेगा।
राधा-कृष्ण का प्रेम ' भाव ' या कहें गहरी भावना का प्रतीक है, जो आत्मा और परमात्मा के मिलन को दर्शाता है, जहाँ प्रेम निष्काम, निस्वार्थ, समर्पण और त्याग से भरा होता है, जिसमें अधिकार नहीं, सिर्फ एक-दूसरे में एक हो जाने की चाह होती है, जो सांसारिक रिश्तों से परे, शुद्ध भक्ति और शाश्वत आनंद का मार्ग है, जिसे राधा ने पूजा बना दिया और कृष्ण ने ईश्वरता दी। जहाँ प्रेम,है सदभाव है,सहयोग है वही राधिका कृष्ण है याद रखिए। राधिका कृष्ण भाव है अपने जीवन का। प्रेम से परिपूर्ण। नियंत्रण से परे.
हमसब साथ साथ है : शायद हम एक दो बार राधिका कृष्ण मंदिर घोड़ा खाल नैनीताल आए हैं। २०२४ में और उसके पहले जब डॉ.प्रशांत गुजरात, संजय पटना से मेरे साथ थे। हमने नीचे से प्रसाद लिया था। सीढियां चढ़ते हुए गोलू देवता के मंदिर के दर्शन किए थे। हमने भी मन ही मन अपनी मन्नतों के लिए गोलू देवता को कई अर्जियां लिखी हैं कुछ यहाँ कुछ वहाँ। चिर भी बांधे हैं। दूसरों के बंधे धागे,टंगी हुई घंटियों में भी अभिलाषाओं का स्पंदन अनुभूत किया हैं। हमारी महाशक्ति मीडिया टीम की जो भी शक्ति सदस्या जाती हैं हमसब साथ साथ है इस प्रेम पूर्ण भावना के लिए घंटियां बांध ही आती हैं।
राधा-कृष्ण प्रेम के प्रमुख भाव मुख्य भावनाएँ : निस्वार्थता : राधा ने कृष्ण से कुछ मांगा नहीं, केवल उनके प्रेम में खो गईं। उनका प्रेम 'पाने' की चाह नहीं, 'समर्पण' का था।
आत्मा - परमात्मा का मिलन : व्यवहारिकता और अध्यात्म का संयोग : यह सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका का रिश्ता नहीं, बल्कि जीवात्मा राधा और परमात्मा कृष्ण के शाश्वत मिलन का प्रतीक है। कैसे आप अपने जीवन में व्यवहारिकता और अध्यात्म का संयोग कर सम्यक मार्ग ,और कर्म की तरफ उन्मुख होते हैं।
समर्पण और भक्ति : राधा की भक्ति इतनी गहरी थी कि कृष्ण भी उसमें बंधे थे। उनका प्रेम हर अपेक्षा से परे था। अधिकारहीन प्रेम बतलाता हैं प्रेम में सिद्ध अधिकार ही नहीं, कर्तव्य विशेष है। सिर्फ एक-दूसरे के उनकी ख़ुशी के लिए जीना होता है। राधा-कृष्ण ने यह सिखाया कि प्रेम में ' मेरा ' नहीं, ' हम ' होता है। हमारे व्लॉग में एक का प्रयास सम्मिलित खुशी देती है समस्त समूह के लिए। त्याग धर्म : सम्यक के लिए अपने जीवन में कुछ दे देना सीखिए। सच्चा प्रेम त्याग मांगता है, जहाँ व्यक्ति अपने प्रिय के लिए सब कुछ न्योछावर कर सकते हो ।
एकता : राधा और कृष्ण अलग नहीं हैं; एक के बिना दूसरे का नाम अधूरा है राधे-कृष्ण, या कृष्ण-राधे । निष्कर्ष देखें : राधा-कृष्ण का प्रेम हमें सिखाता है कि वास्तविक प्रेम पाने या हासिल करने में नहीं, बल्कि खुद को पूरी तरह से उसमें खो देने, निस्वार्थ भाव से जुड़ने और प्रेम को एक पवित्र पूजा बनाने में है। यह प्रेम भक्ति, शांति और आनंद का सबसे सुंदर उदाहरण है जो हमें ईश्वर के करीब ले जाता है।
प्रेम, प्रकृति, पहाड़, उत्तम पुरुष के लिए साधुवाद : हमारी शक्ति सिमरन हमारे शोध विषय पर पहले से ही काम कर रही है। जहाँ कही भी राधिका : कृष्ण : मंदिर : उपलब्ध है वहाँ जाकर लघु फिल्में बनाना, मुझ तक़ पहुँचाना,जानकारियाँ हासिल करने का प्रयास करती हैं। मेरे भ्रमण के पश्चात शेष कार्य उन्होंने ही पूरे किए हैं।
पहाड़ी लोग सीधे साधे होते हैं। छल प्रपंच से अलग। अब दूषित होती सभ्यता संस्कृति की हवाएं उन्हें भी छू रहीं हैं। उन सहिष्णु ,मेहनती , सरल लोगों , समुदायों और जातियों को कहते हैं जो मुख्य रूप से पर्वतीय और पहाड़ी क्षेत्रों जैसे हिमालय की तलहटी और घाटियों में रहते हैं। ये लोग अपनी सादगी, मेहनत और प्रकृति से जुड़ाव के लिए जाने जाते हैं, और भारत व नेपाल के कई राज्यों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम ,अरुणाचल,पूर्वोत्तर भारत में पाए जाते हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषाएँ और जीवनशैली होती है. मेरी अभी तक की अनुभूति में कण कण में भगवान होते हैं।
डॉ नवीन बीना जोशी , रवि रश्मि शर्मा ,आर्य प्रकाश सुधा, केदार, भुवन जोशी ,शक्ति भारती मीना संजय इसी संस्कृति की देन हैं। कहते हैं न भोले भाव मिले रघुराई।
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गतांक से आगे : ३ .
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यात्रा शक्ति संस्मरण : नैनीताल : भुवाली : भीम ताल .
शोध. शक्ति प्रिया डॉ. सुनीता मधुप
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सहयोग : शक्ति मीना सिमरन सुधा.
नैनीताल.
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ये वादियाँ ये फिजायें बुला रहीं है तुम्हें : भवाली : नैनीताल फोटो: शक्ति. प्रिया मधुप डॉ.सुनीता.
मिले होंगे राधा कृष्ण यही किसी वन में ? गोलू देवता के मंदिर परिसर स्थित राधा कृष्ण मंदिर देखने के क्रम में हमें बहुत सारी बातें याद आ रही थी। क्यों ऐसा सोच रहा था कि मिले होंगे राधा कृष्ण यही किसी वन में? यहाँ के कण कण में प्रेम माधुरी उनकी बसी है पवन में। और भी पास आ गए थे हम इस दिव्य वातावरण में अपनी कल्पनाओं के। राधा कृष्ण के साक्षात दर्शन हुए। जीवन सफल हुआ। माधव तो मधुप के कण कण में बसते हैं।
भावनाओं का सच है। योगी राज श्री कृष्ण तो अपनी रास लीलाओं के ही जाने जाते है। शिव है नहीं तो पत्थर। आस्थाओं पर प्रश्न नहीं होते।
हमने मंदिर की परिक्रमा की। प्रेम की अर्जियां लिखी। मन्नतों के धागे बांधे। बंधी घंटियों को स्पर्श किया। सोचा कभी सपने पुरे हुए तो मधुप फिर से माधव के दर्शन करेंगे, व घंटियां बांधेंगे ।
नीचे चीड़ व देवदारों के फैले अंतहीन वन थे। प्रेम के साक्षी। मधुमती को दिखने वाली झील भी हमें बुला रही थी, भीमताल। शायद कोई प्रतीक्षा कर रहा हो या इस सुने देश में कोई परदेशी के भेष में आ ही जाए ? हमारा लक्ष्य यहाँ से पतंग आकार में वो दिखने वाली झील थी जहाँ हमें पहुँचना था।
मैं,मेरे हमसफ़र,घोड़ाखाल मंदिर: वो झील : मधुमती की तलाश.शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता मीना.
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राजश्री फ़िल्म विवाह की साक्षी : राधा कृष्ण मंदिर : घोड़ा खाल : राजश्री की अति भावुक व चर्चित फिल्म 'विवाह' २००६ की शूटिंग मुख्य रूप से उत्तराखंड के खूबसूरत स्थानों जैसे रानीखेत,नैनीताल नैनी झील के पास, और जागेश्वर मंदिर में हुई थी, जहाँ ' सोमसरोवर ' नामक काल्पनिक गाँव दिखाया गया है ; वस्तुतः नैनी झील ही है। वहीं, गाज़ियाबाद में भी कुछ हिस्से शूट किए गए थे
प्रमुख लोकेशंस : सोमसरोवर काल्पनिक गाँव यह असल में उत्तराखंड के जागेश्वर और बागेश्वर के आसपास के प्राकृतिक दृश्यों और मंदिरों को दिखाया गया है, खासकर जागेश्वर धाम और गोलू देवता मंदिर को। नैनीताल: नैनी झील और आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का उपयोग किया गया। रानीखेत: फिल्म में कई खूबसूरत दृश्यों के लिए रानीखेत को चुना गया था। गाज़ियाबाद: फिल्म के कुछ हिस्से गाज़ियाबाद में भी फिल्माए गए थे। संक्षेप में कहें ,' विवाह ' की ' सोमसरोवर ' लोकेशन उत्तराखंड के प्राकृतिक और आध्यात्मिक स्थानों का मिश्रण है, जिसमें जागेश्वर और नैनीताल प्रमुख हैं।
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मिले होंगे राधा कृष्ण यही किसी वन में : फ़िल्म विवाह कोलाज : शक्ति प्रिया डॉ सुनीता मधुप
प्रेम : विश्वास : विवाह की अर्जियां व बाँधी गयी घंटियां : घोड़ा खाल : राधिका कृष्ण मंदिर
घने देवदारों के मध्य जागेश्वर : शिव को समर्पित : जागेश्वर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल है। मैंने तीन दफ़ा भोले के दर्शन किये। सरसराती ठंडी हवाएं कभी भी बादलों का घनीभूत हो जाना बरस जाना लाज़मी है।
अल्मोड़ा स्थित एक प्राचीन और पवित्र हिंदू तीर्थस्थल है,जिसे जागृत ईश्वर 'कहा जाता है, जहाँ १२५ से ज़्यादा मंदिर हैं और इसे १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है,जो भगवान शिव को समर्पित है और घने देवदार के घने जंगलों के बीच स्थित है, जो अपनी ऐतिहासिकता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध है।
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गतांक से आगे : ५ .
प्रकृति, प्रेम, पहाड़ और पुनर्जन्म. मधु मती
वो झील का किनारा : भीम ताल : यात्रा संस्मरण :
प्रकृति, प्रेम, पहाड़ और पुनर्जन्म.
भीम द्वारा निर्मित भीमेश्वर महादेव मंदिर :
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डॉ. मधुप.
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सह लेखन संपादन सज्जा
शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता.
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फ़िल्म में वर्णित बायीं तरफ़ कोई झील : भीम ताल . छाया चित्र : शक्ति प्रिया मीना. बीना नवीन जोशी
चल कर किसी का इंतजार : हमें याद है घोड़ा खाल मंदिर से दुर कहीं दिखने वाली झील एक दम छोटी सी तिकोनी दिख रही थी। अब हमें वो झील भी देखनी थी। राधा कृष्ण मंदिर देखने के बाद हम भीम ताल जा रहें थे।
एकाध घंटे के भीतर ही हम भीम ताल के किनारे थे। सच में यह बहुत बड़ी झील थी।
भीमताल एक त्रिभुजाकर झील है। यह उत्तरांचल में काठगोदाम से १० किलोमीटर उत्तर की ओर है।
झील के उस पार : मधुमती फिल्म लोकेशंस की झील,अपने पूर्व जनम में अभिनेता दिलीप का किसी झील का जिक्र करना,हालिया उस झील की क्या स्थिति है यह जानने के लिए हम भवाली से भीम ताल के लिए जानने के लिए निकल पड़ें। इसकी लम्बाई १६७४ मीटर, चौड़ाई ४४७ मीटर और गहराई १५ से ५० मीटर तक है।
सच माने तो नैनीताल से भी यह बड़ा ताल है। नैनीताल की तरह इसके भी दो कोने हैं जिन्हें निचला इलाका तल्ली ताल और ऊपरी भाग मल्ली ताल कहते हैं। यह भी दोनों कोनों सड़कों से जुड़ा हुआ है। अपर मॉल रोड और लोअर मॉल रोड यहाँ भी है।
झील में नौकाएं तैर रहीं थीं। झील के मध्य एक टापू बना हुआ था।
प्रमुख आकर्षण : क्या देखें :
भीम द्वारा निर्मित भीमेश्वर महादेव मंदिर : इस ताल का नाम भीम ताल क्यों पड़ा ? जरूर कहीं न कहीं यह पांडवों से जुड़ा हैं। भारत एक ख़ोज जारी थी।
भीमताल में मुख्य शिव मंदिर भीमेश्वर महादेव मंदिर है, जो भीमताल झील के किनारे स्थित एक प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका निर्माण महाभारत काल में पांडवों के भीम ने करवाया था और यह कुमाऊँ की चंद वंश की वास्तुकला का प्रतीक है, जहाँ शिवलिंग और नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं और यह शांति और आध्यात्मिकता के लिए एक सुंदर स्थान है.
भीमताल झील और एक्वेरियम : झील के बीच में एक द्वीप है जहाँ एक एक्वेरियम है, यहाँ नाव ( बोटिंग ) करके जा सकते हैं. यह मुख्य आकर्षण है, जहाँ आप मछलियाँ देख सकते हैं और कैफे का आनंद ले सकते हैं.
हनुमान गढ़ी : यह एक धार्मिक स्थल है जहाँ हनुमान जी का मंदिर है और यहाँ से झील का सुंदर नज़ारा दिखता है.
तितली अनुसंधान केंद्र और कैफे : प्रकृति प्रेमियों के लिए यह एक बेहतरीन जगह है जहाँ आप विभिन्न प्रकार की तितलियों को देख सकते हैं.
विक्टोरिया बांध : झील के किनारे बना यह पुराना बांध भी देखने लायक है.
नौकुचिया ताल : भीमताल के पास ही स्थित यह एक और सुंदर और शांत झील है जहाँ कई तरह की गतिविधियाँ होती हैं.
करने लायक चीज़ें : बोटिंग के लिए आप भीमताल झील में नाव की सवारी करें. बड़ा अच्छा लगेगा।
पैराग्लाइडिंग : रोमांच पसंद करने वालों के लिए पैराग्लाइडिंग का विकल्प है.
ट्रेकिंग : आसपास की पहाड़ियों और जंगलों में ट्रेकिंग का मज़ा लें.
शॉपिंग: स्थानीय बाज़ारों में कुछ खरीदारी करें.
क्यों जाएँ? भीमताल नैनीताल के पास होने के बावजूद शांत और कम भीड़ वाला है. यह प्राकृतिक सुंदरता और झीलों के लिए जाना जाता है, जो इसे सुकून भरी छुट्टियों के लिए एक अच्छा विकल्प बनाता है.
आप इस वीडियो में भीमताल के शांत और खूबसूरत नजारों को देख सकते हैं:
चल चले ए दिल करे चल कर किसी का इंतजार
झील के उस पार : भीम ताल : लघु फिल्म : डॉ.मधुप. क्रमशः जारी
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स्तंभ संपादन : शक्ति शालिनी रेनू माधवी.
स्तंभ सज्जा : शक्ति मंजिता सीमा अनुभूति.
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ए. एंड एम. मीडिया अधिकृत
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सम्पादकीय : त्रि शक्ति जागरण : साँवरे सलोनी गोरी : गद्य संग्रह आलेख : पृष्ठ : २ / ३ .
श्री लक्ष्मी नारायण : भगवान विष्णु को समर्पित.
एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर
मुक्ति नाथ : मुस्तांग : नेपाल : यात्रा संस्मरण.
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नेपाल : शोध शक्ति : यात्रा संस्मरण.
शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता रितु.
दार्जलिंग डेस्क.
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हम साथ साथ है : मीडिया टीम : २००७ में नेपाल की यात्रा : हम साथ साथ है की मीडिया टीम २००७ में नेपाल की यात्रा पर थी । हमने नेपाल स्थित काठमांडू,सारंगकोट, नागरकोट ,पोखरा आदि का भ्रमण किया था। मुक्ति नाथ के लिए उड़ाने भी देखी थी। समय अभाव की बजह से जा नहीं पाए थे।
२०२५ में जब हमारी शक्ति फोटो लघु फिल्म सम्पादिका रितु ने मुक्ति नाथ की यात्रा पूरी की तो निश्चित हुआ कि इस यात्रा वृतांत को शब्द दिया जाए। लिपिबद्ध किया जाए।
वर्ष २००७ की नेपाल की यात्रा में डॉ.सुनीता मधुप,डॉ.राशि, डॉ.रतनिका,व डॉ.रूप कला शामिल उस यात्रा में शामिल थी ही। तय हुआ कुछ लिखा जाए। फीचर डेस्क ने इसकी तैयारी शुरू कर दी।
तब हमने पशुपति नाथ, बागमती नदी हनुमान डोका,ललितपुर ,भक्तपुर , काठमांडू स्थित इस्कॉन टेम्पल भी देखा था। पोखरा की गहरी झील अभी भी याद है।
काठमांडू नेपाल में सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली जगह है और नेपाल की राजधानी भी। यह जगह प्राचीन मंदिरों, सुनहरे पैगोडा, प्राकृतिक सुंदरता और मनमोहक गाँवों से भरपूर है, जिन्हें आप नेपाल के अपने दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल कर सकते हैं।
पशुपतिनाथ मंदिर: शिव :मसाने और बागमती : नेपाल की राजधानी काठमांडू में बागमती नदी के किनारे स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध और पवित्र हिंदू मंदिर है और दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है, जहाँ हिन्दू रीति-रिवाज और अंतिम संस्कार भी होते हैं।
कितनी अजीब बात है कि काशी की तरह यहाँ भी बाबा भोले नाथ बागमती नदी के किनारे मसाने के समीप ही बसते है। जनम जनम के फेरों से मुक्ति आप यहाँ अनवरत जलती चिताओं मैं देख सकते हैं। हमने भी देखी थी।
२०२५ : पुनः पहाड़ों की सैर : मुक्तिनाथ यात्रा : नेपाल के धौलागिरी और अन्नपूर्णा चोटियों के मध्य घाटियों में स्थित मुस्तांग जिले में स्थित,भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थ स्थल होने के साथ साथ और एक प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थल भी है, जहाँ अवलोकितेश्वर बुद्ध की पूजा की जाती है।
यह तीर्थ ३८०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ लक्ष्मी नारायण के साथ बुद्ध की भी मूर्ति आप देख सकते हैं।
मुक्ति नाथ गांव से इसके प्रवेश द्वार से मंदिर तक पहुंचने में समय २० मिनट का लगता है। यहाँ से पैदल चढ़ते हुए संख्या में लगभग ३०० सीढियाँ चढ़नी पड़ती है।
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गतांक से आगे : २
नेपाल : शोध शक्ति : यात्रा संस्मरण.
शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता रितु.
दार्जलिंग डेस्क.
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मुक्तिनाथ:लक्ष्मी और सरस्वती कुंड में पवित्र स्न्नान
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मुक्तिनाथ:लक्ष्मी और सरस्वती कुंड में पवित्र स्न्नान करती शक्ति : शक्ति.डॉ.सुनीता भारती रितु
यह तीर्थ ३८०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है शायद विश्व का सबसे ऊँचा श्री लक्ष्मी नारायण का मंदिर है।
१०८ जल की नल धाराओं ,२ पवित्र तालाब यथा लक्ष्मी व सरस्वती कुंड : और यहाँ १०८ जल कुंड तथा धुँए की धारा हैं,जहाँ श्रद्धालु पवित्र स्नान करते हैं। हिमालय से निसृत होती १०८जल कुंड धाराओं के ठंडे जल में स्नान करना एक खास आध्यात्मिक अनुभव है।
मुक्तिनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है मंदिर परिसर के पीछे १०८ जल की हिमालय निःसृत नल धाराएं, व २ पवित्र कुंड यथा लक्ष्मी व सरस्वती कुंड है। कहते है १०८ जल की नल धाराओं ,२ पवित्र तालाब यथा लक्ष्मी व सरस्वती कुंड में स्नान करने से जन्म जन्मांतर के पाप धुलते हैं। शक्ति ने कितने लोगों को पंक्ति बद्ध होते हुए इस जल धारा में स्न्नान करने के पश्चात लक्ष्मी व सरस्वती कुंड में डूबकी लगाते हुए देखा था।
सर्द पानी। बर्फानी हवा। पानी में प्रवेश करते ही लगे की शरीर जम जाए। लेकिन लक्ष्मी नारायण के हांथों से मुक्ति जो पानी है। और यहाँ हिमाचल के ज्वाला देवी की तरह जमीन से निकली प्राकृतिक गैस की ज्वाला भी है।
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साभार शॉर्ट रील : नेपाली भाषा : दार्जलिंग डेस्क
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मुक्तिनाथ मंदिर मा हवा चले सर....र.. र ..आ
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मुक्तिनाथ पहुँचने के सीमित रास्ते : पोखरा से मुक्तिनाथ पहुँचने के सीमित रास्ते हैं। मुख्य रास्ते हैं ट्रैकिंग,पैदल यात्रा, गाड़ी से जाना, हवाई जहाज़ या हेलीकॉप्टर से उड़ान भरना। आप मुक्तिनाथ के लिए निजी जीप या सार्वजनिक बस ले सकते हैं या पोखरा से जोमसोम के लिए हवाई जहाज़ लेकर जीप या टैक्सी से मुक्तिनाथ पहुँच सकते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार पोखरा से सुबह शाम चलने वाली बसों का किराया १५०० रुपया मात्र है।
फिर लगभग ३०० सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं तब ३८०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित मुक्ति नाथ आप पहुंचेंगे।
मुक्तिनाथ.नेपाल हरि दर्शन के लिए मुक्ति की खोज में हम.कोलाज. शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता रितु
क्या देखें : यात्रा का महत्व : मोक्ष का द्वार : मुक्तिनाथ का अर्थ ' मुक्ति का देवता ' है, और यहाँ आने से जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है, ऐसा माना जाता है।
हिंदू-बौद्ध संगम : यह हिंदुओं के १०८ दिव्य देशों में से एक है और बौद्धों के लिए भी पूजनीय है, जहाँ अवलोकितेश्वर ( बुद्ध ) की पूजा होती है।
गोमुख से निकलती पवित्र जल धाराएं व कुंड: मंदिर परिसर में १०८ गौमुख से हिमालय का जल निकलता है, जिसमें भक्त डुबकी लगाते हैं, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।कहा जाता है कि १०८ जल की धारा में स्नान करने से मुक्ति मिलती है। इस जल धारा में स्नान करने के बाद मंदिर परिसर में बने कुंड में भी डूबकी लगाई जाती है।
यात्रा के मुख्य पड़ाव में कागबेनी : यह एक पवित्र गाँव है जहाँ भक्त अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करते हैं, जिससे उन्हें शांति और मुक्ति मिलती है।
ज्वाला माई : मंदिर के पास एक प्राकृतिक गैस से जलने वाली लौ ज्वाला भी है।
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नेपाल : शोध : शक्ति : यात्रा संस्मरण.
शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता रितु.
दार्जलिंग डेस्क.
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गतांक से आगे : मुक्ति नाथ यात्रा
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मारफा : पत्थरों के घर
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लेकिन धड़कती हैं दिल में , पहाड़ी देव शक्ति की सभ्यता और संस्कृति
पत्थरों के घरों में दिल : धड़कती हैं सभ्यता और संस्कृति :कोलाज : डॉ.सुनीता रितु अनुभूति
मार्फा : गाँव : मुक्ति नाथ से ४० किलोमीटर पहले मारफा नेपाल के मस्तांग जिले का एक सुरम्य गाँव है। निचले मस्तंग क्षेत्र की काली गंडकी घाटी में २६५० मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह गाँव एक पर्यटन केंद्र है।इसकी सुंदर गलियों और भव्य बाग़बानी ने एक अनोखा माहौल बनाया है। यहाँ आप पारंपरिक संस्कृति और भावपूर्ण सौंदर्य को अनुभव कर सकते हैं।
यह प्राचीन गांव अन्नपूर्णा सर्किट ट्रेक का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहां से हिमालय के मनमोहक दृश्य दिखाई देते हैं और नेपाल के पारंपरिक पहाड़ी जीवन की झलक मिलती है। मारफा अपने सफेदी किए हुए घरों, पत्थर की सड़कों और स्वादिष्ट सेब ब्रांडी के उत्पादन के लिए जाना जाता है।
मारफा गांव के प्रमुख आकर्षण थाकाली संस्कृति संग्रहालय, पुराना मठ, सेब के बाग, काली गंडकी नदी, और स्थानीय बाज़ार आदि हैं जिन्हें पर्यटक घूम सकते हैं। पत्थर के बने मकान अत्यंत मनभावन दिखते हैं
कब जाएँ : यात्रा के लिए सितंबर - नवंबर और मार्च - जून का समय सबसे अच्छा है, और आप पोखरा से हवाई जहाज या जीप द्वारा जोमसोम पहुँचकर, फिर जीप और पैदल चलकर मंदिर तक पहुँच सकते हैं, जहाँ लगभग ३०० सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। ३८०० मीटर की ऊंचाई है। इसलिए सर्दी होगी जरूर जानें। गर्म कपड़े दास्तानें मफ़लर शॉल ,चश्में जरूर रखें।
कैसे पहुँचें : काठमांडू / पोखरा : यात्रा की शुरुआत नेपाल की राजधानी काठमांडू या खूबसूरत शहर पोखरा से होती है।
हवाई मार्ग जोमसोम : पोखरा से जोमसोम सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा के लिए छोटी उड़ान भरें या फिर जीप से जाएं।
सड़क मार्ग पहले दिन की यात्रा : पहले दिन की यात्रा पोखरा से शुरू होगी और कुसमा और बेनी होते हुए तातोपानी पहुँचेगी। यात्रा के बीच में, हम देवी की पूजा करने के लिए गैलेश्वर मंदिर में कुछ देर रुकेंगे। तातोपानी पहुँचने के बाद आप प्राकृतिक गर्म पानी के झरने का आनंद ले सकते हैं और आराम कर सकते हैं। पोखरा से बेनी तक लगभग तीन घंटे की ड्राइव है, लगभग पूरी सड़क पर। कभी-कभी, निर्माण प्रक्रिया आपको यह महसूस करा सकती है कि यह पूरी तरह से काली सड़क नहीं है।
दूसरे दिन की यात्रा : दूसरे दिन की यात्रा सुबह-सुबह शुरू होगी और दुनिया की सबसे गहरी खाई, लारजंग, तुकुचे, मारफा ,जोमसोम, कागबेनी और झारकोट गाँव से होते हुए रानीपौवा पहुँचेगी।
मुक्तिनाथ दर्शन के बाद, एक ही दिन में कागबेनी की खोज करते हुए पोखरा वापस लौटेगी।
जीप या कार से पवित्र मुक्तिनाथ की यात्रा करने पर आपको भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होगा, और यात्रा के अंत में यह पूरी तरह से सार्थक होगी। बेनी से, तातोपानी, घासा, लेटे, कोबांग और मार्फा होते हुए जोमसोम तक लगभग पाँच घंटे की ड्राइव है। यह पूरी तरह से उबड़-खाबड़ सड़क है।
याने कुल मिला के आठ से नौ घंटे का रास्ता है।
जोमसोम से मुक्तिनाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए जीप, पैदल या घोड़े / पालकी पहाड़ी चढ़ाई के लिए का उपयोग करें।
पोखरा से मुक्तिनाथ यात्रा एक आनंददायक यात्रा है जो नेपाल की आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता का संगम है।
यह देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में डूबने और हिमालय के दुर्गम प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने का एक अनूठा अवसर है। बस, कार ,जीप द्वारा मुक्तिनाथ तीर्थ यात्रा एक ऐसा अनुभव है जो आपको जीवन भर याद रहने वाली यादें देगा।
ध्यान रखने योग्य बातें : मार्च से जून और सितंबर से नवंबर तक का मौसम यात्रा के लिए सबसे अच्छा होता है, जब मौसम सुहावना और रास्ते साफ होते हैं।
ऊँचाई और ठंड के कारण, गर्म कपड़े, अच्छे जूते और दवाइयाँ साथ रखें।
यात्रा से पहले शारीरिक रूप से फिट रहें क्योंकि रास्ते चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
मंदिर के अंदर तस्वीरें लेना वर्जित है। यदि आप प्रेस से है,स्थापित ब्लॉगर है, लेखक हैं,फ़िल्म कार हैं तो मंदिर प्रबंधन से अनुमति लेकर फोटो खींच सकते हैं।
दूरी : पोखरा से मुक्तिनाथ लगभग १७५ किलोमीटर है.
पोखरा से कुशमा भाया बागलुंग ७० किलोमीटर,
बागलुंग से बेनी ३० किलोमीटर,
बेनी से तातोपानी ( गर्म पानी ) २२ किलोमीटर,
तातोपानी से लेते १६ किलोमीटर,
लेते से मारफा २० किलोमीटर,
मारफा से जोमसोन ( हवाईअड्डा ) ८ किलोमीटर ,
जोमसोन से मुक्तिनाथ २४ किलोमीटर है.
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स्तंभ संपादन : शक्ति शालिनी रेनू माधवी.
स्तंभ सज्जा : शक्ति मंजिता सीमा अनुभूति.
Like other series,this page also begins with a nice look,and an impressive start...
ReplyDeleteThe blog page related to Lord Krishna and RadhaRani reflects the 'nishchhal prem aur bhakti ' for each other.They are emblem of selfless love and affection. Here they unfold the inner feeling of the real situation of the lives of Lord Krishna and RadhaRani full of mental agony and perpetual love for each other.Mr Madhup Raman 's collection is praiseworthy and attract silent clapping indeed!
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