Radhika Krishna : Darshan Alekh : Dr. Madhup Sunita.
©️®️M.S.Media.
Shakti Project.
कृण्वन्तो विश्वमार्यम.
In association with.
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डॉ.मधुप.
शक्ति. सुनीता.
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विषय सूची.
सम्पादकीय : राधिका कृष्ण दर्शन : आलेख : पृष्ठ :
शक्ति : विचार धारा : जीवन दर्शन : राधिकाकृष्ण : रुक्मिणी : पृष्ठ : २
शक्ति : विचार धारा : जीवन दर्शन : दृश्यम : राधिकाकृष्ण प्रेरित : लघु फिल्में : पृष्ठ : ३
राधिकाकृष्ण : रुक्मिणी : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : ४
आपने कहा : पृष्ठ : ५.
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सम्पादकीय : राधिका कृष्ण दर्शन : आलेख : पृष्ठ.
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: सम्पादकीय : राधिका कृष्ण दर्शन : आलेख : १ / २ / १.
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आलेख : डॉ.मधुप.
शक्ति. डॉ.सुनीता.
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शक्ति. डॉ.सुनीता.
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आत्म जीवन संघर्ष : महाभारत : यक्ष प्रश्न १ / २ / ९ .
आत्म जीवन संघर्ष : महाभारत : यक्ष प्रश्न
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लघु नाटिका : पात्र : कल्पना
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शक्ति. ©️®️ डॉ. सुनीता मधुप
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फोटो : साभार
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लघु नाटिका : पात्र : कल्पना.
अर्जुन : माधव
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( रंगमंच जीवन से पर्दा उठता है : आत्म जीवन महाभारत का दृश्य )
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अर्जुन : आत्म जीवन संघर्ष क्या है ..... महाभारत कहाँ हैं, माधव... ?
माधव : स्वयं के भीतर .... कुरुक्षेत्र में ......जो तटीय मैदान में है इंद्रप्रस्थ के समीप....
अर्जुन : पितामह, धृतराष्ट्र, द्रोण, संजय ,शकुनि, दुर्योधन, दुःशासन, शिशुपाल और पौंड्रिक आदि कहाँ मिलेंगे ....?
माधव : अपने आस पास ...ध्यान से देखो .....ज्ञात करो..तुम्हें मिल ही जायेंगे
अर्जुन : जीवन में महाभारत क्या होता है.....आत्म संघर्ष क्या हैं, माधव ?
माधव : स्वयं के भीतर का संघर्ष .....छल , प्रपंच, असत्य , अपमान तथा अधर्म के विरुद्ध आत्म संघर्ष करते हुए धर्म की संस्थापना के लिए सतत प्रयास रत रहना......ही जीवन का सही उदेश्य है....
अर्जुन : क्या पाप ,असत्य, और अधर्म विजित होगा ?
माधव : कदापि नहीं ! पार्थ ....
अर्जुन : जीवन की सदगति क्या है , माधव ?
माधव : सम्यक ' साथ ', सम्यक ' दृष्टि ',' और सम्यक ' कर्म ' ही प्रत्येक का सम्यक लक्ष्य होना चाहिए
अर्जुन : सन्मार्ग कहाँ, कैसा और क्या होगा ?
माधव : सन्मार्ग ! प्रदूषण रहित पर्वत के उस पार जहाँ निर्मल बद्रिका आश्रम है। आगे ...सतोपंथ है ...और ठीक इससे जुड़ी हैं स्वर्गारोहण की सीढ़ियां ?... पार्थ ....
अर्जुन : हम स्वर्ग पहुँच जायेंगे ...... हममें से कौन स्वर्ग जायेगा ?
माधव : आप में से कोई भी नहीं ..... केवल युधिष्ठर.
( जीवन रंगमंच पर पर्दा पुनः गिरता है )
मन पावन मन भावन जो यमुना में नहाय.आलेख : १ / २ / ८.
मन पावन, मन भावन जो यमुना में नहाय.
निर्दोष, निर्मल, दुग्ध धवल,और स्वच्छ होना ही होगा :यमुनोत्री दर्शन : फोटो : शक्ति. दया जोशी
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लेखन : शक्ति. प्रिया @ डॉ. सुनीता मधुप.
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मन चंगा तो कठौती में गंगा : मन में ही तीर्थ है। मन में ही धरम करम है। सदैव सत्कर्म करते रहो। सम्यक ' समय ' ,साथ ' और ' सत्य ' की खोज में लगे रहो। दुर्जनों के ' परित्याग ' में क्षण भर का ' विलम्ब ' मत करो तुम केवल सम्यक ' साथ 'ढूँढो तुम्हारी ' सोच ' , ' दृष्टि ' और ' वाणी ' स्वतः समृद्ध हो जाएगी, मेरा मानना है। प्रयत्न ऐसा करो कि तुम किसी का भला न कर सको तो बुरा कदापि न करो। स्वर्ग नरक, कर्मों का लेखा जोखा यही होना है। कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसा हम रोए, ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोए राधिका कृष्ण सदा सहायते की तरह आपको भी आर्य जनों के लिए समर्थक होना चाहिए।
भगवान कृष्ण और यमुना नदी : कृष्ण के लिए यमुना तट प्रिय रहे। मथुरा ,गोकुल यमुना किनारे माधव की समस्त लीलाओं के साक्षी रहे है। कृष्ण बंशी की धुन में ही गोपियों संग जीवन के संयोग - वियोग का राग ढूंढते रहें। पिछले दिनों मैं यमुनोत्री की यात्रा पर था मन पावन मन भावन जो यमुना में नहाय। भगवान कृष्ण और यमुना नदी का गहरा संबंध है। कृष्ण के जन्म के बाद, उनके पिता वासुदेव नवजात शिशु कृष्ण को गोकुल ले जाते समय यमुना नदी को पार करते हैं। यमुना नदी को देवी माना जाता है और यह भी माना जाता है कि वह कृष्ण की पत्नी थीं।
कृष्ण और यमुना नदी का संबंध : वासुदेव द्वारा यमुना पार करना सब जानते है। कृष्ण के जन्म के बाद, वासुदेव उन्हें मथुरा से गोकुल ले जाते समय यमुना नदी को पार करते हैं। यमुना का कृष्ण के प्रति प्रेम:यमुना नदी को कृष्ण के प्रति बहुत प्रेम था और वह कृष्ण के चरण छूने के लिए उफनती थी, ऐसा पौराणिक कथाओं में वर्णित है। यमुना नदी में कालिया नाग नामक एक जहरीले सांप का वास था, जिसे कृष्ण ने हराया था। मुक्ति दिलवायी थी
यमुना नदी को कृष्ण की पत्नी : कालिंदी : यमुना का कृष्ण की पत्नी के रूप में वर्णन: कुछ मान्यताओं के अनुसार, यमुना नदी को कृष्ण की पत्नी माना जाता है, जिसे कालिंदी भी कहा जाता है। राधिका कृष्ण सदा सहायते की तरह आपको भी आर्य जनों के लिए समर्थक होना चाहिए।
सारतः यमुना नदी और कृष्ण का अटूट संबंध है, कभी न भूलने वाला । यमुना नदी : लहरें : बंशीवट की छैया : कृष्ण के जन्म, बाल लीलाओं और कालिया नाग के वध जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ी हुई है। यमुना नदी को देवी के रूप में पूजा जाता है और कृष्ण के प्रति उनका प्रेम बहुत गहरा है.
स्तंभ संपादन : सह लेखन : शक्ति. प्रिया @ डॉ.सुनीता मधुप.
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ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:
मातृ दिवस : माता देवकी : यशोदा ने दिए माधव में उन्नत संस्कार.
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* साभार :माता यशोदा : बालक श्री कृष्ण कोलाज ये ले अपनी लकुट कमरिया तूने बहुते ही नाच नचाओ , ...मैया मोरी मैंने नहीं माखन खायो |
मातृ दिवस : उन्नत संस्कार : सहन शक्ति और समझ शक्ति आलेख : आलेख : १ / २ / ७ . पृष्ठ : .
डॉ. मधुप.
शक्ति. डॉ. सुनीता
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आज से ५२२७ वर्ष पूर्व, द्वापर के ८६३८७५ वर्ष बीतने पर भाद्रपद मास में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में, बुधवार के दिन श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। श्री कृष्ण द्वापर युग में हरि के अवतरण थे।
यह मंत्र भगवान कृष्ण का एक प्रसिद्ध मंत्र है, जो उन्हें वासुदेव पुत्र, हरि, परमात्मा और गोविंद के रूप में संबोधित करता है। यह मंत्र भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करता है।
माता देवकी : यशोदा : बालक श्री कृष्ण में उन्नत संस्कार : वासुदेव माता देवकी के गर्भ से कारागार में पैदा हुए माता यशोदा व बाबा नंद ने उन्हें पाला। दोनों माताओं से उन्हें उन्नत संस्कार मिला। माता यशोदा ने जब जब गोपियों से अन्य से कृष्ण की शिकायत सुनी तो वह पुत्र मोह में अंधी नहीं हुई। उन्हें दण्डित किया। ओखल से बांध भी दिया।
मटकी फोड़ने, माखन चोरी करने, गोपियों को तंग करने जैसे आरोप भी प्रभु पर लगे। निरंतर के शिकायत से वो बहुत खीज गई थी ।
कान्हा भी अपने सुतर्क ये ले अपनी लकुट कमरिया तूने बहुते ही नाच नचाओ , ...मैया मोरी मैंने नहीं माखन खायो आदि से माँ यशोदा को संतुष्ट करने का प्रयास करते रहें। लेकिन अपनी माँ को भावुक होता देखकर उन्होंने माखन खाने की बात भी कबूली।
यह मंत्र भगवान कृष्ण का एक प्रसिद्ध मंत्र है, जो उन्हें वासुदेव पुत्र, हरि, परमात्मा और गोविंद के रूप में संबोधित करता है। यह मंत्र भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करता है।
श्री हरि अनंत हुए जिनकी शक्ति ही शिव ( कल्याणकारी ) बनी । हम सबों के लिए परम ईश्वर है। वह सर्वशक्ति मान हैं ,पालनकर्ता हैं अजन्मा हैं । वो सर्वव्यापी है। अंतर्यामी है। वो सब कुछ देखते हैं ,सब कुछ समझते हैं वह मर्मज्ञ हैं । केवल न्याय - अन्याय , सत्य - असत्य, धर्म - अधर्म की विवेचना में सलग्न रहते हैं । जगत कल्याण की खोज में अनवरत लगे हुए है, परमेश्वर ।
श्री हरि अनंत हुए जिनकी शक्ति ही शिव ( कल्याणकारी ) बनी । हम सबों के लिए परम ईश्वर है। वह सर्वशक्ति मान हैं ,पालनकर्ता हैं अजन्मा हैं । वो सर्वव्यापी है। अंतर्यामी है। वो सब कुछ देखते हैं ,सब कुछ समझते हैं वह मर्मज्ञ हैं । केवल न्याय - अन्याय , सत्य - असत्य, धर्म - अधर्म की विवेचना में सलग्न रहते हैं । जगत कल्याण की खोज में अनवरत लगे हुए है, परमेश्वर ।
दिव्य मातायें : यथा कौशल्या, कैकयी,सुमित्रा, देवकी तथा यशोदा : मातृ प्रदत उन्नत संस्कार प्रभु में श्री हरि : लक्ष्मी नारायण अपने राम कृष्ण के स्वरूपों में अपनी दिव्य माताओं यथा कौशल्या, कैकयी,सुमित्रा, देवकी तथा यशोदा को अपने संस्कारों के लिए स्मृत करते है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपनी माता कैकयी के कहने पर सम्पूर्ण राज पाठ त्याग कर दिया।
मदर्स डे या कहें मातृ दिवस को मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। दरअसल मातृ-दिवस वह अवसर होता है जब बच्चा अपनी मां के प्रति अपने प्यार को व्यक्त करता है। वैसे, मां के लिए तो हर एक दिन खास होता है। पूरी दुनिया में एक मां ही है, जो जन्म के बाद से हर पल, हर सुख-दुख में किसी चट्टान की तरह अपने बच्चों के साथ खड़ी रहती है। वो अपने बच्चों में श्रेष्ठ संस्कार देखना चाहती है।
बाल काल से ही श्री कृष्ण जन मानस को कष्टों से बचाते रहें। पूतना, तृणावृत्त, नरकासुर, का वध किया। कालिया नाग का दमन किया तथा इंद्र प्रकोप से उन्होंने गोवर्धन धारण कर बचाया।
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
धर्म संस्थापनार्थाय : संभवामि युगे युगे वाले माधव : समाज में जब शोषक लोग बढ गये, दीन-दुःखियों को सतानेवाले तथा कंस , जरासंध ,चाणूर और मुष्टिक जैसे पहलवानों व दुर्जनों का पोषण करनेवाले क्रूर राजा बढ गये, तो समाज ‘ त्राहिमाम् ‘ कर प्रभु को पुकार उठा, सर्वत्र भय व आशंका का घोर अंधकार छा गया, तब अमावस में ही कृष्णावतार हुआ ।
हम भक्त लोग ‘ श्रीकृष्ण कब अवतरित हुए ’ इस बात पर ध्यान नहीं देते बल्कि ‘ उन्होंने क्या कहा ’ ,' क्या किया ' उनकी वाणी क्या थी , कर्म क्या थे ? इस बात पर अधिक ही ध्यान देते हैं, उनकी लीलाओं पर ध्यान देते हैं। भक्तों के लिए श्रीकृष्ण प्रेमस्वरूप हैं और ज्ञानियों को श्रीकृष्ण का उपदेश बड़ा प्यारा न्यारा लगता है .
महाभारत काल में वे सदैव धर्म संस्थापना के लिए प्रयासरत रहे व दिखे। गीता ज्ञान में , कुरुक्षेत्र में उन्होंने कहा हे भरतवंशी अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब - तब ही मैं अपने साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधुजनों ( भक्तों ) की रक्षा करने के लिए, पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की भलीभाँति स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।’
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शॉर्ट रील : साभार
संभवामि युगे युगे वाले माधव : कृष्ण और अर्जुन
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आभार
स्तंभ संपादन. शक्ति. माधवी प्रीति रीता तनु सर्वाधिकारी
पृष्ठ सज्जा : महाशक्ति मीडिया.
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दुर्योधन : शिशुपाल : अपमान : चरित्रहीनता : धैर्य और श्रीकृष्ण की असीम सहनशक्ति :
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शक्ति,धर्म अधर्म समझ की आलेख : १ / २ / ६ .
माधव मेरे आदर्श : मनभावन इष्ट देव : माधव मेरे इष्ट देव है। मैं उनके जीवन के सभी रंगों, मर्यादा को अपनाने की भरसक कोशिश करता हूँ। एक योग्य , कूटनीतिक,रणनीति कार शासक, एक भावुक, बांसुरी बादक प्रेमी (राधा ) , एक उत्तरदायी पति ( रुक्मिणी ) , एक संवेदन शील मित्र ( सुदामा ) ,सखा, नारी शक्ति सम्मान ( पांचाली ) के संरक्षक रहें हमारे मुरारी।
श्री राधिकाकृष्णअपने प्रिय जनों के लिए सदा सहायते रहें . ब्रज ,गोकुल ,मथुरा हो या द्वारिका प्रभु सदैव अपने भक्त की रक्षार्थ वर्तमान रहें। कभी भी किसी भी परिस्थिति में,विपदा में सम्यक स्वजनों का साथ।
पूतना वध, कालिया नाग दमन , देव राज इंद्र के अहंकार का दमन कर गोवर्धन धारण करना आदि कई एक उद्हारण है जो मधुप चित वाले माधव के ह्रदय में है।
लघु फिल्में
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शॉर्ट फिल्म : कृष्ण है विस्तार यदि तो सार है राधा.
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हरि जब अवतरित हो रहें थे तो युग के अनुसार अपने को आवश्यक कलाओं से युक्त कर रहें थे। त्रेता युग के मर्यादा पुरुषोतम राम में चौदह कलाएं थी। जब नारायण द्वापर युग में अवतरित हो रहें थे तब कलयुग का आगमन होना था। अधर्म,छल प्रपंच बढ़ रहा था। इसलिए माधव योगीराज श्री कृष्ण में सोलह कलाएं थी। अत्याचार,अधर्म,छल प्रपंच के प्रतीक,कंस ,शकुनि, शिशुपाल तथा पौंड्रिक के विरुद्ध उनमें लड़ने की विशेष क्षमता थी।
असीम सहनशक्ति में कृष्ण की समझ शक्ति : भगवान कृष्ण सदैव से आम जीवन में असीम सहनशक्ति और धैर्य के प्रतीक रहें हैं। उनके जीवन में कई ऐसे अप्रतिम उदाहरण हैं जो उनकी सहनशक्ति को दर्शाते हैं, यथा कंस के अत्याचारों का सामना करना, शिशुपाल वध , हस्तिनापुर युवराज दुर्योधन से पांडवों के मात्र पांच गांव मांगे जाने का संधि प्रस्ताव आदि । और कुरुक्षेत्र में अधर्म के विरुद्ध अर्जुन को तत्पर करने के निरंतर गीता का उपदेश देना आदि . भगवान कृष्ण ने हमेशा दूसरों के प्रति सहिष्णु और धैर्यवान रहने का संदेश दिया है. सहनशक्ति के उदाहरण आज हमारे समक्ष हैं :
कंस के अत्याचारों का सामना : कंस मथुरा के नृप थे। स्वयं के रिश्तें में मामा लगते थे। उनके माता पिता वासुदेव देवकी को उसने बंदी बना रखा था। अत्याचार की परकाष्ठा बन गए थे। कृष्ण ने कंस के अत्याचारों का सामना करते हुए भी कभी भी अपना धैर्य नहीं खोया, बल्कि उन्होंने हमेशा सत्य और न्याय के मार्ग पर चलते हुए धर्म की संस्थापना के लिए का प्रयासरत रहें . लेकिन अंततः कंस के वध के साथ उन्होंने मथुरा वासी को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलवाई।
शिशुपाल की ईर्ष्या : चेदि नरेश शिशुपाल भी उनके रिश्ते में भाई लगते थे। ममेरे भाई थे कृष्ण। माधव की बढ़ती यश, लोकप्रियता उनके संम्मान से अत्यंत चिढ़ते थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण को दिए गए मान - सम्मान देखकर शिशुपाल को अनावश्यक ईर्ष्या हुई और उसने श्रीकृष्ण को अपमानित करना शुरू कर दिया। उन्हें न जाने कौन कौन सी गालियां दी ,चरित्रहीन कहा ,निम्न कहा।
श्रीकृष्ण ने भाई रहे शिशुपाल की सौ गलतियों को क्षमा करने का वचन दिया था। इसलिए जब शिशुपाल ने १०० अपशब्द कह दिए, तो भी श्रीकृष्ण ही मुस्कुराते रहें। माधव ने उसे आगे न करने के लिए चेतावनी भी दी, उसकी १०० वी गलतियों का भान भी करवाया, लेकिन शिशुपाल नहीं माने।
उनकी नियति तो कुछ और लिखी हुई थी । ज्योही चेतावनी के बाबजूद शिशुपाल ने १०१ वां अपशब्द कहा, तो श्रीकृष्ण ने भरी सभा में सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। इस तरह शिशुपाल का वध हुआ. शिशुपाल वध में कृष्ण के जीवन में उनकी सहनशक्ति का उच्चतम प्रदर्शन था।
दुर्योधन : हस्तिनापुर : और संधि प्रस्ताव : महाभारत युद्ध को टालने के लिए श्री कृष्ण ने कौरवों से पांडवों के लिए केवल पांच गांव देने का प्रस्ताव रखा था। इन गांवों में इंद्रप्रस्थ ( दिल्ली ), स्वर्णप्रस्थ ( सोनीपत ), पांडुप्रस्थ ( पानीपत ), व्याघ्रप्रस्थ ( बागपत ) और तिलप्रस्थ ( तिलपत ) शामिल थे। दुर्योधन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और युद्ध हुआ। दुर्योधन का इनकार:दुर्योधन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि वह पांडवों को एक सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं देगा। युद्ध:दुर्योधन के इस इनकार के कारण महाभारत का युद्ध हुआ।
युद्ध से अर्जुन का इंकार और प्रभु का अर्जुन को गीता का उपदेश : युद्ध के मैदान में अर्जुन के दुविधा में होने पर, कृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया, जिसमें उन्होंने कर्म, भक्ति, और ज्ञान के महत्व को समझाया। यह उपदेश सहनशक्ति, धैर्य, और निष्ठा की शिक्षा प्रदान करता है.
अन्य लोगों के साथ सहिष्णुता : कृष्ण ने हर किसी के साथ प्रेम और सहिष्णुता से व्यवहार किया, चाहे वे उनके मित्र हों, शत्रु हों, या सामान्य व्यक्ति हों.
सहनशक्ति का महत्व : जीवन की कठिनाइयों का सामना:सहनशक्ति जीवन की कठिनाइयों का सामना करने और उनसे उबरने में मदद करती है.
दूसरों के साथ संबंध: सहनशक्ति दूसरों के साथ बेहतर संबंध बनाने और एक-दूसरे को समझने में मदद करती है.सहनशक्ति को बढ़ावा देने के लिए :सहिष्णुता का अभ्यास करें :हर किसी के साथ सहिष्णु और धैर्यवान बनें, चाहे वे आपसे अलग राय रखते हों या नहीं.
आत्म-नियंत्रण : सहनशक्ति आत्म-नियंत्रण और धैर्य विकसित करने में मदद करती है, जो जीवन में सफलता के लिए आवश्यक हैं. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें : क्रोध, ईर्ष्या, और अन्य नकारात्मक भावनाओं पर नियंत्रण रखें, जो सहनशक्ति को कम कर सकती हैं.
अन्य लोगों की बात सुनें : दूसरों की बात ध्यान से सुनें और उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें.
सकारात्मक सोच रखें : सकारात्मक सोच रखें और जीवन की कठिनाइयों को भी सकारात्मक रूप से देखने का प्रयास करें.
संक्षेप में, भगवान कृष्ण सहनशक्ति और धैर्य के प्रतीक हैं, और उनकी शिक्षाएं हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने और दूसरों के साथ बेहतर संबंध बनाने में मदद करती हैं.
महाशक्ति मीडिया. शक्ति * प्रस्तुति : साभार.
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शिशुपाल वध : दृश्यम : लघु फिल्में :
मौन रहो शिशुपाल.
हे माधव : मुझे भी सौ अपराधों को क्षमा प्रदान करने जैसी ' सहन शक्ति ' व
' समझ शक्ति ' प्रदान करना
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आभार
स्तंभ संपादन. शक्ति. माधवी प्रीति रीता तनु सर्वाधिकारी
पृष्ठ सज्जा : महाशक्ति मीडिया.
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अक्षय तृतीया : श्री लक्ष्मी नारायण : श्री राधिका कृष्ण से जुड़ी मान्यताएं : आलेख : १ / २ / ५.
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स्नान दान चिंतन मनन का महापर्व अक्षय तृतीया :
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अस्यां तिथौ क्षयमुपैति हुतं न दत्तं तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया
उद्दिश्य दैवतपितॄन्क्रियते मनुष्यैः तच्चाक्षयं भवति भारत सर्वमेव
भावार्थ
अर्थात, इस तिथि को दिए हुए दान तथा किए गए हवन का क्षय नहीं होता।
इसलिए मुनियों ने इसे अक्षय तृतीया कहा है.
बद्री विशाल के दर्शन : आज के ही दिन उत्तराखंड चमोली जिला स्थित बद्रीनाथ में भगवान बद्री विशाल के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। मुझे याद है हम अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान बद्री विशाल के दर्शन करने जा रहें थे। कुछ मेरे अपने दिल के रिश्तें निभाने वाले भद्र जन भी साथ थे। हरिद्वार से हमने यह सम्यक दर्शन यात्रा शुरुआत की थी। गोविन्द घाट और पंच प्रयाग के साक्षात् होने थे।
सच कहें सम्यक साथ ही मेरे लिए तीर्थ हैं जो मुझे सम्यक सोच व कर्म के लिए प्रेरित करता रहता है। इसलिए सदैव सम्यक वाणी वाले लोगों का सम्यक साथ रखिए सब शिव शिव होगा। यहीं सत्य है यही सुन्दर है। श्री हरि राम कृष्ण जैसी सहन शक्ति व समझ शक्ति रखें संत कवीर जैसे चैतन्य हो जायेंगे।
देवी शक्ति अन्नपूर्णा का जन्म : आखा तीज के दिन ही देवी अन्नपूर्णा का जन्म भी हुआ था। अन्नपूर्णा देवी हिन्दुओं द्वारा पूजित एक देवी हैं। उनका दूसरा नाम 'अन्नदा' है। वे शक्ति की ही एक रूप हैं। ... अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है।
श्री लक्ष्मी नारायण से जुड़ी मान्यताएं : अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र व गङ्गा स्नान करके और शान्त चित्त होकर, भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है।
आज के ही दिन उत्तराखंड चमोली जिला स्थित बद्रीनाथ में भगवान बद्री विशाल के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं।
भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम : अक्षय तृतीया को हिंदू भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मदिन मानते हैं। वैष्णव मंदिरों में उनकी पूजा की जाती है। जो लोग इसे परशुराम के सम्मान में मनाते हैं, वे कभी-कभी इस त्यौहार को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाते हैं। वैकल्पिक रूप से, कुछ लोग विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण पर अपनी श्रद्धा केंद्रित करते हैं।
ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है। भगवान विष्णु और शक्ति लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है।भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। पूजा-अर्चना करते समय कई भक्त भगवान परशुराम के भजन भी गाते हैं।
श्री राधिका कृष्ण से जुड़ी मान्यताएं : वृन्दावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। पद्म पुराण के अनुसार इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता।
यह वह दिन था जब भगवान कृष्ण ने अपनी सारी संपत्ति और सौभाग्य अपने गरीब किन्तु सबसे अच्छे मित्र सुदामा को दे दिया था। अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम की जयंती भी माना जाता है। इस दिन भारत के विभिन्न राज्य और अक्षय तृतीया की परम्पराएं : बुन्देलखण्ड में अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुम्ब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं। अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुण्ड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है। मालवा में नए घड़े के ऊपर खरबूजा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरम्भ किसानों को समृद्धि देता है।
अक्षय तृतीया : आलेख : स्तंभ संपादन आभार.
डॉ. प्रो. डॉ. ललिता वी साहित्यकार. महाराष्ट्र.
स्तंभ सज्जा आभार : शक्ति. स्मिता वाणी.
श्री लक्ष्मी नारायण : बद्री विशाल दर्शन : यूट्यूब लघु फिल्म
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यात्रा : गंगा से अलकनंदा तक ; बद्रीविशाल
संपादन : निर्माण : लेखन
डॉ. मधुप. शक्ति. डॉ. सुनीता.
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महाभारत के जीते चरित्र : व हमारे जीवन की सीख व दर्शन आलेख : १ / २ / ४ .
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अथ श्री महाभारत कथा
डॉ. मधुप रमण.
शॉर्ट रील : साभार.
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
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महाभारत सबने पढ़ी हैं। इसका सार निम्नलिखित मात्र पंक्तियों में है। समझें चाहे आप हिन्दू हों या किसी अन्य धर्म से, चाहे किसी लिंग से हो आप स्त्री हों या पुरुष, चाहे आप किसी वर्ग से सम्बन्ध रखते हो।
गरीब हों या अमीर,चाहे आप अपने देश में हों या विदेश में या प्रवासी रहें हो महाभारत के वर्णित चरित्रों में ही जीवन का सार,अर्थ छिपा है।
कौरव : वे संख्या में सौ थे। संक्षेप में, यदि आप मनुष्य है, तो नीचे दिए गए महाभारत के ये अनमोल सत्यापित वाक्य अवश्य पढ़ें, समझें और अपने जीवन में लाए । सच है कौरवों की सभा में ज्ञानी लोगों की कमी नहीं थी। कृपा चार्य , गुरु द्रोण, विदुर ,संजय,और सर्वोपरि स्वयं गंगा पुत्र भीष्म जैसे लोग थे ।
तथापि दुर्योधन व दुःशासन की अनुचित अन्याय सम्मत कर्म बढ़ ही रहे थे। द्रौपदी का चीर हरण, शांति का प्रस्ताव लाने वाले दूत कृष्ण के बंदी बनाने का निष्फल प्रयास या फिर कुरु राजसभा में शिशुपाल का अपमान किया जाना ,सभी घटनाएं कुरु सभा में ही हो रही थी।
सब मौन धारण किए हुए थे। शायद प्रशासकीय तौर पर राज धर्म से बंधे हुए थे। यदि आप समय रहते अपने बच्चों की अनुचित माँगों और इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते, तो आप जीवन में असहाय हो जाएँगे... जैसे कौरव के अनुचित मांगों के समक्ष समस्त धृतराष्ट्र पोषित कुरु वंश के समूल विनाश के साथ हुआ था। इसलिए जानकारी में कभी भी अधर्म का पक्ष न लें।
कर्ण : को याद रखें। कर्ण कुंती पुत्र थे। पांडवों के ज्येष्ठ थे। कृष्ण की माने तो कर्ण जैसा दानवीर और श्रेष्ठ धनुधर्र कोई नहीं था। यदि कृष्ण नहीं होते तो अर्जुन कर्ण को परास्त कदापि नहीं कर सकते थे। लेकिन परिणाम क्या हुआ सभी जानते हैं।
कुरु युवराज दुर्योधन दवरा दिए गए अंग प्रदेश राज्य से अपेक्षित कर्ण इतने अनुगृहित हुए व दबे कि अंततः अधर्मी युवराज दुर्योधन के पक्ष में महाभारत लड़ें। परिणाम भी विदित है।
पाठ है चाहे आप कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, यदि आप अधर्म का साथ देंगे, तो आपकी शक्ति, शस्त्र, कौशल और आशीर्वाद सब बेकार हो जाएँगे... यह कर्ण के चरित्र से प्रत्यक्ष होता हैं।
अश्वत्थामा : अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य को पुत्र था। युद्ध कौशल में निपुण। लेकिन उसने अनुचित रूप से ब्रह्मास्त्र का अभिमन्यु की पत्नी उतरा के गर्भ में पल रहें अजन्में अबोध शिशु परीक्षित के लिए प्रयोग कर दिया था जिसके लिए उसे अपने जीवन पर्यन्त दंड भोगना पड़ा था । सीख मिलती है अपने बच्चों को इतना महत्वाकांक्षी न बनाएँ कि वे अपने ज्ञान का दुरुपयोग करके सर्वनाश कर दें...जैसे अश्वत्थामा ने किया था।महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा के क्रूर कृत्य के लिए, भगवान श्रीकृष्ण ने उसे भयानक श्राप दिया था।
अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पुत्रों का वध किया था और उस अपराध के लिए श्रीकृष्ण ने उसे दंडित किया था। अश्वत्थामा ने कुरुक्षेत्र युद्ध में ब्रह्मास्त्र नामक एक निषिद्ध हथियार का प्रयोग किया था, जिससे बहुत विनाश हुआ था।
इसके बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने उसे दंडित करने के लिए उसके माथे से मणि निकाल ली थी। इस मणि को निकालने के बाद, अश्वत्थामा नश्वर हो गया और उसे एक दर्दनाक घाव हुआ जो कभी ठीक नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त, श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को कलियुग के अंत तक जीवित रहने और भटकने का श्राप भी दिया था।
भीष्म पितामह : कभी भी ऐसा वचन न दें कि आपको अधर्मियों के सामने समर्पण करना पड़े... भीष्म पितामह। भीष्म गंगा पुत्र थे। इच्छा मृत्यु का वरदान उन्हें प्राप्त था। कुरु साम्राज्य की प्रतिबद्धता उन्हें मूक दर्शक बनाती है। दुर्योधन के अत्याचार को पितामह होने के वावजूद भी सहन करते रहें। दुर्योधन को रोका नहीं। अंततः शिखंडी के समक्ष आने से वे मृत्यु को प्राप्त हुए।
दुर्योधन : धन, शक्ति, अधिकार और सत्ता का दुरुपयोग करने ,गलत काम करने वालों का साथ अंततः पूर्ण विनाश की ओर ले जाता है... दुर्योधन ने किसी की नहीं सुनी। यहाँ तक़ नारायण की भी नहीं। अपने अहंकार में सब कुछ भूल गया और समस्त कुरु वंश के नष्ट होने का कारण बना।
धृतराष्ट्र : सत्ता की बागडोर कभी भी अंधे व्यक्ति को न सौंपें, अर्थात जो स्वार्थ, धन, अभिमान, ज्ञान, आसक्ति या वासना से अंधा हो, क्योंकि इससे विनाश होगा..
अर्जुन : यदि ज्ञान के साथ बुद्धि भी हो, तो आप अवश्य विजयी होंगे... सौभाग्य उन्हें कृष्ण जैसे सखा , दोस्त गुरु व पथ प्रदर्शक मिले। गीता के ज्ञान को अपने भीतर रखा। देवत्व पर विश्वास रखा। धर्म विजय मिला।
शकुनि : छल-कपट से आपको हर समय सभी मामलों में सफलता नहीं मिलेगी... विनाश देखोगे, मारे भी जाओगे। यह स्मृत रखना। राक्षसी प्रवृतियां कभी भी दीर्घ जीवी नहीं होती।
युधिष्ठिर : युधिष्ठिर का सच विश्व प्रसिद्ध है। अपने सत्य व धर्म के निमित ही एकमात्र पांडव जो सतोपंथ से जिन्दा सशरीर स्वर्ग गए। यह विरले ही है। यदि आप नैतिकता, धर्म और कर्तव्य का सफलतापूर्वक पालन करते हैं, तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको नुकसान नहीं पहुँचा सकती... अंततः धर्म विजय प्राप्त होगी ही।
यह लेख सभी के पढ़ने समझने अपने जीवन में प्रयोग में लाने के लिए लाभदायक है, इसलिए कृपया इसे बिना किसी बदलाव के अपने भीतर अपनाये और अपने सगे सम्बन्धियों से साझा करें। मत भूले सर्वेभवन्तु सुखिनः - सर्वे सन्तु निरामयाः के सर्वकालिक सत्य सिद्धांत में ही विश्व कल्याण निहित है।
संपादन : प्रो. डॉ. ललिता वी
साहित्यकार. महाराष्ट्र.
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कृष्ण : नरकासुर और १६००० बंदी कन्याएं.आलेख : १ / २ / ३ .
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कृष्ण की मूल जीवन शक्तियाँ राधा : रुक्मिणी : सत्यभामा : जाम्वंती :
* राधा : कृष्ण : एकाकार.
*नरकासुर और बंदी बनाई गयी १६००० कन्याएं.
* मूल जीवन शक्तियां : रुक्मिणी : सत्यभामा : जाम्वंती.
सूरसेन के पुत्र, वासुदेव तथा बलराम जी है। बलराम जी के पुत्र निषस्थ उल्मुख है। सूरसेन की दो पुत्रियां थी , कुन्ती , तथा सुतसुभा थी। कुन्ती, के पुत्र कर्ण, युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन थे। इसलिए कभी कभी महाभारत के प्रसंग में अर्जुन व कृष्ण फुफेरे सखा व भाई होते है।
जन्म से ही बालक श्री कृष्ण के लिए संकटें और चुनौतियाँ समक्ष खड़ी थी। मथुरा के कारागार में जन्म लेने के उपरांत मां देवकी व पिता से अलग होना पड़ा। उन्हें गोकुल के नन्द बाबा यशोदा माँ के यहाँ पलना पड़ा। राजसी होने के बाद कमियों का सामना करना पड़ा। गायें चरानी पड़ी।
राधा : कृष्ण : एकाकार : अध्यात्म हैं राधा : कृष्ण एक हैं। अर्धनारीश्वर जैसे शिव शक्ति हैं। राधा कृष्ण की आहलादिनी शक्ति रहीं। दोनों एक दूसरे के पर्याय रहें। दोनों का प्रेम दैविक आध्यात्मिक रहा। इसलिए राधा : कृष्ण और रुक्मिणी की बातें हम सदैव करते हैं। एक होने के कारण दिव्य ,स्थायी प्रेम के कारण
राधा सर्वप्रथम देवालय में सदैव कृष्ण के पार्श्व में ही पाई गयी।
नरकासुर और बंदी बनाई गयी १६००० कन्याएं : यह चर्चाएं होती हैं कि उनकी १६०८ रानियाँ थी। सत्य क्या है ? अत्याचारी नरकासुर की बंदी बनाई गई ये १६००० कन्याएं थी जिनसे नरकासुर जबरन विवाह करना चाहता था। जिन्हें श्री कृष्ण ने मुक्ति दिलवाई थी। उन्हें अपने घर सगे सम्बन्धियों के यहाँ लौटने की सलाह दी गई।
लेकिन यह कहते हुए कि यहाँ सीता भी बदनाम हुई, इसलिए केवल छिद्रान्वेषण देखने वाले मात्र दोष ढूंढने वाले समाज उन्हें अंगीकार नहीं करेगा, सभी ने वापिस लौटने से इंकार कर दिया।
तब जगत के नाथ ने समाज में उन्हें सम्मान पूर्वक जीने देने के लिए अपना नाम दिया। और प्रतिष्ठा देने के लिए उनसे शादी रचाई और समाज में गर्व के साथ जीने का उत्तम अवसर भी प्रदान किया। इस तरह बंदी कन्याओं के लिए श्री कृष्ण सदा सहायते सिद्ध हुए।
आठ प्रमुख पत्नियाँ माधव की : भगवान श्रीकृष्ण की आठ प्रमुख पत्नियाँ थीं, जिनमें रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिन्दी, मित्रविन्दा, भद्रा, नग्नजिती सत्या और लक्ष्मणा शामिल हैं
मूल जीवन शक्तियां : रुक्मिणी : सत्यभामा : जाम्वंती : मूलतः श्री कृष्ण जी की पत्नियां रुक्मिणी ,सत्यभामा तथा जाम्वंती की चर्चाएं अधिक होती है ।
रुक्मिणी : विदित हो रुक्मिणी जी को श्री लक्ष्मी का अवतार ही समझा जाता है। विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं और श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, जिससे उन्होंने उनका हरण करके उनसे विवाह किया था.रुक्मिणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, चारुगर्भ, सुदेष्ण ,दुम, चारुगुप्त, चारुविन्द,चारुणवाहु ,सुषेण, पुत्र उत्पन्न हुए थे।वह
सत्यभामा : राजा सत्राजित की पुत्री थीं और श्रीकृष्ण की तीन महारानियों में से एक थीं. वह अत्यंत सौंदर्य वान थी। भानु, भीमरथ, क्षुप, रोहित ,दीप्तिमान ,ताम्रजाक्ष आदि पुत्र उत्पन्न हुए थे तो
जाम्वंती : ऋक्षराज जाम्बवान की पुत्री थीं उनसे साम्ब ,मित्रवान, मित्रविंद ,मित्रवाहु ,सुनिथ आदि संतानें हुई थी। ऐसा समझा जाता है कि जाम्वंती :शक्ति पार्वती ही है।
कार्यकारी संपादन :
शक्ति. स्मिता. प्रीति सहाय. महाराष्ट्र
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नववर्ष विक्रम संवत शक्ति : आलेख : १ / २ / २ .
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नववर्ष विक्रम संवत २०८२.
राधिकाकृष्णं सदा सहायते '
शक्ति दिवस,नव रात्रि प्रथम दिवस शैलपुत्री.
के दिन सम्यक सोच ,वाणी ,कर्म के लिए नूतन राधिका कृष्ण शक्ति संकल्प भी लें.
नववर्ष विक्रम संवत शक्ति आलेख : १ / २ / २ .
शक्ति.डॉ. सुनीता मधुप.
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नववर्ष विक्रम संवत. शक्ति : कोलाज : शक्ति समूह : नैना देवी डेस्क. नैनीताल. * विशेष आकर्षण : पढ़ें *अंत और प्रारब्ध : मेरे तो गिरधर गोपाल : |
* चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस :
*आस और विश्वास : सर्व प्रथम और अग्रगामी वैदिक सनातनी सभ्यता और संस्कृति
*
अंत और प्रारब्ध : विदा ले रहे हिन्दू वर्ष के अंतिम दिन मेरा मन वंदन स्वीकार करें ..क्षमा करें अगर आपके सम्मान,प्यारदेख रेख लगाव में मुझसे हमसे कोई भूल हुई हो तो।
कल विक्रम संवत २०८१ का अंतिम दिन था । किंचित आप हमारे जीवन में सकारात्मक भावों की साझेदारी को स्मृत करना चाहता हूँ।
आज से नववर्ष विक्रम संवत २०८२ प्रारंभ होने जा रहा है। हम अपनी वैदिक सनातनी सभ्यता और संस्कृति की पताका लिए हुए अंग्रेजी कैलेंडर से ५७ साल आगे है मैंने यह महसूस किया कि मुझे, हमारी सम्पादिका शक्ति समूह को उन सभी लोगों का हार्दिक आभार और धन्यवाद करना चाहिए जिन्होंने मुझे,आपको,हमसबों को संवत् २०८१ में मुस्कराने की वजह दी है। और आगे आने वाले नववर्ष २०८२ में भी ऐसे अवसर प्रदान करेंगे। सम्यक साथ निभाने के लिए सम्यकसोच ,वाणी ,कर्म के लिए नूतन शक्ति संकल्प भी लेंगे।
मेरे तो गिरधर गोपाल : मेरे आराध्य देव मुरली धर माधव शक्ति राधिका के साथ सदैव रहें। श्री राधिका कृष्ण सदा सहायते का भाव बना रहें , मेरी यही दिव्य अभिलाषा है।
' राधिकाकृष्णं सदा सहायते' का अर्थ है , ' भगवत शक्ति राधिका कृष्ण हमेशा सहायता करते हैं '. भगवान श्री कृष्ण से जुड़े कुछ और मंत्र और विचार: 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' का जाप करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और प्रभु श्री कृष्ण की कृपा मिलती है.
राधा चूँकि कृष्ण की आहलादिनी शक्ति हैं एक हैं इसलिए दोनों की सम्मिलित प्रेम ,कृपा, सहायता सदैव बनी रहें।
चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस : आज अंग्रेजी साल के अनुसार मार्च का दिवस ३० है। हिंदी महीना,तिथि ,दिन के अनुसार चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस। नवरात्र, शक्ति का स्वरूप शैलपुत्री। शक्ति का रंग लाल है।
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। प्रथम दिन की उपासना में साधक जन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं।
नव वर्ष की पहली सुबह शक्ति शैलपुत्री आपकी जिंदगी में नई खुशियां लेकर आए आपके सारे सपने पूरे हो आप हमेशा खुश रहे आप जो चाहे वह आपको मिले। इसी आशा के साथ हम सभी शक्ति समूह की तरफ़ से आपको हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
आप मेरे सर्वाधिक प्रिय जनों में से एक हैं। उन्हीं में से एक आप हैं , इसलिए आपका हार्दिक आभार है । मैं कैसे भूल सकता हूँ ?
संभव है कि जाने - अनजाने में मेरे कर्म, वचन,स्वभाव से आप को दुख हुआ हो, इसलिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थी हूं ।
आस और विश्वास : विश्वास है कि आगामी विक्रम सम्वत २०८२ में भी आप सबका मार्गदर्शन , स्नेह , सहयोग, प्यार , पूर्व की भांति मिलता रहेगा । सनातन हिन्दू नववर्ष की आपको एवं आपके परिजनों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ।
संदर्भित शक्ति लघु फिल्म.साभार
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ऐ गिरि नंदनी विश्व की स्वामिनी : नव शक्ति दर्शन
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स्तंभ सम्पादन : शक्ति. डॉ नूतन.नमिता. उत्तराखण्ड. देहरादून.
शक्ति.रंजना.स्वतंत्र लेखिका. हिंदुस्तान. नई दिल्ली. तनु सर्वाधिकारी : बंगलोर
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कृष्ण :रुक्मिणी : दुर्वासा : श्राप और वरदान. आलेख : १ / २ / १ .
सम्पादकीय आलेख : १ / २ / १ .
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डॉ.मधुप.
मेरे प्रिय देव नटवर ,कृष्ण की नगरी : द्वारका गुजरात में है। गुजरात मेरे नटवर पश्चिम में है ,कृष्ण की नगरी। मेरे प्रिय देव की स्थली द्वारकाधीश मंदिर, भ्रमण करना चाहूंगा। हिंदू पौराणिक कथाओं की यदि बात माने तो द्वारका का निर्माण कृष्ण ने समुद्र से प्राप्त भूमि के एक टुकड़े पर किया था। द्वारिका के अवशेष अभी भी अरब सागर के किनारे देखे जा सकते हैं।
ऋषि दुर्वासा का द्वारिका आना : ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध के लिए विशेषतः जाने जाते हैं। ऋषि का अपने क्रोध पर संयम नहीं रख पाना भी , मेरी समझ से परे हैं। महाभारत के अनुसार, ऋषि दुर्वासा एक बार कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी से मिलने आए थे, या कहें द्वारिका से गुजर रहें थे । दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ थे। राह में उन्होंने अपने शिष्य श्री कृष्ण से मिलने की इच्छा हुई। उन्होंने अपने शिष्यों को श्री कृष्ण को बुलाकर लाने को भेजा। उनके शिष्य ने द्वारका जाकर द्वारकाधीश को उनके गुरुदेव का सन्देश दिया।
ऋषि दुर्वासा की द्वारका नगरी चलने की अजीब शर्तें : सन्देश सुनते ही श्री कृष्ण नंगे पैर दौड़े-दौड़े अपने गुरु से मिलने आए और उनसे द्वारका नगरी चलने के लिए विनती की लेकिन दुर्वासा ऋषि जी ने चलने से इनकार कर दिया। ऋषि चाहते थे कि वे दोनों उन्हें अपने महल में ले जाएं, और मांग की कि वे घोड़ों की तरह उनके रथ को खींचें।
ऋषि दुर्वासा की द्वारका जाने की शर्त कृष्ण ने ऋषि से पुन: चलने के लिए आग्रह किया।
अंततः दुर्वासा ऋषि मान गये लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि वो जिस रथ से जायेंगे, उसे घोड़े नहीं खीचेंगें बल्कि एक तरफ से कृष्ण और एक तरफ से उनकी पत्नी रुक्मिणी खीचेंगी। श्री कृष्ण मान गये और वह दौड़ते हुए पत्नी रुक्मिणी के पास गए। रुक्मिणी को उन्होंने गुरुदेव दुर्वासा की शर्त बताई। रुक्मिणी मान गईं और फिर दोनों ऋषि के पास वापस आये और उनसे रथ पर बैठने की विनती की।
रुक्मिणी को श्री कृष्ण से १२ वर्ष अलग रहने का श्राप : अनहोनी होनी थी। आवेश , श्राप और वरदान का घटित होना निश्चित था। कृष्ण ने ऋषि दुर्वाषा की इच्छा का सम्मान करते हुए रुक्मिणी को रथ खींचने का संकेत दिया और दोनों उस रथ को खींचते-खींचते द्वारका तक ले जाने लगे।
बीच रास्ते में रुक्मिणी को प्यास लगी। श्रीकृष्ण ने उन्हें थोड़ा धैर्य रखने को कहा। जब रुक्मिणी नहीं मानी, तो श्री कृष्ण ने अपने अंगुठे से जमीन पर मारकर पानी की धारा निकाल दी। रुक्मिणी ने उस पानी से प्यास बुझाई और वह कृष्ण जी से भी आग्रह करने लगी कि वो भी पानी पी लें।
उनके आग्रह का मान रखते हुए श्री कृष्ण ने पानी पी लिया।
यह देख ऋषि दुर्वासा रुक्मिणी पर क्रोधित हो गये कि उनदोनों ने पानी पीकर प्यास बुझा ली। उनसे और उनके शिष्यों से नहीं पूछा गया ।ऋषि दुर्वासा का शीघ्र क्रोधित होना उनका सहज अवगुण था। कृष्ण की यह अवहेलना उनके मन को घर कर गयी थी । इसलिए, क्रोध में आकर उन्होंने रुक्मिणी को श्री कृष्ण से १२ वर्ष अलग रहने का श्राप दे दिया। यह श्राप बाद में पूरा भी हुआ।
दुर्वासा की खीर खाने की इच्छा : श्राप पाने के बावजूद सहिष्णुता पूर्वक श्रीकृष्ण और रुक्मिणी उन्हें खींचते हुए द्वारका लेकर गये। जब गुरुदेव दुर्वासा द्वारका पहुंचे, तो कृष्ण जी ने उन्हें सम्मानपूर्वक सिंहासन पर बिठाया और उनका आदर-सत्कार किया।
भोजन में उन्होंने ५६ प्रकार का भोग बनवाया लेकिन जैसे ही वह व्यंजन गुरुदेव के पास पहुंचा, उन्होंने सारे व्यंजनों का तिरस्कार कर दिया। यहाँ भी श्रीकृष्ण और रुक्मिणी की परीक्षा ही होनी थी।
उन्होंने कहा - ' ये ऋषियों के खाने योग्य भोजन नहीं है'। यह देख कृष्ण जी ने उनसे उनकी इच्छा पूछी। ऋषि दुर्वासा ने कृष्ण जी को खीर बनवाने के लिए कहा। उनकी आज्ञा मानी गई और कृष्ण जी ने पाक शाला में खीर बनवाई। खीर अत्यंत स्वादिष्ट बना था।
लेकिन जब खीर से भरा पतीला दुर्वासा ऋषि के पास पहुंचा, तो पहले उन्होंने खीर का भोग लगाया और फिर उन्होंने बाकी खीर भगवान कृष्ण को खाने के लिए कहा।
भगवान कृष्ण ने उस पतीले से थोड़ी सी खीर खाई। ऋषि दुर्वासा ने बाकी बची खीर भगवान कृष्ण को अपने शरीर पर लगाने की आज्ञा दी। आज्ञा पाकर श्री कृष्ण ने खीर को अपने पूरे शरीर पर लगाना शुरू कर दिया।
पैर : तलवा हो न सका व्रज : उन्होंने पूरे शरीर पर खीर लगा ली लेकिन जब पैर पर लगाने की बारी आई, तो उन्होंने अपने पैरों पर खीर लगाने के लिए मना कर दिया।
दुर्वासा इस बात से पुनः क्रोधित हो गये। इसपर श्री कृष्ण ने कहा - ‘गुरुदेव ! यह खीर आपका भोग-प्रसाद है, मैं इस भोग को अपने पैरों पर कैसे लगा सकता हूं' ? मैं इसका क्योंकर अनादर कर सकता हूँ ?
भगवान कृष्ण की मृत्यु का कारण : ऋषि दुर्वासा तत्क्षण कृष्ण जी बातों को सुन कर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा - ' माधव ! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। तुम हमारी ली गयी हर परीक्षा में सफल रहे। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं तुमने जहां - जहां खीर लगाई है, तुम्हारे शरीर का वो सारा हिस्सा वज्र के समान हो जायेगा। लेकिन माधव तुमने खीर अपने तलवों पर नहीं लगाई है, इसलिए यह स्थान ही तुम्हारी मौत का कारण बनेगा। यह कोमल रह जायेगा।
माधव के कोमल पैर : बहेलिए : तीर : कृष्ण का देह त्याग : नियति को कौन रोक सकता है ? अंततः ऋषि दुर्वासा की बात अक्षरशः सच हुई। एक बार कृष्ण झाड़ियों में सोये हुए थे और उनके पैर के पास उनका एक कमल चमक रहा था। दूर कहीं एक बहेलिए ने उनके चमकते कमल को भ्रम वश अपना शिकार समझ तीर चला दिया, जो सीधे श्री कृष्ण के पैर पर लगी और उनकी मृत्यु हो गई। और इस तरह प्रभु देह त्याग कर बैकुंठ धाम गए।
आहत गांधारी के श्राप भी हुए पूर्ण : हमें यह स्मरण रखना चाहिए भगवन कौरवों के समग्र अंत के बाद पुत्र शोक में आहत गांधारी से भी शापित हुए थे ,जिसमें उन्हें भी यदु वंश के नाश होने की बात भी स्मृत थी। वे भूले नहीं थे। *
दृश्यम : अद्वितीय.
माधव ( श्री लक्ष्मीनारायण ) का अंत : शक्ति संतुलन.
प्रस्तुति : डॉ सुनीता शक्ति* प्रिया
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आलेख : डॉ.मधुप.
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स्तंभ सम्पादित
शक्ति.डॉ.सुनीता तनुश्री सर्वाधिकारी.
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जीने की राह : क्या सत्य और धर्म की रक्षा के लिए मौन रहना उचित है..?
सम्पादकीय आलेख : १ / २ / ०
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महाभारत : दुःशासन : द्रौपदी : चीर हरण : प्रसंग.
सूरज : काले बादल : उस दिन भी आकाश में अपनी दिनचर्या के लिए सूरज अपनी वैसी ही ऊर्जा व शक्ति के साथ अभ्युदित हुआ था । दोपहर होते होते अकस्मात कहीं से असत्य के घने बादल आ जाते है । अपरीक्षित सत्य को अपने घेरे में लेने की भरसक कोशिश भी करते हैं। तत्क्षण सफल भी हो जाते हैं । कुछ पल के बाद सूरज के गोले में ध्यान पूर्वक देखने से कुछ काले धब्बें नजर भी आने लगते है.. अंतर मन पूछता है अपनी आत्म शक्ति से इस प्रकाश युक्त गोले में काले अंधेरें क्यों ...?
यह कैसे हुआ...बताएं ...?
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पांचाली |
क्योंकि वे कौरवों का अन्न खाकर उनका ऋणी थे और उनका विरोध करना उन्हें उचित नहीं लगा था , साथ ही वे अपने हस्तिनापुर के राजकीय कर्तव्य के प्रति बंधे हुए थे इसलिए महाभारत में, द्रौपदी के चीरहरण के समय भीष्म पितामह चुप रहे। मौन कितना विध्वंसक सिद्ध हुआ ?
यदि धर्म की रक्षार्थ पितामह बोल उठते तो किंचित महाभारत टल भी सकता था।
महाभारत में, द्रौपदी का चीरहरण एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसमें पांडवों के जुए में हारने के बाद, दुर्योधन के आदेश पर दुःशासन ने द्रौपदी को कौरवों की सभा में खींचा और उसका अपमान किया, लेकिन द्रौपदी के वस्त्र कभी नग्न नहीं हुए। क्योंकि धर्म, संरक्षण की माधव चेष्टा थी अधर्म और अन्याय के विरुद्ध। और अन्ततः जिसे स्थापित ही होना था। श्री कृष्ण सदा सहायते के निमित हुआ भी
द्रौपदी का ऋण : यदि माधव नहीं होते तो क्या होता ? कभी सुदर्शन चक्र ग्रहण करती माधव की कटी उंगली में द्रौपदी द्वारा की गई सेवा शुश्रूषा के निमित लपेटी गई चीर का ऋण किशन ने पांचाली के चीर को अनंत कर चुकाया था। और उनकी रक्षा की। यह दायित्व तो उपस्थित सभासदों का होना चाहिए था, जो नहीं हुआ।
अंतर्मन में सदैव जागृत रही आप त्रिशक्तियाँ बताएं क्या वो मौन उचित था ?
क्या संसार के सत्य की मर्यादा के लिए शब्दों की उद्घोषणाएं होनी चाहिए थी ..या नहीं..? खड्ग उठने चाहिए थे या नहीं ?
आत्म शक्तियां :आत्म द्वन्द : अपने भीतर की आत्म शक्तियां कहती है..शब्द होने चाहिए थे। स्वयं का विरोध दर्ज होना ही चाहिए था।
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शॉर्ट रील : साभार : चीर हरण प्रसंग.
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पांचाली के रक्षक थे माधव । योगी राज कृष्ण सदैव धर्म और सत्य के साथ ही अकेले ही खड़े रहें। पांचाली उन्हें ह्रदय से अत्यंत स्नेह करती थी। इसलिए उन्हें प्यार से सखि कहती थी।
अंतर मन में व्याप्त आत्म शक्तियां जो सर्वोपरि त्रिशक्तियाँ है जानती है कुछ पल के लिए असत्य के घने अंधियारे में सत्य का सूरज ढक भी जाता है ...लेकिन सूरज अंततः उस ऊर्जा के साथ आकाश में उग आता है । ...
*
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
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तोरा मन दर्पण कहलाए : पद्य संग्रह : पृष्ठ : २/०.
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लेखक कवि. डॉ. मधुप.
शक्ति डॉ.सुनीता.
*
लघु कविता
*
अभिमन्यु आज के,
सत्यमेव जयते.
अभिमन्यु आज के,
आज भी देखते हैं,
अपने जीवन संघर्ष में
चारों ओर,
न कृष्ण हैं,
न अर्जुन हैं,
इस युद्ध स्थल में ,
न कोई अपना है,
न सगा हैं.
सामने असत्य है,
कुचक्र है,
एक बार फ़िर से
शत्रु बड़ा विकट है.
सत्य की लड़ाई में
अभिमन्यु फिर से चक्रव्यूह
में घिर गए है
चारों ओर शत्रु बड़े बड़े हैं,
निराशा का तिमिर हो,
या आशा का प्रभात हो,
तभी तो
अभिमन्यु नितांत
अकेले ही निहत्थे खड़े है.
हमारे समक्ष,
प्रश्न हो यक्ष,
कि क्या अभिमन्यु सबसे हार कर
मृत्यु शैया पर पड़े हो,
या विजयी हो कर
सत्यमेव जयते की तरह
सब के सामने खड़े हो.
*
आभार
स्तंभ संपादन. शक्ति. माधवी प्रीति रीता तनुश्री सर्वाधिकारी.
पृष्ठ सज्जा : महाशक्ति मीडिया.
*
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राधिकाकृष्ण : रुक्मिणी : शक्ति : विचार धारा :
जीवन दर्शन : आपने कहा : पृष्ठ : २
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संपादन.
माननीय.आलोक सहाय
विंग कमांडर
माननीय.मनोज कुमार
लेफ्टिनेट कर्नल.प्रेरक वक्ता.
*
*
' वक्त ' और ' फैसले ' ' वक्त ' और ' फैसले ' दोनों ही बहुत 'अनमोल ' होते हैं,
कभी फैसला वक्त पे नहीं आता और कभी वक्त पर फैसले नहीं होते
कभी फैसला वक्त पे नहीं आता और कभी वक्त पर फैसले नहीं होते
*
ईश्वर ,सम्यक जन और विनीतता
*
जहाँ अपनी बात की कद्र न हो वहाँ चुप रहना ही बेहतर है ,
साथ ही याद रखिए लोगों से मिलते वक्त इतना मत झुकिये ,
की उठते वक्त सहारा लेना पड़े…. सच है
लेकिन सम्यक जन सब सुनने ...सब देखने ....सब समझने की चेष्टा करते हैं
ईश्वर और सम्यक जन के समक्ष झुकना एक आराधना ही हैं
शक्ति. डॉ.सुनीता मधुप
*
भाविकाएँ
क्या गलती थी हमारी ?
एक पल में खुशियाँ छिन गई
पलभर में दुनिया उजड़ गई
क्या गलती थी हमारी ?
जो हमारे अपने हमसे बिछड़ गए
आतंक ने ऐसा पाँव पसारा
लहुलुहान हुआ देश हमारा.
हर एक हिंदुस्तानी दर्द में है
बदले की उम्मीद में है
अब नींद आँखों से गायब है
चैन से तब हम सोएँगे
जब आतंक और आतंकवादी का
नामोनिशान जड़ से मिटा पायेंगे
तब चैन से सोएँगे हम
*
पहलगाम में मृत भारतीय नागरिकों के
लिए कुछ पंक्तियाँ
शक्ति.स्मिता.
*
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' वक्त ' और ' फैसले '
' वक्त ' और ' फैसले ' दोनों ही बहुत ' अनमोल ' होते हैं, कभी फैसला वक्त पे नहीं आता
और कभी वक्त पर फैसले नहीं होते
और कभी वक्त पर फैसले नहीं होते
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अहंकार ' और ' अकड़ '
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' अहंकार ' और ' अकड़ ' दोनों जीवन के सबसे बड़े ' दुश्मन ' है..
क्योंकि ये न तो आपको किसी का होने देते हैं और न ही कोई आपका होना चाहता है...
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नैनन नहीं सनेह
तुलसी
आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
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भावार्थ
जिस घर में जाने पर घर वाले लोग देखते ही प्रसन्न न हों और जिनकी आँखों में प्रेम न हो, उस घर में कभी न जाना चाहिए। उस घर से चाहे कितना ही लाभ क्यों न हो वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए।
धर्म युद्ध
अपनी तरफ़ से कृष्ण की तरह ' धर्म ' और ' न्याय ' के लिए
प्रयास करते रहिए
यह भी पांडवों और कौरवों की समस्त नीति ही नियति निश्चित करेगी
कि महाभारत जैसा धर्म युद्ध होगा या नहीं
@ शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप.
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सम्यक कर्म : भूत : वर्तमान : भविष्य
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सही दिशा में किया गया सम्यक ' कर्म ' ,
मनुष्य का ' वर्तमान ' और ' भविष्य ' दोनों बदल देता है और कालांतर में
गौरवपूर्ण इतिहास कल बन जाता है
गलतियां.
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' गलतियाँ ' कीजिए क्योंकि वो तो सबसे होती है
पर,कभी भी किसी के साथ ' गलत ' ना कीजिए
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इंसानियत
सिर्फ ' इंसान ' होना ' काफी ' नहीं ,
इंसान के अंदर ' इंसानियत ' का होना भी अत्यंत जरूरी है
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मदद : सम्यक : परिवर्तन
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किसी की ' मदद ' करने से यह दुनिया तो नहीं बदलने वाली है …
लेकिन जिसकी मदद की जाए तो उसकी ' दुनिया ' जरूर ' परिवर्तित ' सकती है....
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समझ सहन शक्ति
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स्वयं के ' जीवन ' में हमें कुछ तो अवश्य ' सहन ' करना सीखना ही चाहिए...
क्योंकि ... हम में भी ऐसी ढ़ेर सारी ' कमियाँ ' हैं ..., जिन्हें दूसरे ' सहन ' ही नहीं करते हैं,प्रत्युत समझते भी हैं
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जीवन की सार्थकता
अपने हिस्से की ' खुशियां ' बेच कर भी जिसने अन्य को ' आह्लादित ' किया है
वस्तुतः वो स्वयं अपने जीवन के विस्तार में मुस्कराया है ...
विश्वास रखें और माने ... उसे दूसरों की ' दुआ ' कहें।
कभी कोई ' दुख ' नहीं हरा पाया है ...
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गलती में सुधार : सफलता की पहली सीढ़ी
अक्सर लोग कहते हैं कि ' गलती ' ' सफलता ' की पहली सीढ़ी है...
लेकिन वास्तविक तथ्य यह है कि गलती को ' सुधार ' कर आगे बढ़ना ही ' सफलता ' की पहली सीढ़ी है.
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इंसान की थकान
कभी कभी इंसान सच में थक जाता है खामोश रहते रहते
दर्द सहते सहते सब्र करते करते
उम्मीदें रखते रखते रिश्ते निभाते निभाते सफाइयाँ देते देते ….
प्रभाव
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मन में आने वाले विचार की आयु सिर्फ एक पल की होती है,
पर उससे पड़ने वाले प्रभाव को हम अपने जीवन के अंतिम
समय तक महसूस करते हैं।
ए एंड एम मीडिया संरक्षित
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सम्यक साथ नहीं छूटेगा
बात कड़वी है लेकिन सच है हम किसी के लिए उस वक्त तक
खास होते हैं जब तक उन्हें कोई दूसरा मिल नहीं जाता अर्ध्य सत्य है
अपनी श्रेष्ठता, सहन ,समझ शक्ति सदैव वर्धित करते रहें
कभी भी सम्यक साथ नहीं छूटेगा
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समय और ' भाग्य '
समय और ' भाग्य ' दोनो ही ' परिवर्तनशील ' हैं
इन पर किसी को"अहंकार" नही करना चाहिए.
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बेनाम रिश्ते
हर ' रिश्ते ' का कोई नाम हो ये कोई ज़रूरी नहीं है,
कभी-कभी कुछ बेनाम रिश्ते भी रुकी हुई जिंदगी को साँसें दे जाते हैं.
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शक्ति : विचार धारा : जीवन दर्शन : दृश्यम : राधिकाकृष्ण प्रेरित : लघु फिल्में : पृष्ठ : ३
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I wanted to be like him tough and strong.
I hate tears.
for watching the short film press the given available youtube link
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राधिकाकृष्ण : रुक्मिणी : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : ४
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श्री लक्ष्मी नारायण : माधव : श्री रुक्मिणी राधे रमण के दुर्लभ दर्शन : फोटो : शक्ति. प्रस्तुति |
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आपने कहा : पृष्ठ : ५.
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मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ :६ .
मैया मोरी ' मैं ' नहीं माखन खायो
मैया मोरी ' मैं ने 'ही माखन खायो
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