Musafir Hoon Main Yaaron : Travelogue.2

 

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 Musafir Hoon Main Yaaron : Travelogue.2 
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यात्रा विशेषांक. अंक - २  

कोलाज : विदिशा 
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Blog Contents.
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Page 1 : Cover Page.
Page 2 : Credit Page 
Page 3.Content Page
Page 4.
Morning Post 
 Page 5.Yatra Sansmaran  :  Haldwani Tab aur Aab. Ravi Sharma.
Page 6.Yatra Sansmaran : Chal Chale Jheel Ke Us Par. Vidisha.
Page 7.Yatra Sansmaran : Kilbury a Bird Sanctuary. Dr. Navin Joshi.
Page 8.Yatra Sansmaran : Top 10 Worth Seeing places in and around Almora. Dr. Madhup.
Page 9.
Yatra Sansmaran : Yamunotri Yatra. Namita Singh.
Page 10. Art Gallery : Amrita
Page 11. Photo Gallery : 

Page 12.Chalte Chalte :
Page 13.You Said It :
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साभार . विश्व पर्यावरण दिवस : ५ जून 
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Art of the Day.
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Aadivashi Sanskriti : Art Ranjana.

chal kahi door nikal jayein : Art Jungle : Amrita 

 the rainy season in a hilly village : Art Amrita 

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Photo of the Day. 
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Evening at Ranikhet : photo Akbeer Kaur.

raining in the Morning : Nainital : Mall Road : Photo Dr. Madhup.

above Sydney : at Night : photo Ashok Karan.

sun setting behind the Taj Mahal : Aagara : photo Rimmi

an evening shot at Kerla : photo Ashok Karan.

Saint Joseph School Nainital: Film Koi Mil Gaya Shooting Location : photo Arup. Haldia

view of Naini Lake from Naina Peak : photo Basant.

Kedar Naath Darshan : photo Shashank Shekhar

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Tweet of the Day.
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आज की पाती.
 
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जी को भाने लगी है दुरियां.
डॉ. आर. के. दुबे.



 




supporting.
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Page 4.

Morning / Evening Post Page.
Morning 🌻 Post.
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Page 5.
यायावरी. हल्द्वानी : तब और अब.
रवि शर्मा. 
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supporting. 

यायावरी. हल्द्वानी : तब और अब.

हल्द्वानी शहर से दिखती नैनीताल की पहाड़ियां : फोटो रवि.

सन ६० के दशक के हरे-भरे पेड़ों, आम के बागानों, लहलहाती फसलों तथा हरियाली से युक्त हल्द्वानी तहसील आज कंक्रीट के शहर में तब्दील हो चुकी है। 
ज्यादा नहीं पांच - छह दशक पूर्व कालाढूंगी चौराहे के आसपास तक सीमित हल्द्वानी शहर अब लालकुआं से काठगोदाम तक व्यावसायिक विस्तार पा चुका है। वहीं एक ओर रामपुर रोड तो दूसरी तरफ कालाढूंगी तहसील तक फैल चुका है। तहसील से शहर तक का सफर पूरा करने में कई विसंगतियां भी हल्द्वानी के खाते में जुड़ चुकी हैं, जैसे अपराधों में भारी वृद्धि और युवाओं में बढ़ती स्मैक और मदिरा की लत।
 

एक लेखक की यायावरी :  शुरुआत हल्द्वानी स्टेशन से : कोलाज 

आखिरी रेलवे स्टेशन काठगोदाम : पर्वतीय क्षेत्रों को जाने वाला आखिरी रेलवे स्टेशन काठगोदाम तब बहुत छोटा था और मुख्य बिल्डिंग तक ही सीमित था, लेकिन बहुत ही साफ सुथरा था। २४ अप्रैल १८८४ को यहां पहली ट्रेन आई थी। तब लोग इसे देखकर अचंभित रह गए थे और अंग्रेजों की कोई साजिश समझ रहे थे। हल्द्वानी रेलवे स्टेशन में मात्र दो कमरे थे, इसके आसपास कोई बसावत नहीं थी। इसके इर्द-गिर्द के प्लॉट लीज पर ठेकेदारों को दिए जाते थे, जहां वे जंगलात से लाकर लकड़ी के स्टॉक रखते थे। 
काठगोदाम से तीन ट्रेनें चलती थीं। यह मीटर गेज की ट्रेन थीं। नैनीताल एक्सप्रेस सुबह काठगोदाम से पीलीभीत - मैलानी होती हुई चारबाग रेलवे स्टेशन लखनऊ तक जाती थी। दूसरी ट्रेन सुबह के समय काठगोदाम से आगरा तो तीसरी पैसेंजर ट्रेन मुरादाबाद जाती थी। यह पैसेंजर ट्रेन शाम को जाती थी और अगले दिन आती थी। इन ट्रेनों में फर्स्ट, सेकेंड और थर्ड क्लास होते थे। हल्द्वानी रेलवे स्टेशन की भी कोई चहारदीवारी आदि नहीं थी। यात्रीगण रेलवे बाजार से खरामा - खरामा चले जाते थे, क्योंकि भीड़ होती ही नहीं थी और ट्रेन भी कम से कम आधे घंटे रुकती थी। इसी प्रकार लालकुआं आज की तरह व्यस्त बाजार ना होकर रेलवे स्टेशन तक ही सीमित था। उसी के आसपास थोड़ी-सी आबादी थी। यहां भी लकड़ी के स्टॉक रखे जाते थे, जो कि ट्रेन से ही आते थे और डी एफ ओ इन्हें नीलाम करवाते थे। काठगोदाम से आने वाली ट्रेनें भी यहां  घंटे भर तक रुका करती थीं।

गतांक से आगे. १ 

केमू बस अड्डा और काठगोदाम रेलवे स्टेशन: फोटो साभार 

तब का रोडवेज बस स्टेशन बहुत छोटा था। यहां से रानीखेत होते हुए अल्मोड़ा के लिए बस दिन में केवल एक फेरा लगाती थी। रोडवेज में भी अपर क्लास और लोअर क्लास होता था। शुरू की चार लाइनें अपर क्लास में आती थीं तथा उनके पैसे भी अधिक लगते थे। इसके अलावा कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड (केमू ) की हरे रंग की छोटी बसें पहाड़ के लिए चलती थीं। 
केमू की स्थापना १९३९ में यात्रियों  को पर्वतीय क्षेत्र ले जाने के लिए की गई थी। यह बसें भी दिन में एक ही फेरा लगाती थीं और इन बसों की गद्दी आज की तरह आरामदेह न होकर जूट की होती थी। 
मंगल पड़ाव : शहर के बीचोबीच मंगल पड़ाव क्षेत्र स्थित है। यहां हर मंगल को पैठ लगा करती थी तो आसपास के लोग यहां आकर हफ्ते भर की जरूरत की चीजें खरीद कर ले जाते थे। शहर के बीच में ही मिठाई की तीन प्रमुख दुकानें हुआ करती थीं। 
मिठाई की दुकान : केमू स्टेशन पर शंकर हलवाई की मिठाई की दुकान थी, जो पहाड़ी ( देसी ) घी की मिठाई बनाते थे। यहां सुबह-सुबह जलेबी-समोसे बनते थे तो दिन भर पूरी-कचौड़ी, सब्जी आदि। रोडवेज और रेलवे स्टेशन के मध्य होने के कारण इसकी जमकर बिक्री होती थी। 
दूसरी मिठाई की दुकान मीरा मार्ग पर ठीक मस्जिद के सामने बुलाकी हलवाई की थी। वह भी पहाड़ी घी की मिठाई बनाते थे। तीसरी दुकान मेन बाजार में मथुरा हलवाई की थी, वह केवल दूध की मिठाई बनाते थे। इनके अलावा एक अन्य दुकान भूखन हलवाई की सब्जी मंडी में थी। वह डालडा घी की मिठाई बनाते थे। यह दुकान आज भी उसी स्थान पर अवस्थित है।
टैक्सी स्टैंड : उस वक्त टैक्सी स्टैंड नहीं था। सीमित कारें थीं। प्यारेलाल छेदीलाल फर्म के मालिक चौरसिया जी ने पहले ४ एंबेसडर की टैक्सी सेवा शुरू की थी, लेकिन वह भी बहुत चलती नहीं थीं। नैनीताल काठगोदाम रोड तब सिंगल रोड ही थी और उस पर सीमित दुकानें ही थीं। कालाढूंगी रोड सीमेंट की बनी हुई थी तथा इसी कालाढूंगी चौराहे के चारों ओर मंगल पड़ाव, मुखानी, रेलवे रोड व तिकोनिया चौराहे तक ही अधिकांश आवाजाही थी। इसके आगे रिक्शेवाले भी नहीं जाते थे।
पांच नहरें : पूरी हल्द्वानी में पांच नहरें होती थीं, जिनसे खेतों की सिंचाई की जाती थी। यह शहर की खूबसूरती थीं।  इनमें चलता पानी और उनकी कल-कल ध्वनि सुकून प्रदान करती थी। अब इनमें से अधिकांश को कवर कर उन पर सड़कें बना दी गई हैं। 
मीरा मार्ग पर स्थित मस्जिद के सामने पानी की चक्की (पनचक्की) थी। पूरी हल्द्वानी का आटा उसी से पिसता था। 
एक थाना : पूरी तहसील में एक थाना होता था। इसकी अंग्रेजों के जमाने की पत्थर की बिल्डिंग थी। अब यहां कोतवाली बन गई है। एसडीएम कोर्ट पहले की तरह ही है। पहले केवल तीन एसडीएम तराई, भाबर व तहसील में होते थे। अब एसडीएम कार्यालय के बगल में नगर निगम का विशाल कार्यालय बन गया है। 


साभार : फोटो इंटरनेट से
 
कालू सैयद बाबा के मंदिर के बगल में आज विशालकाय सरस मार्केट बन गया है। पहले वहां कमिश्नर व डीएम के ट्रांजिट कैंप हुआ करते थे, जहां ये अफसर नैनीताल से जाड़े में आकर प्रवास करते थे।
पिकनिक स्पॉट के नाम पर गौलापार में काली देवी का मंदिर होता था तो रानी बाग में शीतला देवी का मंदिर, जहां गंगा स्नान पर मेरा लगता था। 
डीके पार्क : इसके अलावा डीके पार्क बहुत सुंदर हुआ करता था, जहां लोग सुबह शाम टहलने जाते थे। डीके पांडे नामी एडवोकेट थे। वह लोगों के काफी कहने पर नगर पालिका के चेयरमैन का चुनाव लड़े और जीतकर अध्यक्ष भी बने। उन्हीं के नाम पर यह पार्क है। पहले नेतागीरी ज्यादातर एडवोकेट ही करते थे। इसके अलावा शहर के मध्य स्थित रामलीला पार्क में रामलीला होती थी। शाम को रामलीला मैदान में होती थी, जबकि रात में स्टेज पर। इन्हें देखने लोग जुटते थे।
अपराध भी नामालूम ही थे, केवल आपसी मारपीट के मामले होते थे। लोग दिनभर आगे से पीछे तक घर खुला छोड़ देते थे। ताला लगाने का मतलब ही नहीं। किवाड़ भी इसलिए भेड़ते थे कि बंदर-कुत्ते न घुस आएं। आज शहर की आपाधापी के बीच हल्द्वानी मशीनी युग में प्रवेश कर चुका है। दिल्ली से होड़ लेता यह शहर देश के सारे मशहूर ब्रांड का केंद्र बन चुका है।


रवि शंकर शर्मा.
संपादक. हल्द्वानी.


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Page 6.
चल चलें ....झील के उस पार. 
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नैनीताल : तल्ली ताल से मल्लीताल : कोलाज विदिशा

तालों में नैनीताल  : २०२२ जून का महीना था। दो साल की बंदी के बाद पूरी भीड़ जैसे नैनीताल में उमड़ आई थी। तमाम रास्तें जैसे नैनीताल को ही आ रहें थे । शहर के तमाम टैक्सी स्टैंड भर चुके थे। बजरी वाले मैदान में पार्किंग के लिए जग़ह नहीं बची थी। माल रोड़ पर जाम का सिलसिला तो जैसे आम हो गया था।आज के  दिन हमें रिपोर्टिंग के लिए मल्लीताल जाना था। एक पंथ दो काज थे। मल्लीताल के स्टैंड में पर्यटकों के मनोरंजन के लिए रूद्र पूर से पुलिस बैंड पार्टी टीम आई हुई थी जिसे मल्ली ताल स्टैंड में गाना बजाना था। और हमें इसके बाबत लिखना भी था। 
अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थिति लिए प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुपम भण्डार है हमारी देवभूमि। ऊँची - ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य में बसी आबादी एवं यहाँ के निवासियों की अपनी संस्कृति भी उतनी ही उन्नत है, जितना की प्राकृतिक परिवेश, प्राकृतिक सौन्दर्य का प्रभाव यहाँ के जन जीवन पर पड़ता है। यहाँ की लोक संस्कृति में प्रकृति का प्रभाव बसन्त के आगमन के साथ ही इस अचल में अपने आगमन की दस्तक विभिन्न रूपों में दे देता है। पर्वतीय अंचल में सौर मास का प्रचलन है और यह दिन चैत्र मास का प्रथम दिन होने के फलस्वरूप नव वर्ष का आरम्भ माना गया है।
फूलों ,फलों का उपवन है हमारा कुमाऊँ :  बसन्त की बहार के साथ साथ  इसी माह फूल खिलने लगते हैं।पेड़ों पर फल लगने लगते हैं। जहाँ आप इन फलों को ख़रीदते हैं वहीं हम इन्हें सरे राह चलते पेड़ों से तोड़ कर जी भर खाते हैं। हम पहाड़ियों के लिए वरदान ही हैं। 
सारे पर्वतीय अंचल में आडू, सेव, नाशपाती, खुमानी, आलुबुखारे, बुरांश, शिलफोड़ा, कुंज, शिलग, शाल, लिगुड़ों-कोल्थ्यूडा के नन्हें-नन्हें कोपल नवजात शिशु की बन्द मुट्ठियों से लगते हैं। अर्थात् उपरोक्त वृक्षों में फूलों की शोभा देखते ही बनती है। प्रकृति अपना सम्पूर्ण परिधान तो बदलती ही है। 


फ़ोटो साभार : नेट से 

पहाड़ की प्यारी चिड़ी घुघुती :  हमारी विशिष्ट पहचान है। इस प्यारी चिड़ी में हम सभी पहाड़ियों  की आत्मा बसती है। यह बतला देती है मैं पहाड़ की प्यारी चिड़ी हूँ जो सदैव तुम्हें मनभावन सन्देश देना चाहती हूँ। 
आज भी पहाड़ों के दरमियाँ चलते हुए हमें प्यारी चिड़ी घुघुती की आवाज़ सुनाई दे रही थी।वसंत आने के साथ साथ वातावरण में पशु-पक्षियों में भी परिवर्तन आना स्वाभाविक ही है। हमारे पर्वतीय क्षेत्र में ये जाना वाला पक्षी जिसे हम " घुघुती " कहते हैं वह पहाड़ की ऊँची-ऊँची चोटियाँ हों की सुन्दर-सुन्दर घाटियाँ, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर उसकी चिर-परिचित आवाज वतावरण में एक स्फूर्ति पैदा कर देती है जिसे इस माह प्रातः तथा सायं सुना जा सकता है। यही आवाज गाँवों में घरों में वहाँ की छतों में, आँगनों में सभी जगह सुनी सकती है। घुघूती की आवाज का वर्णन गीतों  लोक कथाओं में किया गया है। चैत के इस महीने तक प्रगति में बदलाव आता है। पहाड़ों पर चैत्र के महीने में एक चिड़िया घुई - घुई बोलती है इसलिए इसे घुघुती कहते हैं। घुघुती का उल्लेख पहाड़ी दंतकथाएं और लोक गीत में भी पाया जाता हैं। 
सैलानियों का आना जाना : अप्रैल माह से ही अमूमन  चैत्र मास की शुरुआत हो जाती है। सैलानियों का आना जाना शुरू हो जाता है।  तल्ली ताल के पास आस पास आती जाती गाड़ियां ही बतला देती हैं कि परदेशी आने लगे हैं ।  हमारी इष्ट देवी नैना देवी की कृपा हम सभी पहाड़ियों पर बरसती हैं जो झील के उस पार मल्ली ताल में बिराजती हैं।
उस दिन हमें रिपोर्टिंग के लिए तल्लीताल बोट स्टैंड से मल्ली ताल जाना था। माल रोड में अच्छी खासी भीड़ जमा थी । लगभग जाम ही लगा था। सोची नाव ही किराए पर ले लेते हैं। यहीं से  मल्लीताल बोट स्टैंड तक चले जाएंगे। हालाँकि नाव वाले पर्यटकों को झील की आधी दूरी तक़ ही ले जाते हैं। फ़िर आधी
झील मल्ली ताल बोट स्टैंड के हिस्सें में पड़ती हैं। आम टूरिस्ट के लिए पूरे झील का चक्कर  इस पार से उस पार महंगा पड़ ही जाता है।  
तल्लीताल बोट स्टैंड : हम सायं चार बजे तल्ली ताल बोट स्टैंड पहुंच चुके थे। हमने तल्ली ताल से ही हमने किराए पर बोट ले ली थी। ......

दीप्ती बोरा. नैनीताल.
मिडिया फीचर डेस्क.नई दिल्ली.
संपादन / सह लेखन. विदिशा. 


गतांक से आगे. १ 

तल्ली ताल पाषाण देवी और नैनी झील : कोलाज विदिशा. 

हम तल्लीताल से नाव  लेकर मल्लीताल स्टैंड को ओर जाने  लगे थे । हमें एक लम्बी दूरी तय करनी थी। लोअर माल  रोड में आती जाती गाड़ियों का शोर जैसे हमें बहरा ही कर दे रहा था। 
हमारी दायी तरफ़ माल रोड से सटे पास का वीपिंग विल्लो का पेड़ नीचे भार युक्त हो कर जैसे पानी के भीतर ही समा गया था। अभी भी ढ़ेर सारे पर्यटक लाइफ जैकेट पहन कर तल्ली ताल स्टैंड में खड़े हो कर अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहें थे। फिर दूर कहीं किनारे पर ढ़ेर सारी नौकाओं में एकाध दो पाल वाली नैनीताल बोट हाउस क्लब की हरी, पीली, एवं ब्लू रंग की नौकाएं झील की सतह पर फिसलती दिख रहीं थीं। 
बाहर से आने वाले पर्यटक ज़्यादातर झील में नौकायन के लिए साधारणतया तल्लीताल वोट स्टैंड का ही ज्यादा प्रयोग करते हैं। जो पर्यटक मल्ली ताल ,बजरी वाले मैदान,सूखा ताल, बड़ा बाज़ार के पास ठहरते हैं उनके लिए मल्ली ताल बोट स्टैंड के पास आना ही सुविधा जनक होता है। 
हालाँकि तल्ली ताल से थोड़ा आगे बढ़ते ही ठंढी सड़क स्थित माँ पाषाण देवी का मंदिर नजदीक ही दिखता है। वही पाषाण देवी के पास ही थोड़ा आगे हट कर न जाने क्यों ढ़ेर सारे पहाड़ दरक कर नीचे आ गए थे। पिछले साल ही तो अगस्त के महीने में ही बारिश की बजह से पाषाण देवी मंदिर के समीप भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ था। बड़े बड़े पत्थर और बोल्डर्स नीचे गिरते हुए न जाने कितनी मात्रा में झील में समा गए थे,पता नहीं। ठीक उसके उपर स्थित हॉस्टल के भी ढह के गिर जाने का ख़तरा बना हुआ था। तब मालूम हुआ था ठंढी सड़क की ओर जाने वाला रास्ता आम जनों की आवाजाही के लिए महीनों तक बंद कर दिया गया था। यहीं कोई साल २०२२ के जून के महीने में खोला गया था । अक्सर ठंढी सड़क के पहाड़ दरकते ही रहते हैं।  
आगे बढ़ते ही हमें झील की बायीं तरफ़ ठंढी सड़क से सटे कई एक मंदिर मिलते हैं यथा शनिदेव का मंदिर, इष्ट देवता गोलजू का मंदिर ,भगवान शिव का मंदिर। और अंत में माता नैना देवी के मंदिर के  दर्शन होते हैं जो मल्लीताल ठंढी सड़क के किनारे स्थित है । फिर नैना देवी मंदिर के पार्श्व में ही तो गुरुद्वारा जुड़ा हैं। 
सच कहें तो  रात में नैना देवी मंदिर के पीले नन्हें बल्बों की सजावट हमें दूर से ही दिख जाती हैं, झील में प्रतिबिंबित नैना देवी मंदिर की छाया सुबह सुबह भी देखी जा सकती है ।
लेकिन हमारी नाव झील के मध्य में पहुंच चुकी थी और हमें अपनी बायीं तरफ़ देवी का मंदिर तो दायी तरफ़ माल रोड के ढ़ेर सारे होटल्स, सेंट फ्रांसिस कैथोलिक चर्च  दिख रहें थे। होटल से मुझे याद आ गया इसी मॉल रोड पर १८७० - १८७२ में बना नैनीताल का सबसे पुराना होटल शायद कोई  ग्रैंड होटल भी है।अब तो नैनीताल में ढ़ेर सारे होटल्स जैसे शेरवानीमनु महारानी  भी खुल गए हैं। लेकिन सबसे पुराना होटल ग्रैंड होटल ही था। हम दायी ओर माल रोड के मध्य दुर्गा लाल शाह लाइब्रेरी तक़ पहुंच चुके थे। यह झील का मध्य भाग ही था। 

नैनीताल की सुबह अपर लोअर मॉल रोड .छाया चित्र डॉ मधुप 

पता नहीं क्यों दुर्गा लाल शाह लाइब्रेरी की लाल रंग की  टिन वाली ढलवां छत की बिल्डिंग बहुत अच्छी लगती है। जब भी हम अपर मॉल रोड पर टहलते थे तो इसके पास के इकलौता पेड़ की छाया इसे और खुबसूरत बना देती  है। लेकिन इस बार उसका रंग हरे से मिट्टी के रंग में बदल दिया गया था शायद। 
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गतांक से आगे. २ 
 
नैनीताल बोट हाउस क्लब , मल्ली ताल बोट स्टैंड : कोलाज विदिशा 

यहीं आस पास अपर माल रोड से सटे नैनीताल का सबसे पुराना मेथोडिस्ट चर्च भी दिखता है ,जिसे हमें अपनी जानकारी में जरूर शुमार करना चाहिए। देखने और जानने लायक है। 
मुझे याद हैं जब हमने अपने बचपन में लोअर मॉल रोड से सटे दो बिल्डिंग्स सीतापुर आँख के अस्पताल ,तथा गवर्नरस बोट हाउस के आस पास बहुत सारी तस्वीरें खिचवाई थी। जिसे आज भी सहेज कर मैंने अपनी यादों के पिटारे में अक्षुण्ण रखी है। नैनीताल की बड़ी पुरानी इमारतें हैं ये सब। ये दोनों इमारतें झील से सटी होती हैं ,झील से दिखती भी हैं इसलिए फोटोग्राफर्स की पसंद में होती हैं। 

मॉल रोड के मेथोडिस्ट तथा सेंट फ्रांसिस चर्च : कोलाज विदिशा 

अब रह रह कर नैना देवी के मंदिर के घंटे की आबाजें स्पष्ट सुनाई देने लगी थी। हम मंदिर के समीप पहुँच रहें थे। लाल रंग में रंगी नैना देवी मंदिर की दीवारें दूर से ही पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेती हैं। 
हम गवर्नरस बोट हाउस तक़ पहुंच चुके थे।  फ़िर गवर्नरस बोट हाउस से सटे ही तो नैनीताल का बोट हाउस क्लब हैं, जिसकी स्थापना अंग्रेजों ने की थी। इस नैनीताल बोट हाउस क्लब में सिर्फ़ यहाँ के सदस्य ही प्रवेश कर सकते  हैं और पाल वाली नौकाओं जो नैनीताल की पहचान है ,में झील का विहार कर सकते हैं। 
नैना देवी मंदिर परिसर : कोलाज विदिशा 

और ठीक इसी नैनीताल का बोट हाउस क्लब से सटे मल्ली ताल का बोट स्टैंड आता हैं जहाँ सुबह से शाम तलक भीड़ ही भीड़ लगी होती हैं। आपको यहाँ के स्थानीय शौकिया फोटोग्राफर्स ढ़ेर सारे मिल जाएंगे जिनसे आप फोटोज खिचवा सकते हैं। 


मल्ली ताल में पर्यटकों का मनोरंजन करती पुलिस बैंड : फोटो विदिशा 

शीघ्र ही बोट मल्लीताल बोट स्टैंड में किनारे आ कर लग गयी। और सामने ही टूरिस्ट शेड स्टैंड थी जिसे यहाँ के लोग बैंड स्टैंड कहते हैं। शायद इसे प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट ने बनाया था , १९६० ईसवी के आस पास इसका नवीनीकरण भी किया गया। जहाँ से झील का विस्तृत नजारा देखा जा सकता था । वहीं पुलिस वाले बैंड बजा रहें थे। उनकी धुनें अब हम तक सुनाई दे रही थी। ठीक उसके  सामने बजरी वाला मैदान पसरा हुआ था। और उससे सटी नैना पीक की पहाड़ियां बिखरी पड़ी थी। हम झील के उस पार पहुंच चुके थे। रास्तें में हद से ज्यादा भीड़ थी। स्टैंड में पहले से ही लोग जमा थे। पुलिस बाले प्रोग्राम की तैयारी शुरू ही करने वाले थे। स्टैंड के पास ही कैपिटल सिनेमा और उससे हटकर माँ नैना देवी का पवित्र मंदिर था। 
संपादन / लेखन. विदिशा.
मिडिया फीचर डेस्क.नई दिल्ली.
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Page - 7 
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किलवरी : पंछियों का डेरा हैं....
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डॉनवीन जोशी, संपादक.नवीन समाचार.  
नैनीताल.

२२१५ की ऊंचाई पर एक खूबसूरत पिकनिक स्थल किलबरी : फोटो डॉ.नवीन जोशी.

सरोवरनगरी के निकट एडवेंचर व शांति पसंद सैलानियों के लिए विकसित हो रहा नया पर्यटक स्थल।
प्रकृति का स्वर्ग कही जाने वाली सरोवरनगरी नैनीताल तो अपनी खूबसूरती के लिए विश्व प्रसिद्ध पर्यटक है ही। लेकिन यदि आप इस स्थान के आसपास की प्रकृति को उसके वास्तविक अनछुवे स्वरूप में देखना चाहते हैं, तथा एडवेंचर यानी साहसिक पर्यटन और शांति की तलाश में पहाड़ों पर आए हैं, तो किलवरी-पंगूठ क्षेत्र आपकी अभीष्ट मंजिल हो सकती  है।
एक खूबसूरत पिकनिक स्थल किलबरी : सरोवरनगरी से करीब  १३ किमी की दूरी पर समुद्र सतह से २२१५ की ऊंचाई पर स्थित किलवरी (अपभ्रंश किलबरी ) अंग्रेजी दौर में घने नीरव वन क्षेत्र में स्थित एक खूबसूरत पिकनिक स्थल है। इसके नाम से ही इसकी व्याख्या करें तो कह सकते हैं कि यह ‘वरी’ यानी चिंताओं को ‘किल’ यानी मारने का स्थान है। मानवीय हस्तक्षेप के नाम पर इस स्थान पर अभी हाल के वर्षों तक केवल १९२० -२१ में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया वन विभाग का एक डाक बंगला ही था। 
हाल के वर्षों में ही यह स्थान साहसिक पर्यटन व शांत प्रकृति के चितेेरे पर्यटकों का पसंदीदा स्थल बनने लगा है। 
पंगूठ के रिजार्ट : और इस स्थान से तीन किमी आगे पंगूठ नाम के स्थान पर कुछ रिजार्ट तथा तंबू ( हट्स ) की कैंप साइट विकसित होने लगी हैं, जो सैलानियों को अल्प सुविधाओं के साथ प्रकृति के पूरे करीब लाने में समर्थ रहती हैं। 
बगड़ तथा सिगड़ी : पास में बगड़ तथा सिगड़ी में भी कैंप साइटें विकसित हो रही हैं। इस स्थान पर सैलानी हिमालयी क्षेत्रों में समुद्र सतह से तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर उगने वाली हरी-भरी वानस्पतिक जैव विविधता, मुख्यतः बांज, अयार व राज्य वृक्ष बुरांश के साथ ही समुद्र सतह से तीन सौ मीटर की ऊंचाई पर बहने वाली कोसी नदी के किनारे के चीड़ जैसे घने जंगलों के बीच छुट्टियां बिता सकते हैं।
पंछियों का डेरा हैं किलवरी : तीन हजार से तीन सौ मीटर की ऊंचाई के इन वनों में वन्य जीवों और अब तक रिकार्ड ब्राउन वुड आउल (उल्लू), कलर ग्रोसबीक, सफेद गले वाले लाफिंग थ्रश और फोर्कटेल हिमालयन वुड पैकर, मिनिविट, बुलबुल सहित १५८ से अधिक हिमालयी पक्षी प्रजातियों   को देखा जा सकता है। 
इसी कारण प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय शिकारी जिम कार्बेट के दौर में इस क्षेत्र को बर्ड सेंचुरी यानी पक्षियों के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव बना था, इधर इस हेतु प्रयास एक बार पुनः शुरू हो गए हैं। सर्दियों में यह इलाका कुछ हफ्तों के लिए सड़क पर बर्फ जम जाने की वजह से बाहरी दुनिया से कट जाता है, लेकिन शेष समय सैलानी यहां से मौसम साफ होने पर बर्फ से ढकी नगाधिराज हिमालय की चोटियों के साथ सैकड़ों किमी दूर की कुमाऊं की पहाड़ियों व स्थलों के खूबसूरत नजारे ले सकते हैं। 
विनायक जैसे पर्यटन स्थल : आसपास व विनायक जैसे पर्यटन स्थल भी विकसित हो रहे हैं, लेकिन दूरी अधिक होने की वजह से आम सैलानी यहां नहीं पहुंच पाते, लेकिन जो एक बार यहां पहुंच जाते हैं, यहाँ हमेशा के लिए रुकने की बात करते हैं।

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Page 8.Yatra Sansmaran : Dr. Madhup.
Top 10 Worth Seeing places in and around Almora. 
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supported by
सर्वे भवन्तु सुखिना 

Dr. Madhup Raman.

in and around Almora.


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Almora stands itself as a district with its headquarter Almora based on an average hight of 1600 meter has a cool climate throughout the year. Weather throughout the year suits you those who come from the plain areas.
Where ever I visited Almora I noticed that it has been famous for its alluring beauty, panoramic view of the stretched Himalayas, rich ancient cultural heritage, unique handicrafts and delicious cuisines. 
It is famous for its temple like Chitai and Nanda Devi, magnificent snowy peaks of the Himalayas, quaint cottages and abundance flora and fauna. And these all are enough for getting inspiration to be the Sumitranandan Pant in one's life
All together if we collect ourselves we get these worth seeing places : in Almora are 
      
a. Kasar Devi Temple, 
b. Katarmal Surya Temple,
c. Khagrama Temple
d. Nanda Devi Temple
e. Murali Manohar Mandir
f.  Chitai Golu Devta Temple 
g. Gairar Golu Dham

h. Mrig Vihar Zoo   
i. Crank's Ridge and 
j.  Budden Memorial Methodist Church, 
k. Govind Ballabh Pant Museum
lSimtola Eco Park : Just 2 to 3 Kilometer in town
m. Dear Park : Passing through the dear park watching the sunsetting landscapes 
of Almora it was looking like a nice portrait of any perfect artist.
n. Mall Road of Almora.


Bright End Corner : Almora. Courtesy Photo.

n.  Bright End Corner : The most beautiful place of  Almora  is idyllically situated at the end of Almora ridge, allowing the mortals to gaze into panorama of the mighty Himlayas. It is a scenic place situated at a favourable distance of 2 km from the beauteous Almora district of Uttrakhand.
This natural paradise offers a mesmerising view of the dusk and dawn playing hide and seek with the snowy peaks.

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Binsar offering the beauty of Himlayas : Courtesy photo 

Binsar : This time at the altitude of 2040 meter height Binsar is the most enchanting  place in Almora. Now this time this is in my scheduled tour and travel and I have to visit this place. Binsar offers the majestic view of Himlayan Peak that stands only 25 kilometer away from Almora. 
Binsar was the erstwhile summer capital of  Chand Dynasty who ruled from Kumaon from 7th to 18 th century.

Jagesgwar Temple Complex. Courtesy photo

Jageshwar Temple : It was through the shadow of deodars and pines I could not forget found myself spelt bound with the unmatched untold beauty of Almora. Temple complex is really a worth seeing place for every one who visits Almora. I kept  trying to remember a famous  song location of Rajshree produced film Vivabh. 

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Page 9. Yatra Sansmaran 
Yamunotri Yatra. Namita Singh.
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यमुनोत्री मोक्ष प्राप्ति का स्थान : यमुनोत्री की ओर.


यमुनोत्री के दर्शन : फोटो नमिता सिंह .

हर मनुष्य की इच्छा होती है कि वह भ्रमण करें ,भ्रमण में तीर्थ यात्रा इस की तो बात ही कुछ अलग है। मनुष्य जब अपने उम्र के पड़ाव पर पहुंचने लगता है, तो वह अपने लिए जीना चाहता है । उसके जीने का अर्थ है, कि अपनी ढलती उम्र में भोजन और वस्त्र नहीं बल्कि गृहस्थ आश्रम में ही रहकर सन्यासी के रूप धरकर भगवान को पाने की इच्छा । 
इसी इच्छा को मैं भी अपने हृदय में संजोग कर रखती हूं । इसी प्रयास के तहत मेरी यात्रा अक्टूबर माह के दशहरे की छुट्टी में प्रारंभ हुई इस बार की इच्छा यमुना मैया और गंगा मैया तक पहुंचने की थी। मेरे कहने का अर्थ तो आप समझ ही गए होंगे कि  मेरा उद्देश्य यमुनोत्री और गंगोत्री की यात्रा से थी। 
हरिद्वार से प्रारंभ : हमने अपनी यात्रा हरि के द्वार अर्थात हरिद्वार से प्रारंभ की जहां की गंगा मैया के पावन जल में स्नान कर अपने को शुद्ध कर लिया, फिर भी गंगा का उद्गम स्थान देखने की इच्छा किसे नहीं होती है । उसी इच्छा को पूरी करने के लिए हमारी गाड़ी  हरिद्वारऋषिकेश , देहरादूनमसूरी के रास्ते हिमालय की पहाड़ियों की ओर धरासू बड़कोट के रास्ते  जानकीचट्टी की ओर धीरे धीरे बढ़ने लगी थी ।
यमुनोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में है । जानकीचट्टी इसका अंतिम पड़ाव है ,जहां से हम घोड़े, खच्चर ,पालकी पैदल ,के रास्ते समुद्र तल से १०००० फीट की ऊंचाई पर चढ़ाई कर सकते हैं । यह रास्ता ६ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई वाला  है। मन में अटल विश्वास और श्रद्धा ही आपको सूर्य की पुत्री यमुना माता के दरबार यमुनोत्री तक पहुंचा सकती है ।
काशी विश्वनाथ की धरती पर यमुनोत्री को मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना गया है, यमुना मां शनि महाराज की बहन के रूप में मोक्ष पाने वाली आत्माओं की शांति के लिए प्रवाहित हुई थी , हमारा हिंदू शास्त्र पौराणिक कथाओं पर आश्रित है। 
यमुनोत्री जाने के रास्ते पतले नुकीले  पत्थरों  से  बने है। रास्ते में एक तरफ विशालकाय कलिंदी पर्वत श्रृंखलाएं हैं तो दूसरी तरफ खाई और नीचे यमुना की पतली धारा । दृश्य इतना  रमणीक कि ना लेखनी में इतनी ताकत है, ना  कल्पना में , मैं  तो केवल अपने अनुभव द्वारा और आंखों में कैद दृश्यों को अपनी भावनाओं द्वारा व्यक्त करने की कोशिश ही कर सकती हूँ। 
सप्त ऋषि गरम कुंड : 
यमुना मैया के सप्त ऋषि गरम कुंड में स्नान कर अपने मन के पापों  को धोकर उनके दर्शन कर मोक्ष की प्राप्ति के बाद लौटना एक अलग ही अनुभव है । यमुनोत्री में रहने लायक यथेष्ट धर्मशाला और होटल्स आपको मिल जाएंगे ,तनिक भी चिंता करने लायक बात नहीं है। खाने पीने की भी पर्याप्त सुविधाएं है। आप भी यमुनोत्री यात्रा के लिए जा सकते है जहां आपको धर्म ,अध्यात्म तथा प्रकृति का अद्भुत समिश्रण मिलेंगा। 
नमिता सिंह मजखाली , 
रानीखेत 


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Page 9. Yatra Sansmaran.
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Page 10. Art Gallery 
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घने जंगलों से गुजरते हुए : कला : अमृता 

एक पहाड़ी गांव की आम जिंदगी : कला अमृता 

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देखें फोटो दीर्घा.पृष्ठ .११
सम्पादन : अशोक कर्ण   
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 रात में सिडनी का दृश्य : फोटो अशोक करन 
ठंढी सड़क से रात में नैनीताल का दृश्य  : फोटो अरूप.प.बंगाल .

केदार नाथ के दर्शन : फोटो बसंत 
ठंढी सड़क से नैनीताल माल रोड का नजारा : फोटो डॉ.मधुप 
शाम के वक़्त ताज : फोटो रिम्मी 



सहयोग. 


ठंढी सड़क नैनीताल से दिखता तल्ली ताल फोटो डॉ. मधुप 

भुवाली के सुंदर  नजारें : डॉ. मधुप 

 
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Page 13.You Said It :
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The Soul Never Dies.

the soul never dies : courtesy photo.

It was during those days, near to my residence where people use to move from one place to another by foot, though very less bus used to ply over the road, the buses came overloaded and the road system was not that good, which means it was not in a good condition as we see today.
I still remember the dark night and there was a terrible wind howling outside when I came out to my varandah. I was leaning by the wall as I got scolding from my mom for not handling the core activity assigned to me. I stayed quiet and lonely for around ten minutes where the thoughts were rolling and occupying the space over my head for hurting my mom. 
It was during that time when I saw a man hanging on a tree and committing a suicide. It seemed the man was having some super natural power and was trying to fly off along with the wind. I being small, I could not understand what it meant. I just gazed at him for few minutes  wherein I didn't feel any unusual activity regarding the man. After few minutes, something struck my mind to go and call my dad. I called him and showed him what I saw. 
To my surprise it was a man of my dad's friend who was undergoing some sort of depression in the financial way and was never happy in his life. As he was living all alone in the rooms provided to him by the company, he never shared his thoughts ever to anyone.
The people gathered in an around of the colony who were deeply affected by seeing such an unthought scenario which they have never expected. The ultimate thing was to carry out his funeral rituals in his own religious way. 
Even today  it is said, " During the full moon day, the same man is seen to be hanging over the same tree. And the people used to say that the soul of an unfulfilled desired person remains on the earth ever.
Priya / Darjeeling.

Page 1.
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