सारे पर्वतीय अंचल में आडू, सेव, नाशपाती, खुमानी, आलुबुखारे, बुरांश, शिलफोड़ा, कुंज, शिलग, शाल, लिगुड़ों-कोल्थ्यूडा के नन्हें-नन्हें कोपल नवजात शिशु की बन्द मुट्ठियों से लगते हैं। अर्थात् उपरोक्त वृक्षों में फूलों की शोभा देखते ही बनती है। प्रकृति अपना सम्पूर्ण परिधान तो बदलती ही है।
पहाड़ की प्यारी चिड़ी घुघुती : हमारी विशिष्ट पहचान है। इस प्यारी चिड़ी में हम सभी पहाड़ियों की आत्मा बसती है। यह बतला देती है मैं पहाड़ की प्यारी चिड़ी हूँ जो सदैव तुम्हें मनभावन सन्देश देना चाहती हूँ।
आज भी पहाड़ों के दरमियाँ चलते हुए हमें प्यारी चिड़ी घुघुती की आवाज़ सुनाई दे रही थी।वसंत आने के साथ साथ वातावरण में पशु-पक्षियों में भी परिवर्तन आना स्वाभाविक ही है। हमारे पर्वतीय क्षेत्र में ये जाना वाला पक्षी जिसे हम " घुघुती " कहते हैं वह पहाड़ की ऊँची-ऊँची चोटियाँ हों की सुन्दर-सुन्दर घाटियाँ, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर उसकी चिर-परिचित आवाज वतावरण में एक स्फूर्ति पैदा कर देती है जिसे इस माह प्रातः तथा सायं सुना जा सकता है। यही आवाज गाँवों में घरों में वहाँ की छतों में, आँगनों में सभी जगह सुनी सकती है। घुघूती की आवाज का वर्णन गीतों लोक कथाओं में किया गया है। चैत के इस महीने तक प्रगति में बदलाव आता है। पहाड़ों पर चैत्र के महीने में एक चिड़िया घुई - घुई बोलती है इसलिए इसे घुघुती कहते हैं। घुघुती का उल्लेख पहाड़ी दंतकथाएं और लोक गीत में भी पाया जाता हैं।
सैलानियों का आना जाना : अप्रैल माह से ही अमूमन चैत्र मास की शुरुआत हो जाती है। सैलानियों का आना जाना शुरू हो जाता है। तल्ली ताल के पास आस पास आती जाती गाड़ियां ही बतला देती हैं कि परदेशी आने लगे हैं । हमारी इष्ट देवी नैना देवी की कृपा हम सभी पहाड़ियों पर बरसती हैं जो झील के उस पार मल्ली ताल में बिराजती हैं।
उस दिन हमें रिपोर्टिंग के लिए तल्लीताल बोट स्टैंड से मल्ली ताल जाना था। माल रोड में अच्छी खासी भीड़ जमा थी । लगभग जाम ही लगा था। सोची नाव ही किराए पर ले लेते हैं। यहीं से मल्लीताल बोट स्टैंड तक चले जाएंगे। हालाँकि नाव वाले पर्यटकों को झील की आधी दूरी तक़ ही ले जाते हैं। फ़िर आधीझील मल्ली ताल बोट स्टैंड के हिस्सें में पड़ती हैं। आम टूरिस्ट के लिए पूरे झील का चक्कर इस पार से उस पार महंगा पड़ ही जाता है। तल्लीताल बोट स्टैंड : हम सायं चार बजे तल्ली ताल बोट स्टैंड पहुंच चुके थे। हमने तल्ली ताल से ही हमने किराए पर बोट ले ली थी। ......
दीप्ती बोरा. नैनीताल.
मिडिया फीचर डेस्क.नई दिल्ली.
संपादन / सह लेखन. विदिशा.
गतांक से आगे. १
तल्ली ताल पाषाण देवी और नैनी झील : कोलाज विदिशा.
हम तल्लीताल से नाव लेकर मल्लीताल स्टैंड को ओर जाने लगे थे । हमें एक लम्बी दूरी तय करनी थी। लोअर माल रोड में आती जाती गाड़ियों का शोर जैसे हमें बहरा ही कर दे रहा था।
हमारी दायी तरफ़ माल रोड से सटे पास का वीपिंग विल्लो का पेड़ नीचे भार युक्त हो कर जैसे पानी के भीतर ही समा गया था। अभी भी ढ़ेर सारे पर्यटक लाइफ जैकेट पहन कर तल्ली ताल स्टैंड में खड़े हो कर अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहें थे। फिर दूर कहीं किनारे पर ढ़ेर सारी नौकाओं में एकाध दो पाल वाली नैनीताल बोट हाउस क्लब की हरी, पीली, एवं ब्लू रंग की नौकाएं झील की सतह पर फिसलती दिख रहीं थीं।
बाहर से आने वाले पर्यटक ज़्यादातर झील में नौकायन के लिए साधारणतया तल्लीताल वोट स्टैंड का ही ज्यादा प्रयोग करते हैं। जो पर्यटक मल्ली ताल ,बजरी वाले मैदान,सूखा ताल, बड़ा बाज़ार के पास ठहरते हैं उनके लिए मल्ली ताल बोट स्टैंड के पास आना ही सुविधा जनक होता है।
हालाँकि तल्ली ताल से थोड़ा आगे बढ़ते ही ठंढी सड़क स्थित माँ पाषाण देवी का मंदिर नजदीक ही दिखता है। वही पाषाण देवी के पास ही थोड़ा आगे हट कर न जाने क्यों ढ़ेर सारे पहाड़ दरक कर नीचे आ गए थे। पिछले साल ही तो अगस्त के महीने में ही बारिश की बजह से पाषाण देवी मंदिर के समीप भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ था। बड़े बड़े पत्थर और बोल्डर्स नीचे गिरते हुए न जाने कितनी मात्रा में झील में समा गए थे,पता नहीं। ठीक उसके उपर स्थित हॉस्टल के भी ढह के गिर जाने का ख़तरा बना हुआ था। तब मालूम हुआ था ठंढी सड़क की ओर जाने वाला रास्ता आम जनों की आवाजाही के लिए महीनों तक बंद कर दिया गया था। यहीं कोई साल २०२२ के जून के महीने में खोला गया था । अक्सर ठंढी सड़क के पहाड़ दरकते ही रहते हैं।
आगे बढ़ते ही हमें झील की बायीं तरफ़ ठंढी सड़क से सटे कई एक मंदिर मिलते हैं यथा शनिदेव का मंदिर, इष्ट देवता गोलजू का मंदिर ,भगवान शिव का मंदिर। और अंत में माता नैना देवी के मंदिर के दर्शन होते हैं जो मल्लीताल ठंढी सड़क के किनारे स्थित है । फिर नैना देवी मंदिर के पार्श्व में ही तो गुरुद्वारा जुड़ा हैं।
सच कहें तो रात में नैना देवी मंदिर के पीले नन्हें बल्बों की सजावट हमें दूर से ही दिख जाती हैं, झील में प्रतिबिंबित नैना देवी मंदिर की छाया सुबह सुबह भी देखी जा सकती है ।
लेकिन हमारी नाव झील के मध्य में पहुंच चुकी थी और हमें अपनी बायीं तरफ़ देवी का मंदिर तो दायी तरफ़ माल रोड के ढ़ेर सारे होटल्स, सेंट फ्रांसिस कैथोलिक चर्च दिख रहें थे। होटल से मुझे याद आ गया इसी मॉल रोड पर १८७० - १८७२ में बना नैनीताल का सबसे पुराना होटल शायद कोई ग्रैंड होटल भी है।अब तो नैनीताल में ढ़ेर सारे होटल्स जैसे शेरवानी, मनु महारानी भी खुल गए हैं। लेकिन सबसे पुराना होटल ग्रैंड होटल ही था। हम दायी ओर माल रोड के मध्य दुर्गा लाल शाह लाइब्रेरी तक़ पहुंच चुके थे। यह झील का मध्य भाग ही था।
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नैनीताल की सुबह अपर लोअर मॉल रोड .छाया चित्र डॉ मधुप |
पता नहीं क्यों दुर्गा लाल शाह लाइब्रेरी की लाल रंग की टिन वाली ढलवां छत की बिल्डिंग बहुत अच्छी लगती है। जब भी हम अपर मॉल रोड पर टहलते थे तो इसके पास के इकलौता पेड़ की छाया इसे और खुबसूरत बना देती है। लेकिन इस बार उसका रंग हरे से मिट्टी के रंग में बदल दिया गया था शायद।
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गतांक से आगे. २
नैनीताल बोट हाउस क्लब , मल्ली ताल बोट स्टैंड : कोलाज विदिशा
यहीं आस पास अपर माल रोड से सटे नैनीताल का सबसे पुराना मेथोडिस्ट चर्च भी दिखता है ,जिसे हमें अपनी जानकारी में जरूर शुमार करना चाहिए। देखने और जानने लायक है।
मुझे याद हैं जब हमने अपने बचपन में लोअर मॉल रोड से सटे दो बिल्डिंग्स सीतापुर आँख के अस्पताल ,तथा गवर्नरस बोट हाउस के आस पास बहुत सारी तस्वीरें खिचवाई थी। जिसे आज भी सहेज कर मैंने अपनी यादों के पिटारे में अक्षुण्ण रखी है। नैनीताल की बड़ी पुरानी इमारतें हैं ये सब। ये दोनों इमारतें झील से सटी होती हैं ,झील से दिखती भी हैं इसलिए फोटोग्राफर्स की पसंद में होती हैं।
मॉल रोड के मेथोडिस्ट तथा सेंट फ्रांसिस चर्च : कोलाज विदिशा
अब रह रह कर नैना देवी के मंदिर के घंटे की आबाजें स्पष्ट सुनाई देने लगी थी। हम मंदिर के समीप पहुँच रहें थे। लाल रंग में रंगी नैना देवी मंदिर की दीवारें दूर से ही पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेती हैं।
हम गवर्नरस बोट हाउस तक़ पहुंच चुके थे। फ़िर गवर्नरस बोट हाउस से सटे ही तो नैनीताल का बोट हाउस क्लब हैं, जिसकी स्थापना अंग्रेजों ने की थी। इस नैनीताल बोट हाउस क्लब में सिर्फ़ यहाँ के सदस्य ही प्रवेश कर सकते हैं और पाल वाली नौकाओं जो नैनीताल की पहचान है ,में झील का विहार कर सकते हैं।
नैना देवी मंदिर परिसर : कोलाज विदिशा
और ठीक इसी नैनीताल का बोट हाउस क्लब से सटे मल्ली ताल का बोट स्टैंड आता हैं जहाँ सुबह से शाम तलक भीड़ ही भीड़ लगी होती हैं। आपको यहाँ के स्थानीय शौकिया फोटोग्राफर्स ढ़ेर सारे मिल जाएंगे जिनसे आप फोटोज खिचवा सकते हैं।
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मल्ली ताल में पर्यटकों का मनोरंजन करती पुलिस बैंड : फोटो विदिशा
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शीघ्र ही बोट मल्लीताल बोट स्टैंड में किनारे आ कर लग गयी। और सामने ही टूरिस्ट शेड स्टैंड थी जिसे यहाँ के लोग बैंड स्टैंड कहते हैं। शायद इसे प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट ने बनाया था , १९६० ईसवी के आस पास इसका नवीनीकरण भी किया गया। जहाँ से झील का विस्तृत नजारा देखा जा सकता था । वहीं पुलिस वाले बैंड बजा रहें थे। उनकी धुनें अब हम तक सुनाई दे रही थी। ठीक उसके सामने बजरी वाला मैदान पसरा हुआ था। और उससे सटी नैना पीक की पहाड़ियां बिखरी पड़ी थी। हम झील के उस पार पहुंच चुके थे। रास्तें में हद से ज्यादा भीड़ थी। स्टैंड में पहले से ही लोग जमा थे। पुलिस बाले प्रोग्राम की तैयारी शुरू ही करने वाले थे। स्टैंड के पास ही कैपिटल सिनेमा और उससे हटकर माँ नैना देवी का पवित्र मंदिर था।
संपादन / लेखन. विदिशा.
मिडिया फीचर डेस्क.नई दिल्ली.
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किलवरी : पंछियों का डेरा हैं....
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डॉ. नवीन जोशी, संपादक.नवीन समाचार.
नैनीताल.
२२१५ की ऊंचाई पर एक खूबसूरत पिकनिक स्थल किलबरी : फोटो डॉ.नवीन जोशी.
सरोवरनगरी के निकट एडवेंचर व शांति पसंद सैलानियों के लिए विकसित हो रहा नया पर्यटक स्थल।
प्रकृति का स्वर्ग कही जाने वाली सरोवरनगरी नैनीताल तो अपनी खूबसूरती के लिए विश्व प्रसिद्ध पर्यटक है ही। लेकिन यदि आप इस स्थान के आसपास की प्रकृति को उसके वास्तविक अनछुवे स्वरूप में देखना चाहते हैं, तथा एडवेंचर यानी साहसिक पर्यटन और शांति की तलाश में पहाड़ों पर आए हैं, तो किलवरी-पंगूठ क्षेत्र आपकी अभीष्ट मंजिल हो सकती है। एक खूबसूरत पिकनिक स्थल किलबरी : सरोवरनगरी से करीब १३ किमी की दूरी पर समुद्र सतह से २२१५ की ऊंचाई पर स्थित किलवरी (अपभ्रंश किलबरी ) अंग्रेजी दौर में घने नीरव वन क्षेत्र में स्थित एक खूबसूरत पिकनिक स्थल है। इसके नाम से ही इसकी व्याख्या करें तो कह सकते हैं कि यह ‘वरी’ यानी चिंताओं को ‘किल’ यानी मारने का स्थान है। मानवीय हस्तक्षेप के नाम पर इस स्थान पर अभी हाल के वर्षों तक केवल १९२० -२१ में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया वन विभाग का एक डाक बंगला ही था।
हाल के वर्षों में ही यह स्थान साहसिक पर्यटन व शांत प्रकृति के चितेेरे पर्यटकों का पसंदीदा स्थल बनने लगा है।
पंगूठ के रिजार्ट : और इस स्थान से तीन किमी आगे पंगूठ नाम के स्थान पर कुछ रिजार्ट तथा तंबू ( हट्स ) की कैंप साइट विकसित होने लगी हैं, जो सैलानियों को अल्प सुविधाओं के साथ प्रकृति के पूरे करीब लाने में समर्थ रहती हैं।
बगड़ तथा सिगड़ी : पास में बगड़ तथा सिगड़ी में भी कैंप साइटें विकसित हो रही हैं। इस स्थान पर सैलानी हिमालयी क्षेत्रों में समुद्र सतह से तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर उगने वाली हरी-भरी वानस्पतिक जैव विविधता, मुख्यतः बांज, अयार व राज्य वृक्ष बुरांश के साथ ही समुद्र सतह से तीन सौ मीटर की ऊंचाई पर बहने वाली कोसी नदी के किनारे के चीड़ जैसे घने जंगलों के बीच छुट्टियां बिता सकते हैं।
पंछियों का डेरा हैं किलवरी : तीन हजार से तीन सौ मीटर की ऊंचाई के इन वनों में वन्य जीवों और अब तक रिकार्ड ब्राउन वुड आउल (उल्लू), कलर ग्रोसबीक, सफेद गले वाले लाफिंग थ्रश और फोर्कटेल हिमालयन वुड पैकर, मिनिविट, बुलबुल सहित १५८ से अधिक हिमालयी पक्षी प्रजातियों को देखा जा सकता है।
इसी कारण प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय शिकारी जिम कार्बेट के दौर में इस क्षेत्र को बर्ड सेंचुरी यानी पक्षियों के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव बना था, इधर इस हेतु प्रयास एक बार पुनः शुरू हो गए हैं। सर्दियों में यह इलाका कुछ हफ्तों के लिए सड़क पर बर्फ जम जाने की वजह से बाहरी दुनिया से कट जाता है, लेकिन शेष समय सैलानी यहां से मौसम साफ होने पर बर्फ से ढकी नगाधिराज हिमालय की चोटियों के साथ सैकड़ों किमी दूर की कुमाऊं की पहाड़ियों व स्थलों के खूबसूरत नजारे ले सकते हैं।
विनायक जैसे पर्यटन स्थल : आसपास व विनायक जैसे पर्यटन स्थल भी विकसित हो रहे हैं, लेकिन दूरी अधिक होने की वजह से आम सैलानी यहां नहीं पहुंच पाते, लेकिन जो एक बार यहां पहुंच जाते हैं, यहाँ हमेशा के लिए रुकने की बात करते हैं।
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