Holi Hai : Rango Ka Tyohar

 

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Holi Hai : Rango Ka Tyohar.
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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ २.१ गद्य 
परंपरा.कुमाउनी होली. 
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डॉ .नवीन जोशी 
नैनीताल / डॉ. 
नवीन जोशी :  वसंत पंचमी की शुरुआत हो गयी है। सर्वत्र वसंती बयार बहने लगी है। माघ के बाद ही फाल्गुन का महीना आ जाता है। इस महीने के साथ ही रंगों के त्योहार  फागुन की फगुनाहट समस्त देश में फैलने लगती है। इससे पहाड़ भी अछूते नहीं रहते है। पहाड़ों में होली की एक अपनी ही विशिष्ट परंपरा है जिसके आकर्षण की डोर में बंधे देश विदेश से अच्छे खासे सैलानी यहाँ खींचे चले आते है, और खूब मस्ती करते है। 
देश भर में जहां रंगों से भरी और मौज-मस्ती के त्योहार होली फाल्गुन माह में गाई व खेली जाती है, वहीं कुमाऊं की परंपरागत कुमाउनी होली की एक विशिष्टता बैठकी होली यानी अर्ध शास्त्रीय गायकी युक्त होली है, जिसकी शुरुआत पौष माह के पहले रविवार से ही विष्णुपदी होली गीतों के साथ हो जाती है। 
कुमाउनी होली के रंग 
शास्त्रीयता का अधिक महत्व होने के कारण शास्त्रीय होली भी कही जाने वाली कुमाऊं की शास्त्रीय होली की शुरुआत करीब १० वीं शताब्दी में चंद शासनकाल से मानी जाती है। कुछ विद्वानों के अनुसार चंद शासनकाल में बाहर से ब्याह कर आयीं राजकुमारियां अपनी परंपराओं व रीति-रिवाजों के साथ होली को भी यहां साथ लेकर आयीं। वहीं अन्य विद्वानों के अनुसार प्राचीनकाल में यहां के राजदरबारों में बाहर के गायकों के आने से यह परंपरा आई है। कुमाऊं के प्रसिद्ध जनकवि स्वर्गीय गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ के अनुसार कुमाऊं की शास्त्रीय गायकी होली में बृज व अवध से लेकर दरभंगा तक की परंपराओं की छाप स्पष्ट रूप से नजर आती है तो नृत्य के पद संचालन में ठेठ पहाड़ी ठसक भी मौजूद रहती है। इस प्रकार कुमाउनी होली कमोबेश शास्त्र व लोक की कड़ी तथा एक-दूसरे से गले मिलने में ईद जैसे आपसी प्रेम बढ़ाने वाले त्यौहारों की झलक भी दिखाती है। साथ ही कुमाउनी होली में प्रथम पूज्य गणेश से लेकर गोरखा शासनकाल से पड़ोसी देश नेपाल के पशुपतिनाथ शिव की आराधना और ब्रज के राधा-कृष्ण की हंसी-ठिठोली से लेकर स्वतंत्रता संग्राम और उत्तराखंड आंदोलन की झलक भी दिखती है, यानी यह अपने साथ तत्कालीन इतिहास की सांस्कृतिक विरासत को भी साथ लेकर चली हुई है।
फागोत्सव व होली महोत्सव : १९७६  में इन महोत्सवों की नैनीताल से शुरुआत से होने के बाद वर्तमान में प्रदेश के अनेक स्थानों पर ऐसे महोत्सव आयोजित हो रहे हैं, इस तरह नैनीताल पूरे प्रदेश के ऐसे आयोजनों का प्रणेता भी है। सर्वधर्म की नगरी सरोवरनगरी की होली की अनेक खासियतें हैं, और इनमें से एक है यहां पिछले २५ वर्षों से हो रहे फागोत्सव व होली महोत्सव।  इसके अलावा भी नैनीताल के होली महोत्सव की एक और खासियत यह भी है कि यहां होने वाले होली महोत्सव के पीछे जहूर आलम नाम के रंगकर्मी हैं, जो सरोवरनगरी की होली में सर्वधर्म सम्भाव का रंग भी भर देते हैं। जहूर बताते हैं ७० के दशक में नैनीताल सहित पहाड़ों की होली में मैदानी क्षेत्रों की होली के कपड़े फाड़ने, कीचड़ फेंकने व मुंह पर जले तेल आदि की कालिख पोतने जैसे दुर्गुण आ गए थे। इस पर उनके साथ ही उनकी नाट्य संस्था युगमंच के वरिष्ठ सदस्य स्वर्गीय गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, विश्वंभर नाथ साह ‘सखा’, राजीव लोचन साह, डॉ. विजय कृष्ण आदि के साथ श्रीराम सेवक सभा व शारदा संघ आदि संस्थाओं के लोग जुटे और कुमाउनी होली को उसके पारंपरिक स्वरूप में बचाने के लिए १९७६  से फागोत्सव-होली महोत्सव की शुरुआत हुई।


होल्यारों की होली : पुरुषों की  खड़ी होली नैनीताल , फोटो डॉ नवीन जोशी 

होल्यारों की होली : इसके तहत पहली बार गांवों में अपने घरों व पटांगणों तक सीमित महिलाओं व पुरुष होल्यारों की खड़ी व बैठकी होलियां आयोजित हुईं। बाहर से आने वाले होल्यारों के दलों को कलाकारों के रूप में पहली बार न केवल प्रतिष्ठा दी गई, बल्कि उन्हें इसका पारिश्रमिक भी दिया गया। कुमाऊं विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में कुमाउनी होली को विषय में रूप में शामिल किया गया । साथ ही कुमाउनी होली को प्रतिष्ठित करने के लिए दो-तीन वर्ष संगोष्ठियां भी आयोजित हुईं और नई पीढ़ी को पारंपरिक कुमाउनी होली पहुंचाने के लिए कार्यशालियां भी लगातार आयोजित की जाने लगीं, जोकि अब भी होती हैं। जहूर कहते हैं उनकी इस पहल का ही प्रभाव है कि आज यहां पारंपरिक तरीके से ही होली का आयोजन होता है, और उसमें मैदानी क्षेत्रों से आए दुर्गुण नहीं दिखाई देते हैं।
वीडियो लिंक
१. कुमाउनी महिला होली को देखने के लिए 

नीचे दिए गए लिंक दबाए
२. कुमाउनी पुरुष बैठकी  होली को देखने के लिए 

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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ २.२ .होली.
परंपरा नालन्दा की होली. हास्य व्यंग्य 
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सहयोग .

आप सभी को मेरी तरफ़ से होली की हार्दिक शुभकामनाएं .हिंदी नव वर्ष मंगल मय हो 

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बीकानेर स्वीट्स एंड केक प्लेस की तरफ से २०२१ वर्ष में होली की मंगल शुभ कामना 

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जगमग पेंट्स & हार्डवेयर की तरफ़ से २०२१  होली की हार्दिक शुभकामनाएं .

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होली के बहाने हुड़दंग और शरारत का मौका पाने का नाम है होली नालन्दा,

नालन्दा / डॉ मधुप रमण.  
नालंदा ज्ञान की भूमि रही है । 
 नालंदा जहां अपने प्राचीन विश्वविधालय को लेकर पूरी दुनियां में प्रसिद्ध रहा है। वही अपनी जीवंत सभ्यता धड़कती गंगा यमुनी संस्कृति के लिए भी चर्चित रहा है । यहाँ आपको अपने देश की समस्त सम्मलित सभ्यता संस्कृति  की झलक मिलेगी। हम सभी  त्योहारों यथा होली ,दिवाली ,लोक पर्व छठ ईद ,मुहर्रम,गणेश चतुर्थी  को मिल जुल कर जीते हैं। यहाँ  की कपड़ा फाड़ होली की परंपरा अभी भी जीती जागती है। यहां की होली कैसे होती है ? क्योंकर होती है ? यह जानने की लालसा सबों को होगी। संयोग से मेरे जीवन चित्र में  संस्कृति के विभिन्न रंगों का समावेश भी ज्यादा तर यहीं से हुआ। इसलिए बचपन से लेकर अब तक की  होली का अनुभव कुछ इस तरह रहा जिसे मैं आपके सामने तेरी मेरी कहानी की तरह रख  रहा हूँ । जाड़े के दिन समाप्त होने को होते थे। फिज़ा में गर्मी आने को होती थी। दुपहर गर्म  होती।  
बचपन की होली : मुझे कुछ कुछ याद है जब मैं छोटा सा बच्चा था याद करता हूं होली के एक सप्ताह पूर्व से ही अपने शहर बिहार शरीफ में होली का खुमार चढ़ने लगता था। तब उन दिनों रेडियो विविध भारती से होली के गाने बजने लगते थे। होली आई रे कन्हाई ...होली आई रे .....' मदर इंडिया '  के  गाना बजने से ही होली आने का एहसास हो जाता था कि होली आ गई । होली का सामान,रंग ,अबीर मेवे मिठाई  लेने अम्मा जब बाजार  जाती तो मैं उनके साथ होता तब बाजार में भी रंग अबीर से पुते अजीब गरीब चेहरें दिखने लगते थे। लड़खड़ाते पैरों वाले नशे में धुत टुन्न लोग भी ढोंग और नौटंकी करते हुए दिख जाते थे। और अंत में वहीं एक सुनी गयी पुरानी लोकोक्ति ..बुरा न मानो भइया ,होली है ....!  होलिका दहन के दूसरे दिन मंझले चाचा जहां होलिका दहन होती वहां से आदि गुड़ का प्रसाद लाते थे और हम सभी उसे ग्रहण करते थे। मुझे याद है होलिका दहन वाले दिन हमें रात भर घर की खिड़की ,दरवाज़े,खटिए की निगेहबानी भी करनी होती थी न जाने कब कोई शरारती उसे उठा ले जाये और रात में होलिका के हवाले कर जाएं। अल सुबह होली के दिन अक्सर मुहल्लें में यह चर्चा होती थी फलां की टूटी खिड़की  फलां का दरबाजा होलिका के हवाले हो गयी। इस तरह  की गई उदंड शरारत से किसी मासूम गरीब,सीधे साधे इंसान की होली मातमी होली में तब्दील हो जाती थी। सच कहें तो हम अपने भीतर की राक्षसी प्रवृति की होलिका कभी भी जला ही नहीं पाए। हम कभी भी होली के सही मायने ही न समझ पाए। दूसरे की  अंतःपीडा पर अपने मन की मानी ख़ुशी की होली ही अपनी सिद्ध होली रहीं। 
होली के दिन तो सारा दिन विविध भारती,रेडिओ सीलोन से होली के गाने बजते रहते थे। ' चलो सहेली ....चलो रे साथी ' फ़िल्म शोले ,'...' रंग दे गुलाल मोहे ',' दिल में होली जल रहीं है', फिल्म जख़्मी का गाना तो मुझे भली भांति याद है। यहीं कोई सन १९७४ - १९७५ का साल रहा होगा। पिता जी एक बड़ी बाल्टी में लाल या गुलाबी रंग घोल देते थे। रंग तब के शुद्ध हुआ करते थे मनभावन भी । उनमें कोई मिलावट नहीं हुआ करती थी। डाले जाने पर उन रंगों का शरीर पर उसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता था। उस ज़माने में हमारे पास एक पीतल की पिचकारी हुआ करती थी जिसकी धार बहुत दूर तक जाया करती थी। हम भाई बहन सुरक्षित छत के मुंडेरे पर से नीचे आने जाने वाले पर रंग डालने का काम करते थे। डर था कहीं बाल्टी लेकर नीचे गली में जायेंगे तो कहीं हमारी बाल्टी हम  ही न पर उड़ेल दी जाये। इसलिए अपनी गली में अपने छत से ही दुसरे पर रंग उड़ेल सकने में सफल होने पर अपनी गली में कुत्तें के शेर होने का विजयी भाव  भी अपने भीतर होता था। हमने कितनों को रंग डाला  एक दो तीन चार पूरी गिनती रखते थे,
अब तो महंगाई ने हमारी अलग़ कमर तोड़ दी है।
दिनों दिन 
सब कुछ चीजें इतनी महंगी हो गई है कि त्यौहार भी मुतस्सिर हुए है। इधर गांव -बस्ती ,मुहल्ले - टोले में अब रंग अबीर की जग़ह कीचड़ ही चलने लगा है । यह संसाधन सभी ज़गह आसानी से सब के लिए शुल्क रहित उपलब्ध है । नाली में ,पनाले में ,घर में ,सभा में,सडकों पर चौब्बारे में । जब मन करे ,जहाँ मन करे ,जिसका मन करे किसी पर भी कीचड़ उछाल दो और अपनी होली मना लो। क्या आपको नहीं ऐसा नहीं लगता कि अपनी संस्कृति के मूलभूत प्रिय त्यौहार होने के नाते हम लोग इस तरह होली एक दिन ही नहीं पूरे  सालों भर दिल से  मनोयोग से मनाते है। बुरा मान भी लो तो कह लो भइया,' बुरा न मानो होली है.'माँ बाबूजी को रंग लगाने दुपहर गए मोहल्ले वाले की पहचानी अनजानी भीड़ दरवाज़े पर जमा हो जाती थी । माँ की सखी सहेलियां भी होती थी जाने अनजाने लोग भी । दरबाजे बंद होते थे। लेकिन आबाज देने के साथ ही किवाड़ तोड़ने का क्रम भी शुरू हो जाता था। होली की बौराई भीड़ कुछ भी कर सकने के लिए आमादा रहती थी जैसे। 'आज न छोड़ेगे हम तुम सब को खेलेंगे हम होली की गुहार ' और मनुहार शुरू हो जाती थी। रंग लगाने  के क्रम में ही  दौड़ा - दौड़ी ,पटका - पटकी,धींगा मुश्ती  तथा रेश्लिंग की खेल ओलम्पिक प्रतियोगिता शुरू हो जाती थी। घर और पास का मैदान ही अखाड़ा हो जाता था। रंग लगाने का मज़ा तो तब है जब दौड़ा - दौड़ी हो, चने के खेत में जोरा जोरी हो।  इसका असली मज़ा तो तब है जब कोई रंग न लगाना चाहे हम उसे रंग लगाने में सफ़ल हो। 
होली के दिन ही बुरा न मानो होली है के निहित सन्देश के निमित हम से हर कोई जानता ही है हम  उस दिन सब कुछ बुरा मानने वाली हरक़त और शरारत जान   कर ही जाते हैं। और अंत में खीसे निपोर कर भइया बुरा न मानो होली है कह कर अपनी सारी अभद्रता को भद्र ठहरा देते है। होली के दिन बुढ़ऊ के देवर बन जाने की अटूट परंपरा न जाने कब टूटेंगी । हालांकि मेरे घर की रीत कुछ अलग़ थलग है। होली के दिन ही पता चलता था कि मौसियों से रंग लगाने से बचने के लिए बाबूजी मिल्खा सिंह की तरह राउंड दि सिटी की रेस लगा लेते थे। वह अकेले थे जो सिद्ध करते कि होली वाले देवर नहीं है। हम कैसे भुला जाएंगे कि होली के दिन नशे में धुत शांम के वक़्त  रंग अबीर कालिख़ उन पुते चेहरों को जो किसी भी हाल में कभी भी न पहचाने जाने की हालात में  हम मुहल्लें वालों  को ढ़ोल मंजीरे के साथ भद्दी अनचाही पैरोडियाँ सुना जाते थे। शुक्र है धीरे धीरे हम नया दिन नई रात के साथ बदल गए ,प्रथा खत्म होती गयी क्या । अभी भी नेशनल हाई वे चलते हुए होली के दिन बिहार में यदा कदा ट्रक ,ट्रेक्टर बस में चलते हुए द्विअर्थी  भोजपुरी ,गंवई गाने या कहे अन्य प्रादेशिक भाषाओं में सुनने को मिल ही जाते हैं। यकीं माने तो सरे राह चलते चलते आपस में महाभारत होने के कारण और परिदृश्य अभी भी नहीं बदले है। कभी भी कहीं भी किसी के साथ महाभारत का प्रसंग घट  सकता है तथा हममें से कोई भी नारी के सम्मान रक्षार्थ धर्म की संस्थापना के लिए भीम और अर्जुन का योग्य पात्र हो सकता है ।
असली होली के मायने ही अब तो बदल गए अब न तो असली रंग रहे न असली होली रहीं । इस मिलावटी
महंगाई के  युग में हम क्रेताओं, की होली तो कब की फींकी हो गई, होली में होने वाली मिलावट से हुई  आमद से  ख़ुशी का असल रंग तो जमाखोरों, मिलावटखोरों और विक्रेताओं  पर ही चढ़ा और पक्का होता चला गया। ख़ालिस रंग ही तलाशते रह गए  हम वो हमे चूना लगा गए।अब तो रंगों से भी डर लगने लगा है पता नहीं किसके मुख पर कब कहाँ कालिख़ पुत जाए कोई बता नहीं सकता। जाने कहाँ गए वो दिन बजते होली के गीत ,फूलों की होली, पिचकारी से निकलती प्राकृतिक रंगों की बौछार ,उड़ते सुर्ख़ अबीर गुलाल, शर्मों हया  से होते गाल लाल वो मस्तानों की टोली ,मस्तानी होली ,पैदल ही शहर घूम आना ,गुझियां ,मालपुएं ,खीर पुलाव खाना अक्सर याद आते है। बड़ों की दी गई  होली की बख्शीश भी मेरी सुनहरी यादों की   पूंजी और कुंजी है जिसे मैंने बड़े जतन से संभल कर रखा है। अब की बरस होली के दिन नैनीताल या शिमला की पहाड़ियों  में अजनबियों संग बीते अपनों के संग हो  यहीं मेरी सदेच्छा एवं शुभ कामना है।  क्योंकि जब कभी होली के गीत बजते हैं तो  हमें  राजेश खन्ना और आशा पारेख अभिनीत फिल्म ' कटी पतंग ' आज न छोड़ेगे  बस हमजोली  खेलेंगे हम होली ' और हिमाचल की पहाड़ी में फिल्माया गया राकेश रौशन ,हेमा मालिनी अभिनीत फ़िल्म ' पराया धन ' का यह...छेड़छाड़ ,प्यार ,मस्ती भरा सदाबहार गाना ...होली रे होली.मस्तों की टोली , बरबस ही याद आ जाता  है। सन १९७५ के आस पास मुंझे अपने शहर की टाकीज़ में होली के दिन रिलीज़ होने वाली फ़िल्म ' रोटी ',' जख़्मी ' की  अच्छी तरह से याद है कि जब होली के दिन  ये फिल्म लगी थी तो कुमार टॉकीज़ में कितनी भीड़ उमड़ पड़ी थी। उन दिनों बम्बई के निर्माता निर्देशक अपनी कोई न कोई फ़िल्म होली के ख़ास दिन बड़े शहरों में जरूर रिलीज़ करते थे,इस उम्मीद में कि उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित होंगे ।  करते थे ना ? उन फिल्मों में होली के गाने भी बड़ी तरीक़े से फिल्माए जाते थे। 
डॉ मधुप रमण.
हास्य व्यंग्य लेखक और चित्रकार 
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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ २.३.होली.
परंपरा.मगध  की होली. 
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महाराष्ट्र की भांति  मटका फोड़ने की परंपरा गया शहर की होली की है अपनी पहचान 

गया शहर में होली की मस्ती और खुमारी : फोटो सर्वेश   

गया  / सर्वेश मिश्रा. महात्मा बुद्ध के समय मगध महाजनपद कभी एक शक्तिशाली राज्य रहा था जहाँ कभी अजातशत्रु ,बिम्बिसार ,चन्द्रगुप्त मौर्य ,अशोक ,समुद्रगुप्त ' आदि सम्राट ने समस्त भारत के लिए अपनी केंद्रीय सत्ता स्थापित की थी। जिसमें गया ,जहानाबाद ,पटना ,आरा ,नालंदा ,नवादा ,शेखपुरा ,सासाराम आदि जिले के क्षेत्र आते हैं होली के  रंग और खुमार का असर पूर्व से ही दिखने लगता है। 
रंगों का महा पर्व ' होली ' मगध क्षेत्र में पूरे हर्ष व उत्साह के साथ मनाया जाता है। रंगों की  वारिश में सभी शहर वासी लगभग सरावोर हो जाते हैं । हवाओं में रंग, अबीर और गुलाल जम कर उड़ते है। रंग-बिरंगें रंगों में रंगें मस्ती में बौराएं युवाओं की टोली होली के फ़िल्मी गीत गाते हुए अक़्सर गली मुहल्लें में आपको दिख ही जाएंगे। 
' रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग वरसे, अरे कैसे मारी पिचकारी तोरी भींगी अंगिया ओ रंग रसिया, रंग रसिया..., ' होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले... आदि गीतों पर लोग खूब डांस करते हैं। हर गली, हर मुहल्ले और चौक-चौराहों पर यह गाना सुनने को मिल जाएगा । इन गानों पर थिरकते बूढ़े ,युवा ,लड़के ,लड़कियों की टोली होली के रंग को और भी रंगीला बना देती है। छोटे बच्चों की  पिचकारियों से निकलते हरे, लाल पिले  भरे  रंग  सड़कों पर भागते, दौड़ते ,मस्ती करते लोगों पर और भी धमाल मचा देती  हैं। आने जाने वालें राहगीरों को अनायास ही रंग व पानी में  सरावोर कर देने की परंपरा इस शहर की रंगीली रीत है।  
गया की देशी होली : फोटो साभार 
'होलिका दहन के साथ होता है होली का पर्व ' 
जिलें में विधि-विधान के साथ शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है होलिका दहन का दर्शन करने के लिए काफी संख्या मे लोग उपस्थित होते हैंऔर होलिका को नारियल, गेहूँ की बालियाँ, पकवान आदि चढ़ाते हैं। इस दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं ने होलिका की परिक्रमा कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं। शहर में कोयरीबारी, राजेन्द्र आश्रम, नादरागंज, चाँदचौरा, रामसागर, माँ मंगलागौरी, वाईपास, घुंघड़ीटांड़, स्टेशन सहित अन्य मुहल्लों में भी होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।इसके बाद शहर में बच्चों युवाओं की हुड़दंगी टोली निकलती हैं।  पकड़ धकड़ कर एक दूसरे पर कीचड़ डालने तथा अकस्मात्  घरों के छतों  से कीचड़ आते-जाते लोगों पर भी डाल देने की स्थायी एवं पसंदीदा परंपरा  हैं जिसे हम मगध की स्थानीय भाषा में कादो - मट्टी के नाम से जानते हैं। 
महाराष्ट्र की भांति मटका फोड़ने की भी परंपरा गया शहर की होली की अपनी पहचान  बन चुकी है। शहर के हर इलाकों  में लोग मटका फोड़ते हैं, जिसमें उत्साहित युवा शामिल होते है।  और पिरामिड की शक्ल में ऊंची होती गोविंदा की टोली पर निरंतर से रंग फेंके जाने से युवा और भी उल्लासित होते है।  इस प्रकार लोग 'मटका फोड़ ',  ' झूमटा ' के साथ होली का त्योहार समापन  होता है। 
सह लेखक 
आशीष कुमार.       
    
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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ २.४.होली.
परंपरा.पूर्वांचल की होली. 
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पूर्वांचल / नीलम पांडेय. अवध में होली खेले रघुवीरा, अवध में होली खेले रघुवीरा,होलिया में उड़े रे गुलाल...कहियो रे मंगेतर से से लेकर जोगीरा सा..रा..रा...बसंत का ख़ुमार प्रकृति से उतरा भी नहीं होता कि होली का रंग सर चढ़ के बोलने लग  जाता है। विविधताओं को समेटे होली का त्योहार जीवन के हर रंग का प्रतिनिधित्व करता प्रतीत होता है।पतझड़-बसंत के बाद फागुन का आना ,मानो प्रकृति ये समझाने की कोशिश करती है कि जीवन में पतझड़ के साथ बसंत भी अवश्यम्भावी है इसलिए उमंगों की होली मनाना जरूरी है। जीवन में कभी भी ठहराव की स्थिति नहीं होती।समय के साथ प्रकृति में आनेवाला हर बदलाव एक आईना है जिसमें जीवन का हर रंग समाया हुआ है।
विश्वनाथ बाबा की होली : चित्र इंटरनेट से साभार 

बाबा विश्वनाथ के साथ होली : यों तो बसंत पंचमी से ही होली की गूँज सुनाई देने लगती है ।सम्मत जलाने के लिए लकड़ियों को इकट्ठा करने का सिलसिला चल पड़ता है पर रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ के साथ खेली जाने वाली अबीर-गुलाल वाली होली के बाद जो रफ़्तार पकड़ती है तो फागुन पूर्णिमा को होलिका-दहन फिर अगली सुबह रंगों से सबको सराबोर कर के ही दम लेती है। बनारस में रंगभरी एकादशी से ही होली की धूम मची रहती है।ऐसी मान्यता है कि महा शिवरात्रि के दिन पार्वती से विवाह के पश्चात रंगभरी एकादशी के दिन ही शिव पार्वती का गौना कराके कैलाश ले आये।इस दिन शिवभक्तों के द्वारा बाबा की चल प्रतिमा के साथ जम के चंदन और फूलों की अबीर-गुलाल से होली खेली जाती है ।ऐसा माना जाता है कि इस दिन बाबा से माँगी हर मुराद पूरी होती है। बनारस वासी अगले दिन भस्म  की होली भी खेलते हैं।होली के हर रंग में बनारस शहर और गाँव डूबे नज़र आते हैं।

फिल्म नदिया के पार में होली की मस्ती का दृश्य 

बलिया की होली   : उत्तर प्रदेश का जाना माना जिला 'बलिया' जहां कभी 'नदिया के पार' फ़िल्म की शूटिंग हुआ करती थी। इस फ़िल्म की भोली-भाली गुंजा ,सीधे-सादे चंदन और ममतामयी मौसी को भला कौन भूल सकता है।यह फ़िल्म सत्य घटना पर बनी थी जो नगरा के आसपास के किसी गाँव की है और अधिकांश शूटिंग भी गाँव में ही हुई।
मेरे बड़े भाई याद करते हुए बताते हैं ..तब बलिया में एक ही होटल हुआ करता था ढंग का 'सारंग' जहां सूरज बड़जात्या अपनी टीम के साथ आकर रुकते थे। इस फ़िल्म का कुछ हिस्सा जौनपुर में भी फिल्माया गया।गाँव वाले घर से बाहर आकर फ़िल्म की शूटिंग देखते ,जितना हो पाता सहयोग करते। गुंजा और चंदन की होली...जोगीजी वाह जोगीजी ...कोई ढूंढे मूंगा कोई ढूंढे मोतिया . हम ढूंढे अपनी जोगनिया को . गीत में होली के परंपरागत स्वरूप को साकार कर दिया।
होली के निहित सन्देश : होली के पीछे भक्त प्रह्लाद की ऐतिहासिक गाथा प्रचलित है जो हिरण्यकश्यप की क्रूरता, होलिका की निर्ममता के बीच भक्त प्रह्लाद की जलती हुई अग्नि के बीच से सुरक्षित बच निकलने की कहानी की याद दिलाती है।
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न है तो होली खुशियों के रंग से सराबोर करने का पावन अवसर। लकड़ियाँ जुटा के रखने, होलिका दहन के पूर्व नए अनाज की बालियों और पकवान से पूजा फिर बुराई की प्रतीक होलिका का दहन होली के साथ चलने वाली प्रक्रिया है।होली के दिन श्रद्धा पूर्वक नए अनाज से बने पकवान पूर्वजों को निवेदित करने की परंपरा भी है जो पूर्वजों के प्रति हमारी कृतज्ञता का सूचक है। होली के दिन रंगों की बौछारें कोई भेदभाव नहीं रखतीं।बच्चे-बूढ़े,अमीर-गरीब, ऊँच-नीच की सीमाओं से परे होली प्रेम के रंगों से सराबोर कर एक नए जज़्बे के साथ हिन्दू नववर्ष के स्वागत का परंपरागत तरीका है।घर से बाहर या विदेश में रहनेवाले को भी होली मधुर यादों के रंग से सराबोर कर देती है।शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो होली के रंग, अबीर-गुलाल से वंचित रह पाया होगा।
क्रमशः जारी ..

नीलम पांडेय 
स्वतंत्र लेखिका 

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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ २.५.होली.
परंपरा.दिल्ली,जे एन यू  की होली. 
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'...करोगे याद तो हर बात याद आएगी ....'

 जवाहर नेहरू विश्वविधालय परिसर में  होली की मस्ती  : चित्र इंटरनेट से साभार 



जे एन यू. /  डॉ.आर.के. दुबे.  कहते हैं मनुष्य स्वभाव से मननशील होता है । अपने मनन प्रक्रिया में , कमी वह अपने भविष्य का दिवा स्वप्न देखता है , तो कभी गुजरे वक्त के रंगीन नजारों का नजराना मांगने लगता है , अर्थात् सुनहरी यादों में खो जाता है । आज मैं बैठा हूँ अपने अध्ययन कक्ष में , पर कुछ पढ़ने - लिखने के अलावे अपने छात्र जीवन के सुनहरे, रंगीन एवं खट्टी - मिठ्ठी यादों वाले दिनों की स्मृतियों में खो गया हूँ, जो मैंने दिल्ली जे.एन.यू. कैम्पस में बिताए थे । आज ‘ बाजार फिल्म की वो नज्म भी याद आ रही है - ' करोगे याद तो हर बात याद आएगी , गुजरते वक्त की हर मौज ठहर जाएगी ।' वाकई, याद आ रहे है मेरे गुरूजन- रोमिला थापर , सतीश चन्द्र , विपन चंद्र , हरवंश मुखिया , माधवन पलात आदि और उनके विद्वत पूर्ण क्लास लेक्चर का तेजी से नोट लिखना, कैसे जे.एन.यू. एस. यू. के इलेक्शन कमीशनर के रूप में छात्र संघ का चुनाव कराया, अपने हास्टल पेरियार का १५६ नं . कमरा , जहाँ हमने मौज मस्ती के दिन बिताए , दोस्तों के साथ उँट की सवारी , दोस्तों के साथ जी.बी.एम. ( GBM ) में किसी के गलतियों के लिए उसे कनडेम करना आदि । 
होली की  याद : इन खास यादों में एक याद है जे.एन.यू. में दोस्तों के साथ खेली गयी होली, जो बीते वक्त की मौज है , व वाकई ठहर सी गई है अपने थ्री  डी . प्रोजेक्शन के साथ । 
होली एक ऐसा पर्व जिसका उल्लेख जैमिनी के पूर्व -मीमांसा - सूत्र ,कथा गर्ह्य  सूत्र , नारद पुराण , भविष्य पुराण एवं अलबेरूनी के यात्रा संस्मरण में मिलता है । और जिसे शाहजहाँ के जमाने में ' ईद - ए - गुलाबी या आब - ए - पाशी ( रंगों का बौछार ) कहा जाता था । आज होली के कई नाम हैं जैसे फगुवा , धुलेंडी  , दोल आदि । जे.एन.यू. कैम्पस में उन दिनों होली के स्मरण मात्र से ही वहाँ का कण - कण होलीमय हो जाता था , नस - नस में लालसा की लहर दौड़ जाती थी , मन - प्राणों पर भावों का सम्मोहक इन्द्रधुनष छा जाता था । यही तो होली का हाल है । 
रंग के डर से छिपते वागीश और मैं 

मौज और मस्ती , रवानी और जवानी , रंगीनी और अलमस्ती की एक बहुत ही खुबसूरत मिशाल थी जे.एन.यू की होली । छात्र - छात्राएं अपने - अपने हास्टल में रंगों भरा हॉज बनवाते थे जिसमें वो एक - दूसरे को रंगीन बनाकर प्रेम से छोड़ देते थे । इसमें जाति , धर्म , लिंग का कोई भेद नहीं होता था । एक बार मैं और साथी वागीश झा रंगों से भरे हॉज में गोते खाने से बचने के लिए भागकर हास्टल से पीछे  झाड़ियों में जा छिपे । शुक्र है कि रंगों से भरे हॉज में गोते खाने से तो बच गए , मगर कैमरे की नजर से बच नहीं पाए । साथी उदय झा ने हम दोनों को झाड़ी में छिपते देख लिया था , उसने किसी को बताया तो नहीं मगर चुपके से तस्वीर ले ली थी । 
ध्रुपद ,धमाल एवं ठुमरी गायन के बिना होली अधूरी है । इसलिए जे.एन.यू. में इनके गायकों का विशेष कार्यक्रम आयोजित होता था । सच कहूँ तो जैसे बरसाने की होली , मथुरा की लठमार होली , काशी की होली अपने विशेषता के लिए जानी जाती है , वैसे ही जे.एन.यू. की रंगीन उल्लासों से भरी समता - भाव वाली होली की अपनी अलग पहचान है। होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं, गिले शिकवे भूल के दोस्तों दुश्मन भी गले मिल जाते हैं काश , लौट आते वो दिन और वो होली , जिसमें कई रंग बिखरे पड़े थे । पुराना वर्ष बीता - रीता - रीता , सूना - सूना , नया वर्ष भरा पूरा हो- इसी शुभकामना की अराधना है होली । 
डॉ.आर.के. दुबे.
कवि ,लेखक,इतिहासकार ,गीत कार. 
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हिंदी अनुभाग. पृष्ठ २.६.होली.
बंगाल,शांतिनिकेतन  की होली. 
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कभी न भूलने वाली है शांतिनिकेतन की फूलों वाली होली.....

होली है ! शांतिनिकेतन की उल्लास भरी होली : चित्र इंटरनेट से साभार 

शांतिनिकेतन / डॉ सुनीता सिन्हा. कहते है बंगाल में भारतीय संस्कृति बसती है। बंगाल की लोक संस्कृति में यहां  दुर्गा पूजा के साथ साथ पश्चिम बंगाल की प्राकृतिक फूलों वाली की होली भी स्मरणीय ही हैं यदि हम उस त्यौहार को अपनी आँखों से देखें ।  बीरभूम जिले अवस्थित है शांतिनिकेतन। यहाँ की होली का : ज़िक्र किये बिना पश्चिम बंगाल की होली का  उत्सव अधूरा है। यहाँ की होली की भी अपनी अलग ही विशिष्ट पहचान है। नोबेल सम्मान के विजेता काव्यगुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर समस्त विश्व के आदर्श रहें हैं  ने और उन्होंने अपने अनुभवों से भारतीय तौर तरीक़े ,तथा परम्पराओं की व्याख्या की। शिक्षा पर नूतन अनुसन्धान किए।  प्रकृति प्रेम को दिखलाया। मानवीय गुणों प्रेम ,दया ,मानवता माना। त्योहारों को मनाने का सुन्दर आयाम भी दिया है। वर्षों पहले शांति निकेतन में  बसंत उत्सव की जो परंपरा शुरू की थी, वो आज भी यथावत ही है । देखने लायक है। ज्ञात हो सात रंगो की होली  अपने देश में बसंत उत्सव  पर्याय के रूप में भी जानी जाती है। 

शांति निकेतन की छात्र छात्राएं होली के एक रंग : चित्र इंटरनेट से साभार 

जब आप साक्षी होंगे तो आप अनुभूत करेंगे कि विश्वभारती विश्वविद्यालय परिसर में छात्र और छात्राएँ आज भी पारंपरिक तरीक़े से उत्साहपूर्वक होली मनाते  हैं। वहाँ इस रंगारंग आयोजन को देखने के लिए बंगाल ही नहीं,बल्कि देश के दूसरे हिस्सों तथा विदेशों तक से भी सैलानियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। भारतीय परंपरागत पोशाकों  को संरक्षित करती हुई लड़कियाँ लाल किनारी वाली पीली साड़ी में प्रस्तुत होती हैं तो  लड़के धोती और कुर्ता पहनते हैं। बसंत उत्सव  दर्शनीय हो जाता है। 
इस मौक़े पर एक जुलूस निकाल कर अबीर और रंग खेलते हुए विश्वविद्यालय परिसर की परिक्रमा की जाती है। इसमें गुरु -अध्यापक ,छात्र छात्राएं भी शामिल होते हैं। विश्व विद्यालय परिसर स्थित रवीन्द्रनाथ की प्रतिमा के पास इस उत्सव का समापन होता है। इस अवसर पर ,छात्र छात्राएं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। शांतिनिकेतन और कोलकाता-स्थित रवीन्द्रनाथ के पैतृक आवास, में आयोजित होने वाला बसंत उत्सव बंगाल की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। सच कहें तो बंगाल हम सभी के लिए सांस्कृतिक राजधानी बन चुकी है जहाँ से स्वदेशी परम्पराएं पुष्पित और पल्लवित हुई है ।
डॉ सुनीता सिन्हा.
स्वतंत्र लेखिका. 
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होली.हिंदी अनुभाग. पृष्ठ २.७.
बंगाल, कोलकोता की होली. 
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कोलकोता / सृष्टि. सात रंगों में खेले  जाने वाले पर्व  जिसके अपने  भारत देश में कई एक विभिन्न नाम है. 
बिहार,मध्य प्रदेश ,राजस्थान और उत्तर
भारत में   होली कहते हैं वही होली पश्चिम बंगाल में होली दोल उत्सव के नाम से जानी जाती है।
बंगाल में दोल उत्सव की परंपरा कब से शुरुआत हुई है बताना थोड़ा मुश्किल है लेकिन अनुमानित है कृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु होली पर्व का इतिहास जुड़ा है। यह वह समय था जब हिन्दू धर्म में कुप्रथाओं को लेकर मध्य काल में  कबीर ,तुकाराम ,महाप्रभु चैतन्य द्वारा उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी। कोलकोता में भी मनभावन  रंगों का प्रयोग होता है जिस  तरीकें   से इसे पूरे देश में मनाया जाता है। होली का अंदाज विभिन्न प्रांतों में थोड़ा थोड़ा अलग है। पूरे देश में जहां अलग-अलग तरीकों से लोग रंगों के पर्व को मनाते  हैं वही बंगाल की होली अन्य जगहों से अलग अंदाज में मनाए जाने का पुराना रिवाज है। थोड़ी भक्ति थोड़ी परंपरा का अद्भुत मिश्रण ली हुई है कोलकोता की होली। 

कोलकोता की होली ,चित्र इंटरनेट से साभार 

बंगाल में होली का स्वरूप भक्ति आंदोलन को लेकर पूर्णत धार्मिक होता है। होली के १ दिन पूर्व यहां  दोल यात्रा निकाली जाती है इस दिन महिलाएं लाल किनारी वाली पारंपरिक सफेद साड़ी पहनकर शंख बजाते हुए राधा कृष्ण की पूजा करती है और प्रभातफेरी का आयोजन करती है। 
इसमें गाजे बाजे के साथ कीर्तन और गीत भी गाए जाते हैं। दोल शब्द का मतलब झूला होता है बता दे झूले पर  राधा कृष्ण की मूर्ति रखकर महिलाएं भक्ति गीत गाती हैं और उनकी पूजा करती हैं। इस दिन अबीर और रंगों से होली खेली जाती है और दोल  यात्रा में चैतन्य महाप्रभु द्वारा रचित कृष्ण भक्ति संगीत की प्रमुखता रहती है। 
बता दे प्राचीन काल में इस अवसर पर जमींदारों की हवेलियों के सिंहद्वार आम लोगों के लिए खोल दिए जाते थे। उन हवेलियों में राधा कृष्ण के मंदिर पूजा अर्चना और भोज चलता रहता था लेकिन समय के साथ इस परंपरा में कुछ उल्लेखनीय बदलाव आया है।
सह लेखिका 
विदिशा. 
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होली.हिंदी अनुभाग. पृष्ठ २.८ .
जम्मू काश्मीर की होली.यादें  
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चित्र इंटरनेट से साभार 

जम्मू एवं कश्मीर / विश्वजीत सिंह जमवाल. मैं  केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर के जम्मू संभाग का एक जिला उधमपुर के गांव टिकरी का निवासी हूं । यूं तो होली ज्यादातर जम्मू संभाग में ही विशेषतः मनाई जाती है ,आज मैं अपने बचपन से जुड़ी कुछ सुनहरी यादें ताजा करने जा रहा हूं जो मेरी जिंदगी का एक न भूलने वाला क्षण है । वैसे तो भारत में अनेक प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं जैसे कि दीपावली, होली, दशहरा आदि लेकिन होली के प्रति मुझे अपने बालपन से ही प्रीत है । मुझे अपनी बचपन की कुछ बातें याद है जब मैं ३ वर्ष का था तब मैं उधमपुर रेलवे कॉलोनी में रहता था वहां हमारे क्वार्टर के साथ एक यूपी का परिवार भी रहता था । चूंकि वे उत्तर भारत से थे इसलिए वह होली का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाते थे । उनके साथ उस दिन जो लोग होली मनाने के लिए आते थे तो वह उन लोगों को मिठाई एवं पकोड़े भी खिलाते थे व रंग अबीर लगाते थे । जब मैं उनको देखने गया तो मेरे एक भाई ने मेरे चेहरे पर गुलाल लगाया और मेरे ऊपर रंगों की बौछार कर दी जिसके कारण मैं पूरे दिन पलंग के नीचे छुपा रहा एवं रोने भी लगा। जब लोग गली में होली खेल रहे थे तो मैं उन्हें चोरी से चुप चुप कर देख रहा था और डर भी रहा था कि कहीं मुझ पर फिर से कहीं रंगों की बौछार ना हो जाए । यहीं मेरी पहली होली थी जो मैं अबतक नहीं भूला । 
अब मैं बड़ा हो गया हूं और मैं बड़े मजे से अपने मित्रों के साथ होली का भरपूर आनंद लेता हूं । यू पी वाले अंकल ने जो होली का रंग और मायने बतलाए वो रंग आज भी आज भी मेरे जीवन में चढ़ा ही है। कभी भी न धूमिल होने  वाला। उनकी मधुर तथा सुखद यादें मेरे हृदय पर आज भी अंकित हैं और इनकी याद आते ही मेरा मन अनोखे  आनंद से भर उठता है और मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि काश वह पल  फिर लौटकर आए। बचपन के दिन किसी भी व्यक्ति के जीवन के बड़े महत्वपूर्ण दिन होते हैं।  
विश्वजीत सिंह जमवाल.
उधम पुर ,जम्मू एवं कश्मीर 

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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ ३.१ .पद्य.होली. 
व्यंग्य कविता. हसिकाएँ 
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सहयोग .

होली के रंग 
होली के रंग 
हमारे लिए 
जब हो गए बदरंग. 
एक जगह जब  रंग  लगाने निकली थी, 
हम शैतानों की  टोली. 
कैसे कहें वो याद रहेगी 
कपड़ा फाड़ वो होली .
बुरा न मानो होली है, 
हम जा पहुंचे थे किसी के घर ,
भान जरा न था,विकट घड़ी का , 
संकटा थी उधर. 
अप्रत्याशित स्वागत हुआ हमारा,
फंसने जा रहा था एक बेचारा. 
जब कोई बोला प्यार से ,' जा रहे हो किधर, मोहन ,प्यारे, 
राधा संग होरी न खेलोगे राम ,दुलारे. 
पास  बैठे व्यक्ति ने भी हम लोगों को झाड़ पर चढ़ाया ,
प्रेम रोग के ट्रेलर में  पूरी हॉरर फिल्म ही  दिखलाया,' 
जाओ बेटा !,होली के गुलछर्रें उड़ाओ. 
अंदर जाकर छम्मा छम्मा को रंग लगाओ. '
लाल पीला काला रंगों से उसे बहुत प्यार
जुम्मे  से कर रहीं वो इंतजार .
छम्मा छम्मा को रंग लगाओ
भांग मलाई खा के अपनी होली मनाओ . '
उसके इस खुले आमंत्रण पर 
हम सभी किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाने से हिचके, 
भीतर जाकर रंग लगाने से पता नहीं हर कोई क्यों ठिठके ?
मैंने कहा ,' यार मामला गड़बड़ है, 
चल कहीं और चल, 
निकल ले यहां से, कहीं और दूर निकल .' 
तभी  किसी ने  मुझे टोका,
जाने से हम सब को रोका,' 
कुछ नहीं बेटा सब समझ जाओगे 
जब भीतर चले जाओगे...' 
कल्पना के सागर में  लगे हम खोने,
सुंदरी संग होली खेलेंगे लगे सपने में खोने.
डरकर  ही सही मगर हम सभी करने लगे प्रवेश, 
मामला था संगीन बदला था  परिवेश. 
सोच रहे थे, मिलेगी कोई युवती सुन्दर सी नारी,
मगर हमें क्या पता था कि फूटने वाली  है किस्मत हमारी.
कोई रोके या टोके,  
तभी हम चौके,
तत्क्षण प्रगट हुई जब कोई भयंकर बदना नारी 
, हे भगवन ! नारी है   या यह राक्षसी पर भी भारी.
लम्बी, चौड़ी, विशालकाय देहयष्टि
नारी की थी हमलोगों  पर कुदृष्टि.
उसने  आमंत्रण दिया खुल्ला  ,'
आओ मेरो संग होली खेलो लल्ला ,
अरे ! कोई तो होली का रंग जमाओं, 
मुझे भी तो दौड़ कर रंग लगाओ. 
हमारी घिग्गी बंधी हुई थी 
सब की नज़र दरबाजे पर ही टिकी हुई थी.
कोई आगे तो कोई भागे,  
वह  गरजी, ' ख़बरदार जो कोई भागा,' 
'आज सबला नारी का सम्मान है जागा, 
तभी हम में से कोई आगे आया 
चरणों में शीश नवां गिड़गिड़ाया,'  
बोला,' हम लक्ष्मण है, 
तू है सीते माते,  
भला हम अपनी माता को रंग कैसे लगाते ?'
भयंकर गर्जना कर उसने अट्टहास किया 
शब्दों से उसने हम सब को धिक्कार किया ,'
'उठो कायरों !
आज लक्ष्मण की बात करते हो, 
कल दुःशासन की भुला जाते हो. 
मेरा मान सम्मान अपमान न भुलाना होगा , 
कलयुग में ही  आज तुम सबों को ,
अपने पूर्वजों के कुकर्मों का मूल्य चुकाना होगा .  
एक एक करके तुम सब भी,
अपनी दुर्गति के लिए तैयार हो जाओ,
बहुत किया जुल्म अबला नारी पर,  
अब चुपचाप बारी बारी से  मेरे  सामने मुर्गा बन जाओ.'
'रह रह कर उसने कौरव ,पांडव ,द्रौपदी का नाम लिया 
न जाने क्यों हमलोगों से उसने
दुःशासन के कर्मों का हिसाब लिया ,'
'सुनो  शकुनि ,सुनो  कौरव 
सदियों का मूल्य चुकाना होगा,
आज भी चीर हरण होगा सब के सामने 
मगर नारी का नहीं वह नर का होगा ,
और साक्षी इसका जमाना होगा.'
रोते रहे कलपते रहे
तनिक सुनी न वो  दुखड़ा, 
हाय शरमाय हम किसको बताय ?
तन पर बचा न कोई  कपड़ा .
कान पकड़ ली तौबा कर ली,
अब न खेलेंगे कभी होली, 
आधी रात गए घर लौटे,  
कालिख़ पुते ,पत्तें ढ़के शरीर
याद रहेगी वो काली होली 
पाठ पढ़ा गए संत  दास कबीर।
 
डॉ.मधुप रमण. 
( मेरी इस हास्य व्यंग्य कविता का प्रसारण पटना रेडियो युववाणी मेरे द्वारा साल १९९१ के आस पास हुआ था  ) 
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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ ३.२.पद्य.होली. 
होली .गीत .डॉ. आर. के. दुबे.  
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गीत  सुनने के लिए यह लिंक दवाएं 
 


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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ ३.३.पद्य.होली. 
होली.कविता .रेनू शब्दमुखर.जयपुर
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इस होली तुम .....
सुनो, 
इस होली तुम खूब हंसना गाना, 
मन में आए वो गुनगुनाना,
मस्त हो जो चाहे वो करना ,
सुख का घोड़ा चहुँ ओर दौड़ाना. 
सुनो साथ मुझे भी ले लेना,
होली के बहाने ही सही, 
अपने व्यस्ततम जीवन से, 
कुछ फुरसत के पल चुरा कर,
मस्ती का आलम चारों ओर बिखराना. 
सुनो इस होली खूब हंसना गाना,
होली के बहाने ही सही, 
अपने दुखों को तिलांजलि दे,
कण-कण में अबीर गुलाल की,
महक उड़ाना कहना होली आई रे,
उड़ा रे गुलाल,
मस्ती छाई रे बिखरा रे गुलाल, 
जर्रे-जर्रे में प्रेम का रंग बिखराना ,
मन को अपने मधुबन बना खूब महकाना,
सुनो इस होली खूब हंसना गाना,
मस्ती से सब प्रियजन को गले लगा सारे कटु भाव भुला, 
द्वेष को मन से निकाल, 
जीवन की लय में अबीर उड़ा, 
अपने जीवन को इंद्रधनुषी बनाना, 
सुनो ,
तुम इस होली तुम खूब हंसना गाना.

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होली. दूसरी कविता .
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तेरे इंतजार में

इस होली आओगे?
आज,
मैंने देखा था इंद्रधनुष,
सात रंगो को समेटे,
गगन में मुस्कुरा रहा था,
मैंने कहा,सुन,
एक खत लेजा 
क़ासिद बन कर,
पहुंचा देना 
मेरे इंद्रधनुष तक,
कहना,होली है,
रंगों की हमजोली है
अपने रंग अपने तक ही रखोगे ?
कुछ पल को तो कम करो
इस दूरी के अहसास को,
समीप आओ,
अपने रंगो से रंग दो मुझको,
मै,बैठी हूँ मुंडेर पे अपनी 
सराबोर होने को
इन्तजार में तेरे
बोलो......
आओगे ??
              
रेनू शब्दमुखर
हिंदी विभागाध्यक्ष ज्ञान विहार स्कूल
सह सचिव लेखिका संस्थान
स्टेट कॉर्र्डिनेटर संपर्क संस्थान
जयपुर.
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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ ३.४.पद्य.होली. 
होली.कविता .नीलम पांडेय .गाजीपुर 
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होली मनायें

होली मनायें, होली मनायें।
आओ फिर आज जरा,
गुनगुनाएं,फाग गायें
मिल के होली मनायें।
दिल की आवाज़, दूसरों तक ले जायें।
रंग बदलते रिश्तों से ,असली रंग चुराएं
पोत के रंग खुशियों का,मन का मैल छुड़ायें
होली मनायें, होली मनायें।
बरसाने की राधिका से प्यार का रंग 
थोड़ा ही सही,मांग लाएँ
रंग के राधिका के रंग में,श्याम को
गोप, गोपी,गोपाल संग प्रीत की
होली मनायें,होली मनायें। 
रंगों में मिलावट है,
रिश्तों में कड़वाहट भी।
नफ़रत भरे दिलों में,
है प्रेम की आहट भी।
भुला के हर गिले-शिकवे,
स्नेह का अबीर-गुलाल लगायें
होली मनायें, होली मनायें।

नीलम पांडेय
स्वतंत्र लेखिका 
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हिंदी अनुभाग.पृष्ठ ४
होली. व्यंग्य चित्र 
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हिंदी अनुभाग. दृश्य
पृष्ठ ५. मस्ती होली की.
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सुआ देवीराजस्थानी लोक नृत्यांगना की पेशकश 


रायपुर : अनिल खेमे / सेक्सोफोन वादक. देखने सुनने के लिए प्ले दबाए 

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हिंदी अनुभाग.आभार 
पृष्ठ ६.आपने कहा. 
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डॉ.राजीव रंजन. शिशु रोग विशेषज्ञ.


सृष्टि मिश्रा, गायिका.
बिहार.होली मुबारक हो.


प्रसून पाठक, गायक. बिहार. होली की मंगल कामना. 
 
In Assosiation With.


Business Heads. 
A & M Media. Dr.Manish Sinha. New Delhi.
Pratham Media. Aashish Kumar. Patna.
M. S. Media. Bharat Kishore. 9334099155.
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Writers.
a. Dr. Madhup Raman.
Free Lance Writer.Telegraph. Morning India.
b. Ashok Karn. Photo Editor (Public Agenda)
Ex. HT Staff Photographer.
c. Alok Kumar.
Free Lance Writer. TOI, Telegraph.
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Visitors.
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Dr. Suniti Sinha. M.B.B.S. M.S.( OBS Gyn.)
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Dinesh Kumar ( Advocate)
Sushil Kumar  ( Advocate)
Seema Kumari ( Advocate)
Vidisha  ( Law Student 2nd Year.)
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Patron.
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Dr. Roopkala Prasad. Prof. Department of English.
Col. Satish Kumar Sinha. Retd. Hyderabad.
Anoop Kumar Sinha. Entrepreneur. New Delhi.
Dr. Prashant. Health Officer Gujrat.
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Section C. Report.
Page.7.English.
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Section C.USA.Report.
Page.7.0.English.Holi.
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India lives its cultural tradition in USA.

a sweet memory of past Holi New Jersey USA : photo Meera Roychowdhury.

Meera
Meera / New Jersey USA. India always lives in the US with her progeny. Different traditions, festivals and cultures are retained here. We Indians always try to revive and refresh our culture and tradition here by celebrating our festivals with Indians and natives. Every year Holi festival brings splash of color to the Garden State. Holi is an important festival to Hindus. It is celebrated at the end of winter, on the last full moon day of the lunar month which usually falls in March. Desi People welcome Spring by celebrating this colorful festival Holi with families and friends. It is a fun event for all and every year they look forward to say good bye to freezing cold weather and welcome warm spring with all enthusiasm and positivity.
This year fortunately the weather is giving full support ...temperature is rising slowly and desi public have started planning for holi celebration in their respective community.
Desi stores have started increasing the stock of various colors and different kind of sweets. In this pandemic era people are more cautious..so they will play Holi with proper social distancing. 
'Realising this pandemic corono period we have to be very cautious and to follow  all the guide lines. Probably this year the celebration will be confined in the families at personal level. '
Another resident , Dr. Yadvendu in his talk he says to our correspondent that by this year while playing holi they all will follow the guide lines of corona of USA government. He adds to us that situation is not like India, he remembers , 'Laws are very sticky to us so we are aware of these things, will maintain social distancing and avoid social gatherings while playing Holi.' As he is a doctor in New Jersey so he suggests us, need not to be more careless, should be much sincere and aware of the threat for the second wave of corona. So it is essential to keep extra care in this Holi celebration. He finds himself always swinging in his sweet past memories of bygone days of his home town in India while he used to play with his friends, Ravi, Shekhar, Sanjay and Satya at Biharsharif.

Meera Roychowdhury. Princeton,
New Jersey.USA.
with Dr. Madhup Raman

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Section C. Report.Memories.
Page.7.1.English.Holi Jharkhand.
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Holi Festival of Spring & My Childhood Memories;
Ashok Karan / Ranchi. 

lady enjoying festival of colour in spring at Ranchi : photo Ashok Karan 

Holi is a popular ancient Hindu festival also known as “festival of spring” the festival of colors as well as festival of Love; it also symbolizes the triumph of good over evil, the destruction of the female demon Holika. People gather in the night before Holi fest in a park or some open area around bonfire made of wood and combustible items and perform religious rituals and then pray for the destruction of their inner evil. It is celebrated every year on the day after the full moon in the Hindu month of Phalguna which falls in the month of March every year. It also symbolizes the arrival of spring, end of the winter, blossoming of love and slowly entrance of summer. For many it is the festival of meeting each other cementing the broken relationships, play, laugh, forget and forgive. Later this ancient Hindu festival which lately become popular among other communities and offshore countries too, such as Australia, UK, New Zealand etc. it is also celebrated as thanks giving for good harvest.
Especially in our country no celebration is complete without good food and drinks. So, as the people play around with vibrant colours It is also in demand of hot snacks with cold beverages and also burst of flavors of delicacies such as Thandai, Dahi Bhalle( Vada), traditional items like awesome Malpua, veggies of Jack fruit, fried rice, Kadhi, fried potatos, green gourd, Badam Phirni, newly harvested green grams and also non vegetarian foods are much in demand. In Hindi it can be said that this festival celebrated in this way that ‘ Khao Piyo aur khoob jiyo’ it is celebrated in a kind of  festival of total ‘Dhamal’ as all the hang ups take back seat in life for the time being and people enjoy it in very cheerful way.
youth's Holi in Jharkhand : photo Ashok Karan.

Vasantotsava
In West Bengal and Odisha it is celebrated as Vasantotsava or ‘Dol Jatra’ which was started by the Nobel Laureate Guru Rabindra Nath Tagore in ‘Shanti Niketan’ with completes dedication to Lord Krishna. In this region, the mythology is entirely different. In which Lord Krishna is believed to have expressed his Love to Radha on this day. People carry idols of Krishna and Radha with smeared colors and they also smear colors to each other and on the people of streets. I had the opportunity to visit Shanti Niketan during Vasantotsava and enjoyed its celebrations over there, one of the main attraction was the ballet of Amla Shanker group which left me mesmerized, there was a group dance item was called ‘Time Machine’ that casts very enchanting effect on everybody mind, with such a marvelous presentation, which I had never witnessed before. There were also baul singer’s performers. The very next day was ‘Dol Jatra’ or’ Vasantotsava, began with vibrant colors of yellow; girls were in yellow Sarees and decorated themselves with red Palash flowers which are amply found in this season all over West Bengal and Jharkhand, and the boys in yellow Kurta payjamas smearing colors on each other faces and dancing on the tune of drums, flutes, manzeeras (small hand cymbals) in a very disciplined and graceful way.
My Childhood Memories;
This festival is sending me into down memories lanes of my childhood. Those days when I was in school I use to be in Holi mode all the week of this festival. I use to steal woods, discarded furniture’s with my childhood pals all for fun to collect them for Holika fire celeberation. I still remember that after lot of nagging my father bought brass pichkarees (water guns) which was called Hazaras to us, at that time I was feeling on cloud 9, and proudly showing my friends my new Holi weapon. With that new weapon I use to throw colors far away than my friends and making them jealous. My mother use to make lot of delicacies since early in the mornings for the family as well as for the guests and I along with my .younger brother, sister and friends were indulge in fun and frolics. I wish, alas those days come in my life again.Now a day I feel sorry as this festival turned into hooliganism, vulgarities causing gentle men and ladies to desist themselves from celebrating it with full zeal.
Ashok Karan.
Ex HT Staff Photographer, Patna 
Ex Photo Editor Public Agenda. New Delhi.

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Section C. Report. English.
Page.7.2.Holi in Karnataka.
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Now in South people enjoy playing  Holi with colours.

Bengaluru / Kumar Agraj .
 
Bura na mano, Holi hai ! ..! (Don't feel bad, its Holi).I have grown up hearing this slogan. I am born and brought up in Bihar Sharif but have been to Bangalore for 16 years.
I miss the way Holi used to be celebrated during my childhood days and still want to see the way it was. Holi is a festival of colors. It means without colors, there is no meaning of Holi. I am amazed to see how can people celebrate Holi without colors. People are hesitated towards the usage of colors. This pandemic has given a lots of pain to the human but it has taught us a very big lesson how important our family is. This pandemic has shown us the value of love. One good thing about this pandemic is it has given a chance to IT people to be with family and still work from home.
Holi at Bangalore : I remember when I moved to Bangalore to work, Holi was just restricted to the areas where North Indian stayed but now if you see there won't be any difference in the celebration done in any North Indian region or any part of Bangalore. Now a days, Holi is celebrated full fledged and everyone takes part being Indian, not thinking which part of India the person belong to. Holi is celebrated in groups. Every apartment has one common area where such celebrations are done. 
Holi in South India Bangalore : photo Kumar Agraj

Play with Colours : People celebrate Holika Dahan by gathering at one place and lit the fire. They apply gulal to each other and share some sweets. On the day of Holi, water is arranged, if needed they get a water tanker from corporation and use that water to play Holi with colors. People enjoy by singing songs and play dholak. This celebration starts around 10 and go till the water lasts. People mix color with water and pour on each other. Generally it goes for 3 hours. This duration is enough to get tired and then everyone departs for their home, eat dishes and then take rest.
Message for being careful for this  pandemic year : This year I would get a chance to see Holi in Bihar and I am sure it would not be celebrated the way it used to be. The big reason is this pandemic, we all should be careful in celebration and another big reason is our societal nature. We have shrunk ourself and prefer to stay in a closed area. We have forgot to breathe in open air. We hesitate in talking to people where as earlier everyone used to talk to everyone. There is a lot to say but I would prefer to concentrate on Holi.
Celebrate Holi with full of heart and stay careful. Finally, Bura na mano Holi hai !.
Kumar Agraj.
IT Engineer, Bangalore.

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Section D.Photo Gallery. Album.
Page.5. An Artist Playing with Colours
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Ajanta Colours Art by a world wide famous artist : art Pravin Saini.

An artist meaningfully playing with Colours : photo Pravin Saini.

an artist with the colour of Nature : colour Pravin Saini

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Section E. Photo Gallery.
Page.6. Album. Holi.Yadein
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Indian Association at Australia with the colours of Holi : courtesy photo Sunny

memories of Holi Celebration at Newcastle Australia : courtesy Sunny

a sweet memory of past Holi New Jersey USA : photo Meera Roychowdhury.

Colours of Holi at New Jersey USA : photo Meera Roychowdhury.

Colours of Holi at Pune : photo Rimmi

Nainital Holi Celebration : collage from Naivin Samachar

this year Holi celebration at Bihar : collage Dr.Bhwana


An Apartment Holi in Bengaluru : photo Agraj.

poetess Holi : Courtesy Renu Sabdmukhar,Jaipur.

Holi ke Din Hangama at Ranchi : photo Ashok Karan

Holi ke Rang Masti Ke Sang : photo Ashok Karan.

Holi aai re Kanhai Holi Aai Re : photo Ashok Karan.

Colours of Holi with my friends around 1989 at Biharsharif : photo Amit


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Section E. Advertisement.
Page.6.Classified.
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Section G. Trading.
Page.7.Commerce.
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Travel Bag / GT / 15/03/2021/720
Jugmug Paints/ MR /930/-

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